Monday, 30 May 2016

लज़्ज़त कभी थी , अब तो फितरत सी हो गयी है।
हमको गुनाह करने की , आदत सी हो गयी है।।
‪#‎भारत_में_मनुस्मृति_को_‬ जलानेवाले_मूलनिवासियों_नवबौद्धों_वामपंथियों_धर्मनिरपेक्षों_और मुसलामानों_ को समर्पित इस पोस्ट को समझने के लिए आपको वर्तमान की कुछ घटनाओं और इतिहास की कुछ तारीखों को अपने ज़ेहन में रखना होगा ।
‪#‎घटनाएँ‬ ----
 1 ) पूरे देश और दुनिया में एक मुहिम चली हिन्दू असहिष्णु हो गया है। ( वर्ष 2014 से )
2) जे एन यू और कश्मीर में नारे लगना ,"भारत तेरे टुकड़े होंगे -इंशा अल्लाह इंशा अल्लाह। और एक बड़े तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग का इसे आज़ादी की अभिव्यक्ति घोषित करना। ( वर्ष 2016 )
3) फरीदाबाद आग काण्ड , आरोपी ने खुद आग लगायी थी और मुद्दा बन दिया गया दलित / सवर्ण का। (वर्ष 2015)
4) बहुत से छात्रों ने पिछले वर्षों में आत्महत्या की है ,एक और छात्र ने भी आत्महत्या की , नाम था रोहित वेमुला, मुद्दा बना "दलित" की आत्महत्या का।
5 ) दो वामपंथी महिलाओं ,कविता कृष्णन् और उसकी माँ का यह कहना कि उन्होंने फ्री सेक्स किया है और Unfree सेक्स सम्भोग नहीं ब्लात्कार है। उन्होंने उस फाइल की भी निंदा की जिसमे JNU के अध्यापकों ने तथ्यों को संजोया है कि " JNU छात्रों की ज़िन्दगी शराब से भरी हुई है। (वर्ष 2016 )
6 ) फैज़ाबाद में बजरंग दल द्वारा शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग देने पर प्राथमिकी दर्ज़। ( वर्ष 2016)
7 ) इशरत जहाँ ,बाटला हॉउसऔर साध्वी प्रज्ञा का सच सामने आना। ( वर्ष 2016 )
अब भारतीय इतिहास की कुछ उन ‪#‎तिथियों‬ को याद रखें जिन में लगभग 400 वर्षों का अन्तराल है -----
‪#‎विंस्टन_चर्चिल‬ ----1940 के दशक में इंग्लैंड का प्रधानमंत्री।
‪#‎औरंगज़ेब‬ ------ ( 4 नवंबर 1618 - 3 मार्च 1707 ) ने 1658 से 1707 तक राज किया।
‪#‎अल_बरुनी‬ ---- ( 5 सितम्बर 973 -13 दिसम्बर 1048) महमूद ग़ज़नवी के साथ भारत आया और #1030 तक "किताब तारीख अल हिन्द " पूरी कर ली।
‪#‎हुएन_त्सांग‬ ---- वर्ष 630 में भारत आया और 645 ई तक भारत भ्रमण किया।
(‪#‎यहाँ_पर_याद_रखें_कि_कुरान‬ /‪#‎इस्लाम_22_दिसम्बर_609‬ ई को पैदा होना शुरू हुआ था और‪#‎कुरान_की_आखिरी_आयत_वर्ष_632‬ मोहम्मद के मृत्यु के वर्ष में लिखवाई गयी थी। )
‪#‎फा_हियान‬ -------399 ई से 412 ई तक भारत,नेपाल , बंग्लादेश तथा श्रीलंका में घूमा।
‪#‎मेगस्थेनिेज‬ ----- 305 ई पूर्व से 298 ई पूर्व तक चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में भारत में रहा।
‪#‎बाल्मीकि_रामायण‬ ----- 500 ई पूर्व किसी वर्ष में लिखी गयी थी ।
वर्तमान वर्षों में हिन्दू असहिष्णु हो गया है यही प्रचारित किया जा रहा है, कश्मीर केरल असम और कोलकाता में मिनी पकिस्तान के उदाहरण किसी उड़द पर सफेदी नहीं लाएंगे।
आइए देखें 80 वर्ष पहले स्वतन्त्रता पाने वाले दशक में विन्स्टन चर्चिल ने भारतियों के बारे में क्या कहा था। " Power will go to the hands of rascals, rogues, freebooters ; all Indian leaders will be of Low calibre and Men Of Straw.They will have sweet tongues and silly hearts.They will fight amongst themselves for power and India will be lost in political squabbles. A day would come when even Air and Water be Taxed in India " अर्थात " सत्ता दुष्ट कपटी और लुटेरों के हाथों में चली जाएगी ; सारे भारतीय नेता कम क्षमता और नीच चरित्र के होंगे। उनकी जुबां मीठी होगी और दिल से बेवकूफ होंगे। वे सत्ता के लिए आपस में लड़ेंगे और भारत रानीतिक झगड़ों में उलझ जायेगा। एक दिन ऐसा आएगा जब भारत में पानी और हवा पर भी टैक्स देना पड़ेगा।
आईये इससे 400 साल पीछे चलें औरंगज़ेब के ज़माने में। Munnaci एक इटली का घुम्मकड़ जो औरंगज़ेब के समय में भारत में रहा लिखता है ------"कोई भी कभी भी एक भी शब्द ऐसा नहीं बोलता जिस पर विशवास किया जा सके ................. यह लगातार आवश्यक हो जाता है कि बुरा से बुरा सोचा जाये और जो बताया जा रहा है उसके विपरीत सोचा जाये।"
3000 साल पुराना ,शूद्रों पर अत्याचारों का राग अलाप कर ‪#‎मनुस्मृति_जलाने‬ वालों के लिए तत्कालीन हिन्दू समाज के विषय में इस मुस्लिम इतिहासकार ने क्या देखा उसे पढ़ना नितांत आवश्यक है। वर्ष 1030 में महमूद ग़ज़नवी के समय में ‪#‎अल_बरूनी‬ क् लिखता है कि --- पारम्परिक हिन्दू समाज चार वर्णो और अंत्यज ( जो किसी जाति में नहीं आते थे) में विभाजित हुआ करता था , लेकिन उसने उच्च जातियों द्वारा नीच जातियों पर अत्याचारों का कोई ज़िक्र नहीं किया। बावजूद इसके कि चारों वर्ण एक दूसरे से भिन्न थे लेकिन वे शहरों और गांवों में एक साथ रहते थे और एक दूसरे के घरों में घुला मिला करते थे।‪#‎अन्त्यज‬ --- आठ श्रम निकायों / शिल्पी संघ / मंडली में अपने व्यवसाय के अनुसार विभक्त थे, जो कि आपस में विवाह कर लिया करते थे --सिवाय धोबी , मोची और जुलाहों के। ये लोग चार वर्णो के शहरों और गाँवों के पास मगर बाहर रहते थे।
चारों वर्णो के खान पान के विषय में #अल_बरुनी ने देखा कि जब एक साथ खाना खाने का आयोजन होता था , तो चरों वर्ण अपना अपना अलग समूह बना लेते थे। एक समूह में दूसरे वर्ण का व्यक्ति शामिल नहीं होता था। हर व्यक्ति अपना भोजन करता था और किसी को बची हुई जूठन खाने की इज़ाज़त नहीं थी। वे एक दूसरे की थाली में बचे हुए भोजन /जूठन का भाग बांटते नहीं थे।
.http://www.columbia.edu/…/colle…/cul/texts/ldpd_5949073_001/
#हुएन_त्सांग ---- वर्ष 630 में भारत आया और 645 ई तक भारत भ्रमण किया।
(#यहाँ_पर_याद_रखें_कि_कुरान /#इस्लाम_22_दिसम्बर_609 ई को पैदा होना शुरू हुआ था और #कुरान_की_आखिरी_आयत_वर्ष_632 में मोहम्मद के मृत्यु के वर्ष में लिखवाई गयी थी। ) - समझ रहे हैं न इस्लाम नाम की गिद्ध तब तक पैदा नहीं हुई थी। उस समय हुए त्सांग ने हिन्दू समाज में क्या देखा , उसी की लेखनी के अनुसार ------" हिन्दू सरल एवं सम्मानीय हैं ....... .......पैसों के मामले में इनमे कपट नहीं है और न्याय करने के मामले में यह विचारवान हैं ........ ...... अपने आचरण में वे विश्वासघाती और धोखेबाज नहीं हैं वे अपनी शपथ और वायदों में वफादार हैं। शासकीय नियमों में इनमे अविश्वसनीय ईमानदारी है और इनके व्यवहार में शिष्टता और सौम्यता है। अपराध और विद्रोह के मामले न के बराबर हैं और कभी कभार ही परेशान करते हैं। लोगो से जबरदस्ती काम नहीं लिया जाता ....... ....... बहुत हलके किस्म के कर लगाए जातें हैं और व्यक्तिगत सेवाएं बहुत कम ली जाती है।
#फा_हियान ----- 399 ई से 412 ई तक भारत,नेपाल , बंग्लादेश तथा श्रीलंका में घूमा और हिन्दुओं के विषय में लिखा कि " वे धोखेबाजी नहीं करते और अपना दिया हुआ वचन निभाते हैं ........ ....... वे अन्याय नहीं सहते और न्याय के मामले में अपेक्षा से ज्यादा न्यायप्रिय है।
#मेगस्थेनिेज ----- 305 ई पूर्व से 298 ई पूर्व तक चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में भारत में रहा। "मैगस्थनीज़" के यात्रा वृतांत के अनुसार उस समय इसी चतुर्वर्ण में ही कई जातियाँ 1) दार्शनिक 2) कृषि 3)सैनिक 4) निरीक्षक /पर्यवेक्षक 5) पार्षद 6) कर निर्धारक 7) चरवाहे 8) सफाई कर्मचारी और 9 ) कारीगर हुआ करते थे। सत्य एवं नैतिकता को ही वे श्रेष्ठ मानते थे।
चन्द्रगुप्त के प्रधानमंत्री "कौटिल्य" के अर्थशास्त्र एवं नीतिसार अनुसार, किसी के साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार की कठोर सज़ा थी। यहाँ तक की वैसे तो उस समय दास प्रथा नहीं थी लेकिन चाणक्य के अनुसार यदि किसी को मजबूरी में खुद दास बनना पड़े तो भी उससे कोई नीच अथवा अधर्म का कार्य नहीं करवाया जा सकता था।ऐसा करने की स्थिति में दास दासता के बन्धन से स्वमुक्त हो जाता था।सब अपना व्यवसाय चयन करने के लिए स्वतंत्र थे तथा उनसे यह अपेक्षा की जाती थी वे धर्मानुसार उनका निष्पादन करेंगे
#बाल्मीकि_रामायण -500 ई पूर्व किसी वर्ष में लिखी गयी थी के अनुसार ----" तस्मिन् पुरवरे हृष्टा धर्मात्मानो बहुश्रुताः। नरास्तुष्टा धनैः स्वैः स्वैरलुब्धाः सत्यवादिनः।। कामी वा न कदर्यो वा नृशंसः पुरुषः क्वचित्। द्रष्टुं शक्यमयोध्यायां नाविद्वान् न च नास्तिकः।। नानाहिताग्निर्नायज्वा न क्षुद्रो वा न तस्करः। कश्चिदासीदयोध्यायां न चावृत्तो न संकरः।। "(वाल्मीकिरामायणम् 1.6.6, 8, 12) अर्थात् उस श्रेष्ठ अयोध्यानगरी का असाधारण समाज था, जिसमें सभी प्रजाजन प्रसन्न, धर्मात्मा, बहुश्रुत विद्वान् थे। निर्लोभी, अपने-अपने धन से सन्तुष्ट रहने वाले और सत्यवादी थे। वहाँ कहीं कोई कामी, कंजूस, क्रूर व्यक्ति न था। न कोई मूर्ख और नास्तिक था। न ही अग्निहोत्र और पंच यज्ञ न करने वाला, न निम्न सोच वाला और चोर था। न ऐसा था जो सदाचारी न हो या वर्णसंकर हो।
अब बात कर लेते हैं ‪#‎मनुस्मृति‬ की -----वर्तमान मनुस्मृति में 2685 श्लोक पाए जाते हैं , जबकि डॉ कमल मोटवानी जिन्होंने मनुस्मृति पर शोध कार्य ,स्वामी दयानन्द ,ब्रिटिश शोधकर्ता Wooler,J.Jolly,Keith and MacDonell, Encyclopedia Americana और तमाम विद्वानों ने माना है कि मनुस्मृति की मूलप्रति में समय समय पर 1471 विरोधाभासी श्लोकों की मिलावट की गयी है। इसप्रकार 1214 श्लोको वाली मनुस्मृति को उसी प्रकार 2685 श्लोकों वाली मनुस्मृति बन दिया गया जिस प्रकार मूल महाभारत में दस हज़ार श्लोक थे और आज उपलब्ध महाभारत में एक लाख से ऊपर श्लोक हैं।
फिर भी मनुस्मृति को जलाने वाले यह क्यों भूल जाते हैं कि निम्न श्लोक भी मनुस्मृति के ही हैं ---
1) जन्मना जायते शूद्रः कर्मणा जायते द्विजः,
वेदाध्यायी भवेद्विप्रो ब्रह्म जानाति ब्राह्मण
"जन्म से व्यक्ति शूद्र होता है, कर्म-संस्कार से वह द्विज , वेदाध्ययन करने पर वह विप्र कहलाता है और जो ब्रम्ह को जनता है वाही ब्राह्मण है।
2)शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम्।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्या द्वैश्यात्तथैव च।---- अर्थात श्रेष्ठ -अश्रेष्ठ कर्मो के अनुसार शूद्र ब्राह्मण और ब्राह्मण शूद्र हो जाता है। जो ब्राह्मण ,क्षत्रिय वैश्य और शूद्र के गुणों वाला हो वह उसी वर्ण का हो जाता है।
3)यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रेता तु न पूज्यन्ते सर्वाः तत्राफलाः क्रियाः । ------अर्थात जिस कुल में नारियों की पूजा अर्थात सत्कार होता है उस कुल में (देवता) दिव्यगुण होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है।
खूब जलाओ प्रक्षेपित मनुस्मृति। कविता कृष्णमूर्ति और उसकी माँ की तरह खूब करो फ्री सेक्स। और बरखा दत्त की तरह डंके की चोट पर कहो हाँ मेरे दो मुस्लिम पति हैं कर लो जो करना है। सही कहा है जिसने भी कहा है -------
लज़्ज़त कभी थी , अब तो फितरत सी हो गयी है।
हमको गुनाह करने की , आदत सी हो गयी है।।
http://shivashaurya.blogspot.com/2016/05/blog-post.html
Graphics Courtesy ---@Rishi Pandey




Sunday, 29 May 2016

अंग्रेजों ने हमसे सीखा सिविल इंजीनियरिंग :
रेगिस्तान में बने इस 'किले' की खासियत आपको कर देगी हैरान

राजस्थान में भीषण गर्मी के साथ पानी की भारी समस्या है। आज से कई 100 साल पहले यहां के महाराजाओं ने भीषण गर्मी और पानी की समस्या को देखते हुए ऐसी टेक्नोलॉजी बनाई थी जिससे ग्राउंड वाटर को हाथ लगाए बिना ही पानी लोगों को मिल जाता था। ऐसा ही कुछ जयपुर जयगढ़ फोर्ट के 200 साल पुराने वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम को देखने से पता चलता है।
ये पानी के बड़े टांके थे लाइफ लाइन

बताया जा रहा है कि यह किला समुद्र तल से 500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। अरावली पर्वतमाला के चील का टीला पर स्थित इस दुर्ग पर न तो बोरिंग करके ग्राउंड वाटर का इस्तेमाल किया जा सकता था और न ही धरातल से यहां पानी भेजने का काम हो सकता था। इस ऊंचाई पर भी अपने सैनिकों, उनके घोड़े और दुर्ग में रहने वालों के लिए पीने के पानी का जो सिस्टम बनाया गया था उसका आज भी इस्तेमाल हो रहा है।
बारिश का साफ पानी पूरे साल के लिए होता था इकट्ठा

आपको बता दें कि जयपुर के महाराजा सवाई जयसिंह ने इस किले को वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम से जोड़ दिया था। इस किले के चारो ओर 10 फीट चौड़ी नालियों का एक ऐसा जाल बनवाया जो इससे जुड़ा हुआ था। किले की छतों पर भी एक नालियों को जाल था। वाटर एक्सपर्ट्स की मानें तो यह पानी आज भी इतना साफ और पीने योग्य होता है जितना जमीन से निकला पानी भी नहीं होता है। सिटी पैलेस के सहयोग से इस दुर्ग में वाटर हेरिटेज वॉक की शुरुआत करने वाले वॉटर स्टोरी टेलर नीरज दोसी ने बताया कि दुर्ग में आ रहे इस पानी के जाल को अभी तक पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। तीन टांके फोर्ट में आते हैं। एक बड़ा टंका सेंटर में है। इसकी लंबाई और चौड़ाई 47.4 मीटर और गहराई 12 मीटर है। यह 81 पिलर्स पर खड़ा है।

















बंजर जमीन को कर देते हैं पानी से लबालब

 ये हैं देश के 'वॉटर डॉक्टर'...

अयप्पा के नाम और शोहरत से आप भले ही वाकिफ न हों, लेकर देश और दुनिया के जलवेत्ता इन्हें 'वॉटर डॉक्टर' घोषित कर चुके हैं। आगे की स्लाइड में पढ़ें अयप्पा की कामयाबी की पूरी कहानी। 
अब तक हजारों लोगों की मदद करने वाले अयप्पा मसागी कर्नाटक के गडग जिले के दूरदराज के गांव से आते हैं। वे कद काठी से आम इंसानों जैसे हैं। 58 वर्ष के उम्रदराज शख्स है। बाल पक गए हैं। आंखों पर मोटा चश्मा लगाते हैं। बंजर जमीन पर तालाब बनाते हैं। लेकिन माथे पर जरा भी सिकन नहीं, उनके चेहरे पर गंभीरता और सफलता का भाव बराबर नजर आता है। जो भी चाहता है वे उससे बड़ी साफगाई से बात करते हैं। वे बड़े की सहज होकर कहते है कि 'आपको पानी चाहिए? हमें कॉल करो!' अयप्पा 'वॉटर लिटरेसी फाउंडेशन' चलाते हैं।

अयप्पा बताते हैं कि जब वे छोटे बच्चे थे तब उन्हें रोजाना सुबह 3 बजे उठकर पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी। वे पैदल चलकर काफी दूर से एक नदी से पानी भरकर लाते थे। उस वक्त वे सोचते थे कि क्या पानी की समस्या का कोई हल नहीं हैं? खुद से ये सवाल करते-करते उन्होंने संकल्प कर लिया कि जब बड़े होंगे तो इस समस्या से निपटने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगे। 

आखिरकार साल 2002 में मैकेनिकल इंजीनियर अयप्पा ने नौकरी को अलविदा कहा और पानी की समस्या सुलझाने के लिए 'वॉटर लिटरेसी फाउंडेशन' की बुनियाद रखी। अयप्पा कहते हैं कि पानी कोई समस्या नहीं है, बारिश कोई समस्या नहीं है, समस्या है तो सिर्फ लोगों और समुदायों का नजरिया। लोग बात तो करते हैं लेकिन प्रयास नहीं करते हैं।

लोग अगर काम करने का बीड़ा उठा लें तो फिर समस्या नहीं रहेगी। इसी संदेश के साथ अयप्पा ने लोगों को बारिश के पानी को इकट्ठा करने के गुर सिखाने शुरू कर दिए।दुनिया ने अयप्पा के प्रयासों का लोहा तब मान लिया जब साल 2014 में आंध्रप्रदेश के बेहद सूखा प्रभावित इलाके चिलमाचुर में 82 एकड़ बंजर खरीदी और पानी-हरियाली से उसकी तस्वीर बदल दी।

अयप्पा बताते हैं कि कुछ वक्त पहले तक इस जमीन पर आग की लपटों जैसी झुलसा देने वाली हवाएं चला करती थी। जमीन पर दूर-दूर तक एक अदत पौधा नजर नहीं आता था। कंकड़-पत्थरों से भरी जमीन पर काम करना लोहे के चने चबाने जैसा था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अयप्पा बताते हैं कि उन्होंने अपने सहयोगियों से कह दिया था कि एक साल में वो बंजर धरती को पानी से लबालब कर देंगे। इसके लिए अयप्पा ने पूरी 82 एकड़ जमीन को 37 कंपार्टमेंट में बांट दिया।

अयप्पा को अपने इंतजाम पर पूरा यकीन था कि जब भी बारिश होगी तो पानी कहीं जाने वाला नहीं हैं। ऐसा ही हुआ। आज 25 हजार रेतीले गड्ढे और 4 झीलें पानी बारिश के पानी से लबालब हैं। अयप्पा ने इस जमीन के आस-पास पेड़-पौधे भी लगाए हैं। इनमें से 60 फीसदी ऐसे है जो घने जंगल का रूप लेंगे और 40 फीसदी पेड़ फल वाले है जिनसे आर्थिक लाभ होगा।

India’s ‘water doctor’, has turned 84 acres of barren land into a water bowl

अमेरिकी रिसर्च मे बड़ा खुलासा : मांसाहारी खाने मे ऐनिमल प्रोटीन ले रहा लोगो की जान

डॉक्टर गर्थ डेविस कहते है कि मछली और अण्ड़े से इतना नुक्सान नही लेकिन बेहतर होगा कि बीन्स, ताजे फल और खासकर मेवा खाने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को दुरुस्त रखा जा सकता है.

अमेरिकी रिसर्च मे बड़ा खुलासा : मांसाहारी खाने मे ऐनिमल प्रोटीन ले रहा लोगो की जान
27 May 11:25 2016
इंडिया संवाद ब्यूरो
मौटापे की दुनिया मे सुपर डॉक्टर के नाम से मशहूर अमेरिकी डॉक्टर गर्थ डेविस ने अपनी ताजा रिसर्च मे मांसाहारियों के बारे मे अब तक का सबसे बड़ा खुलासा किया है. मोटापे के सबसे बड़े शोध करता डॉ गर्थ डेविस ने कहा है कि मटन और बीफ खाने की लालच हमे जान से मार रही है. अपनी ताजा किताब 'Proteinoholic' मे डॉ डेविस लिखते है कि ऐनिमल प्रोटीन सेहत के हिसाब से सबसे नुक्सान देह भोजन है. उन्होने कहा है कि ऐनिमल प्रोटीन से न सिर्फ डायविटीज, ब्लड प्रेशर, हृदय रोग होते है वल्कि केंसर की आशंका बढ़ जाती है.
डॉक्टर डेविस  ने मांसाहारी देशो मे की गई वर्षो की रिसर्च के बाद अपने निष्कर्ष मे कहा है कि मांस खाने से शरीर मे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता (immune system) घट जाती है. और यह स्थिती inflammation को बढ़ाती है. जिससे कोई भी आदमी बीमारियों से घिरने लगता है.डॉक्टर गर्थ डेविस लिखते है कि ऐनिमल प्रोटीन के कारण वजन बढना स्वभाविक है शरीर मे थकान बढ़नी और मसितिष्क मे भी असर होता है. डॉक्टर गर्थ डेविस कहते है कि मछली और अण्ड़े से इतना नुक्सान नही लेकिन बेहतर होगा कि बीन्स, ताजे फल और खासकर मेवा खाने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को दुरुस्त रखा जा सकता है.

दुनिया भर के डॉक्टरो ने जिसमे मेडिसिन के मशहूर प्रोफेसर नील वरनालर्ड ने कहा है डॉक्टर डेविस की यह रिसर्च मानव स्वास्थ की दिशा मे एक नई क्रांति और आने वाले वक्त मे हमारी डाइट के तौर तरीको को बदल देगी.
एक बालक नित्य विद्यालय पढ़ने जाता था। घर में उसकी माता थी। माँ अपने बेटे पर प्राण न्योछावर किए रहती थी, उसकी हर माँग पूरी करने में आनंद का अनुभव करती। बालक भी पढ़ने-लिखने में बड़ा तेज़ और परिश्रमी था। खेल के समय खेलता, लेकिन पढ़ने के समय पढने का ध्यान रखता।
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एक दिन दरवाज़े पर किसी ने- “माई! ओ माई!” पुकारते हुए आवाज़ लगाई तो बालक हाथ में पुस्तक पकड़े हुए द्वार पर गया, देखा कि एक फटेहाल बुढ़िया काँपते हाथ फैलाए खड़ी थी।
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उसने कहा- “बेटा! कुछ भीख दे दे।“
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बुढ़िया के मुँह से बेटा सुनकर वह भावुक हो गया और माँ से आकर कहने लगा- “माँ! एक बेचारी गरीब माँ मुझे ‘बेटा’ कहकर कुछ माँग रही है।“
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उस समय घर में कुछ खाने की चीज़ थी नहीं, इसलिए माँ ने कहा- “बेटा! रोटी-भात तो कुछ बचा नहीं है, चाहे तो चावल दे दो।“
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इसपर बालक ने हठ करते हुए कहा- “माँ! चावल से क्या होगा? तुम जो अपने हाथ में सोने का कंगन पहने हो, वही दे दो न उस बेचारी को। मैं जब बड़ा होकर कमाऊँगा तो तुम्हें दो कंगन बनवा दूँगा।“
माँ ने बालक का मन रखने के लिए सच में ही सोने का अपना वह कंगन कलाई से उतारा और कहा- “लो, दे दो।“
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बालक खुशी-खुशी वह कंगन उस भिखारिन को दे आया। भिखारिन को तो मानो ख़ज़ाना ही मिल गया। उसका पति अंधा था। कंगन बेचकर उसने परिवार के बच्चों के लिए अनाज, कपड़े आदि जुटा लिए। उधर वह बालक पढ़-लिखकर बड़ा विद्वान हुआ, काफ़ी नाम कमाया।
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उसे बचपन का अपना वचन याद था। एक दिन वह माँ से बोला- “माँ! तुम अपने हाथ का नाप दे दो, मैं कंगन बनवा दूँ।“
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पर माता ने कहा- “उसकी चिंता छोड़। मैं इतनी बूढ़ी हो गई हूँ कि अब मुझे कंगन शोभा नहीं देंगे। हाँ, कलकत्ते के तमाम ग़रीब बालक विद्यालय और चिकित्सा के लिए मारे-मारे फिरते हैं, उनके लिए तू एक विद्यालय और एक चिकित्सालय खुलवा दे जहाँ निशुल्क पढ़ाई और चिकित्सा की व्यवस्था हो।“
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पुत्र ने ऐसा ही किया। ...उस पुत्र का नाम था .... ईश्वरचंद्र विद्यासागर ...!


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असम का शिवाजी था यह वीर योद्धा

 औरंगज़ेब का पूरे भारत पर राज करने का सपना अधूरा था  औरंगज़ेब चाहता था कि उसका साम्राज्य पूरे भारत के ऊपर हो लेकिन भारत के उत्तर पूर्वी हिस्से तक वह नहीं पहुँच पा रहा था.

यह बात औरंगज़ेब को सपनों में सताने लगी थी और तभी औरंगज़ेब के अपने साम्राज्य के विस्तार के लिए 4000 महाकौशल लड़ाके, 30000 पैदल सेना, 21 राजपूत सेनापतियों का दल, 18000 घुड़सवार सैनिक, 2000 धनुषधारी सैनिक की विशाल सेना असम पर आक्रमण करने के लिए भेजी थी.
सबसे रोचक बात यह थी कि असम अगर कोई जीत लेता तो इस तरह से वह उत्तर-पूर्वीं भारत पर कब्जा कर सकता था.
औरंगजेब ने इस इस हमले के लिए एक राजपूत राजा को भेजा था. उस समय असम का नाम अहोम था. राजा राम सिंह अहोम को जीतने के लिए विशाल सेना लेकर निकल चुका था.
अहोम का एक वीर सेनापति, जिसको बहुत ही कम लोग जानते हैं
अहोम राज के सेनापति का नाम था लचित बोरफूकन था. इस नाम से उस समय लगभग सभी लोग वाकिफ थे. पहले भी कई बार लोगों ने अहोम पर हमले किये थे जिसे इसी सेनापति ने नाकाम कर दिए थे. जब लचित को मुग़ल सेना आने की खबर हुई तो उसने अपनी पूरी सेना को ब्रह्मपुत्र नदी के पास एक खड़ा कर दिया था.
लचित बोरफूकन की यह होती थी योजना

कुछ इतिहासकार अपनी पुस्तकों में लिखते हैं कि लचित बोरफूकन (बरफुकन-बोरपूकन, नाम को लेकर आज भी थोड़ा रहस्य है) अपने इलाके को अच्छी तरह से जानता था. वह ब्रह्मपुत्र नदी को अपनी माँ मानता था. असल में अहोम पर हमला करने के लिए सभी को इस नदी से होकर आना पड़ता था और एक तरफ (जिस तरफ लचित सेना होती थी) का भाग ऊचाई पर था और जब तक दुश्मन की सेना नदी पार करती थी तब तक उसके आधे सैनिक मारे जा चुके होते थे. यही कारण था कि कोई भी अहोम पर कब्जा नहीं कर पा रहा था.
वैसे उत्तर पूर्वी राज्य का इतिहास बताता है कि कुछ समय के लिए गोवाहाटी पर मुग़ल का शासन था किन्तु इस वीर सेनापति ने ही गोवाहाटी को मुगलों से आजाद करा लिया था. इसी बात से मुग़ल काफी गुस्से में थे.
सरायघाट का भीषण युद्ध

यह युद्ध सरायघाट के नाम से जाना जाता है. लचित बोरफूकन की सेना के पास बहुत ही कम और सीमित संसाधन थे. सामने से लाखों लोगों की सेना आ रही थी किन्तु लचित बोरफूकन की सेना का मनोबल सातवें आसमान पर था. जैसे ही सेना आई तो कहा जाता है कि लचित के एक सैनिक ने कई सौ औरंगजेब के सैनिकों को मारा था. जब सामने वालों ने लचित बोरफूकन के सैनिकों का मनोबल देखा तो सभी में भगदड़ मच गयी थी.
इस युद्ध के बाद फिर कभी उत्तर-पूर्वी भारत पर किसी ने हमला करने का सपने में भी नहीं सोचा. खासकर औरंगजेब को लचित बोरफूकन की ताकत का अंदाजा हो गया था.
दुर्भाग्य की बात यह है कि आज इस वीर योद्धा का नाम भारत के कुछ 10 प्रतिशत लोग ही जानते हैं








Friday, 27 May 2016

जम्मू-कश्मीर में बन रहा है 

एफिल टॉवर से भी ऊंचा ब्रिज ...

भारतीय रेलवे दुनिया के सबसे बड़े रेल नेटवर्कों में शुमार है. प्रतिदिन दो से तीन करोड़ लोग रेल के माध्यम से यात्रा करते हैं. रेलवे नेटवर्क के साथ-साथ अब चिनाब नदी के ऊपर बनने वाला पुल विश्व का सबसे ऊंचा पुल होगा.
1.3 किलोमीटर लंबे इस पुल की ऊंचाई 359 मीटर होगी. गौर करें कि ये एफिल टॉवर से भी 35 मीटर ऊंचा होगा. इसका काम साल 2016 में पूरा होने की संभावना है. कौरी इलाके में चिनाब नदी पर बन रहा ये पुल बारामुल्ला को जम्मू से जोड़ेगा.

35 बच्चों के पापा जान मुहम्मद ने कहा 

100 तक ले जाउंगा ये आंकड़ा ...


एक मां बाप के लिए औलाद का सुख सबसे बड़ा होता है। लोग अपने जीवन में कम से कम एक बार तो ये सुख चाहते ही हैं। पाकिस्तान के क्वेटा में रहने वाले जान मुहम्मद को ये मौका 35 बार मिल चुका है। वो इसे 100 तक पहुंचाना चाहते हैं। नहीं समझे। हम बताते हैं। जान मुहम्मद 43 साल के हैं और इस उम्र में ही वो 35 बच्चों के पिता हैं।

जान की तीन पत्नियों से 21 बेटियां और 14 बेटे हैं। 39 लोगों का ये हरा भरा परिवार क्वेटा के पास स्थित एक बस्ती में प्यार से रहता है। जान मुहम्मद के बच्चों की उम्र एक हफ्ते से लेकर 16 साल के बीच है।

जॉन मुहम्मद पेशे से डॉक्टर और कारोबारी हैं। उनका कहना है कि 'अल्लाह का शुक्रिया है कि मैं परिवार के बड़े हुए खर्च को उठा पाने में समर्थ हो रहा हूं। मैं परिवार पर एक लाख रुपए महीना खर्च करता हूं।' किसी को कोई तकलीफ नहीं होने देता।

जान मुहम्मद का कहना है कि वो सभी बच्चों को अच्छी शिक्षा देना चाहते हैं। साथ ही लोगों को बताना चाहते हैं कि बड़ा परिवार भी सुखी परिवार हो सकता है। वो कहते हैं मैं चाहता हूं मेरे 100 बच्चे हों। उनकी दो पत्नियों ने पिछले हफ्ते दो बच्चों को जन्म दिया। इन दोनों बच्चों के जन्म का परिवार ने खूब जश्न मनाया।

मिलिए भारत के बेटे से 

 14 साल की उम्र में कर ड़ाला था

 Email का आविष्कार ...

ईमेल के अविष्कार को 34 वर्ष हो चुके हैं। आज इंटरनेट के युग में ईमेल एड्रेस इंटरनेट उपभोगता  की एक मूल पहचान बन गया है। इसका उपयोग हम न केवल सन्देश भेजने, बल्कि नेट बैंकिंग, जॉब सर्चिंग, ऑनलाइन आवेदन से लेकर और भी अन्य कार्यों में करते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि आख़िर इसका अविष्कार किसने किया था?

तो आज हम आपको बताते हैं कि ईमेल के अविष्कार का श्रेय शिवा अय्यादुरई  को

 जाता है, जो अमेरका में रहते हैं, पर मूल रूप से भारतीय ही हैं। आपको जान कर यह 

हैरानी होगी कि शिवा अय्यादुरई उस वक़्त मात्र 14 साल के थे, जब उन्होंने ईमेल का 

अविष्कार कर यह कारनामा कर दिखाया था।

शिवा कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में बेहतर थे। उस समय पर फोरट्रान प्रोग्रामिंग लैंग्वेज का उपयोग होता था।  कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के वजह से इनको  “यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन एंड डेंटिस्ट्री ऑफ न्यू जर्सी ” में प्रोग्रामर के रूप में कार्य करने का अवसर  मिला। जहां उनके मार्गदर्शक डॉ. लेस्ली पी. मिकेलसन ने इनकी प्रोग्रामिंग कुशलता को पहचानते हुए, उन्हें चुनौती के तौर पर एक प्रोग्रामिंग असाइनमेंट दिया।
असाइनमेंट में उनका काम किसी भी संस्था  में किसी भी जानकारी  को साझा करने के लिए उपयोग होने वाले पेपर संचार प्रणाली को इलेक्ट्रॉनिक संचार प्रणाली में बदलना था।
यहां हम आपको  एक बात बता दें कि उस समय कंप्यूटर नेटवर्क जैसे लोकल एरिया नेटवर्क, इंट्रानेटवर्क का कांसेप्ट अस्तित्व में था। जिसका उपयोग किस भी संस्था में दो या अधिक कम्प्यूटर्स के बीच डेटा फाइल को साझा करने के लिए होता था।
आख़िरकार 1978 में अय्यादुरई एक कंप्यूटर प्रोग्राम तैयार करने में सफल हुए, जिसे ‘ई-मेल’ कहा गया। इसमें इनबॉक्स, आउटबॉक्स, फोल्डर्स, मेमो, अटैचमेंट्स आदि सभी कुछ था, और आज भी ये सभी फीचर हर ई-मेल सिस्टम का हिस्सा हैं।

अमेरिकी सरकार ने 30 अगस्त, 1982 को अय्यादुरई को आधिकारिक रूप से ई-मेल

 की खोज करने वाले के रूप में मान्यता दी और वर्ष 1978 की उनकी इस खोज 

के लिए पहला अमेरिकी कॉपीराइट दिया। उस समय सॉफ्टवेयर खोज की सुरक्षा के 

लिए कॉपीराइट ही एकमात्र तरीका था।

वीए शिवा अय्यादुरई का जन्म मुंबई में एक तमिल परिवार में हुआ था, और सात वर्ष की आयु में वह अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए।
14 वर्ष की आयु में उन्होंने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के अध्ययन के लिए न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के कोरैंट इंस्टीट्यूट ऑफ मैथेमैटिकल साइसेंज में विशेष ‘समर’ कार्यक्रम में हिस्सा लिया। बाद में स्नातक उपाधि के लिए वह न्यूजर्सी स्थित लिविंगस्टन हाई स्कूल गए, और वहां पढ़ाई करने के साथ उन्होंने न्यू जर्सी में यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन एंड डेन्टिस्ट्री में रिसर्च फैलो के रूप में काम भी किया।
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जानिए हिन्दू धर्म के सोलह संस्कार ...

संस्कार मनुष्यों के लिए परम आवश्यक होते हैं। संस्कार ही एक साधारण मनुष्य तॉशास्त्रों के अनुसार मनुष्य जीवन के लिए कुछ आवश्यक नियम बनाए गए हैं जिनका पालन करना हमारे लिए आवश्यक माना गया है। मनुष्य जीवन में हर व्यक्ति को अनिवार्य रूप से सोलह संस्कारों का पालन करना चाहिए। यह संस्कार व्यक्ति के जन्म से मृत्यु तक अलग-अलग समय पर किए जाते हैं।
प्राचीन काल से इन सोलह संस्कारों के निर्वहन की परंपरा चली आ रही है। हर संस्कार का अपना अलग महत्व है। जो व्यक्ति इन सोलह संस्कारों का निर्वहन नहीं करता है उसका जीवन अधूरा ही माना जाता है।

ये सोलह संस्कार क्या-क्या हैं –

गर्भाधान संस्कार ( Garbhaadhan Sanskar) – यह ऐसा संस्कार है जिससे हमें योग्य, गुणवान और आदर्श संतान प्राप्त होती है। शास्त्रों में मनचाही संतान प्राप्त के लिए गर्भधारण संस्कार किया जाता है। इसी संस्कार से वंश वृद्धि होती है।
पुंसवन संस्कार (Punsavana Sanskar) – गर्भस्थ शिशु के बौद्धिक और मानसिक विकास के लिए यह संस्कार किया जाता है। पुंसवन संस्कार के प्रमुख लाभ ये है कि इससे स्वस्थ, सुंदर गुणवान संतान की प्राप्ति होती है।
सीमन्तोन्नयन संस्कार ( Simanta Sanskar) – यह संस्कार गर्भ के चौथे, छठवें और आठवें महीने में किया जाता है। इस समय गर्भ में पल रहा बच्चा सीखने के काबिल हो जाता है। उसमें अच्छे गुण, स्वभाव और कर्म का ज्ञान आए, इसके लिए मां उसी प्रकार आचार-विचार, रहन-सहन और व्यवहार करती है।
जातकर्म संस्कार (Jaat-Karm Sansakar) – बालक का जन्म होते ही इस संस्कार को करने से शिशु के कई प्रकार के दोष दूर होते हैं। इसके अंतर्गत शिशु को शहद और घी चटाया जाता है साथ ही वैदिक मंत्रों का उच्चारण किया जाता है ताकि बच्चा स्वस्थ और दीर्घायु हो।
नामकरण संस्कार (Naamkaran Sanskar)– शिशु के जन्म के बाद 11वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। ब्राह्मण द्वारा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बच्चे का नाम तय किया जाता है।
निष्क्रमण संस्कार (Nishkraman Sanskar)  – निष्क्रमण का अर्थ है बाहर निकालना। जन्म के चौथे महीने में यह संस्कार किया जाता है। हमारा शरीर पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश जिन्हें पंचभूत कहा जाता है, से बना है। इसलिए पिता इन देवताओं से बच्चे के कल्याण की प्रार्थना करते हैं। साथ ही कामना करते हैं कि शिशु दीर्घायु रहे और स्वस्थ रहे।
अन्नप्राशन संस्कार ( Annaprashana) – यह संस्कार बच्चे के दांत निकलने के समय अर्थात 6-7 महीने की उम्र में किया जाता है। इस संस्कार के बाद बच्चे को अन्न खिलाने की शुरुआत हो जाती है।
मुंडन संस्कार ( Mundan Sanskar)– जब शिशु की आयु एक वर्ष हो जाती है तब या तीन वर्ष की आयु में या पांचवे या सातवे वर्ष की आयु में बच्चे के बाल उतारे जाते हैं जिसे मुंडन संस्कार कहा जाता है। इस संस्कार से बच्चे का सिर मजबूत होता है तथा बुद्धि तेज होती है। साथ ही शिशु के बालों में चिपके कीटाणु नष्ट होते हैं जिससे शिशु को स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है।
विद्या आरंभ संस्कार ( Vidhya Arambha Sanskar )– इस संस्कार के माध्यम से शिशु को उचित शिक्षा दी जाती है। शिशु को शिक्षा के प्रारंभिक स्तर से परिचित कराया जाता है।
कर्णवेध संस्कार ( Karnavedh Sanskar) –   इस संस्कार में कान छेदे जाते है । इसके दो कारण हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। दूसरा- कान छेदने से एक्यूपंक्चर होता है। इससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होता है। इससे श्रवण शक्ति बढ़ती है और कई रोगों की रोकथाम हो जाती है।
उपनयन या यज्ञोपवित संस्कार (Yagyopaveet Sanskar) – उप यानी पास और नयन यानी ले जाना। गुरु के पास ले जाने का अर्थ है उपनयन संस्कार। आज भी यह परंपरा है। जनेऊ यानि यज्ञोपवित में तीन सूत्र होते हैं। ये तीन देवता- ब्रह्मा, विष्णु, महेश के प्रतीक हैं। इस संस्कार से शिशु को बल, ऊर्जा और तेज प्राप्त होता है।
वेदारंभ संस्कार (Vedaramba Sanskar) – यह संस्कार व्यक्ति के पाठन और पढ़न के लिए ही है। इसके अंतर्गत व्यक्ति को वेदों का ज्ञान दिया जाता है।
केशांत संस्कार (Keshant Sanskar) – केशांत संस्कार अर्थ है केश यानी बालों का अंत करना, उन्हें समाप्त करना। विद्या अध्ययन से पूर्व भी केशांत किया जाता है। मान्यता है गर्भ से बाहर आने के बाद बालक के सिर पर माता-पिता के दिए बाल ही रहते हैं। इन्हें काटने से शुद्धि होती है। शिक्षा प्राप्ति के पहले शुद्धि जरूरी है, ताकि मस्तिष्क ठीक दिशा में काम करें। पुराने में गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद केशांत संस्कार किया जाता था।
समावर्तन संस्कार   (Samavartan Sanskar)– समावर्तन संस्कार अर्थ है फिर से लौटना। आश्रम या गुरुकुल से शिक्षा प्राप्ति के बाद व्यक्ति को फिर से समाज में लाने के लिए यह संस्कार किया जाता था। इसका आशय है ब्रह्मचारी व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक रूप से जीवन के संघर्षों के लिए तैयार किया जाना।
विवाह संस्कार ( Vivah Sanskar) – यह धर्म का साधन है। विवाह संस्कार सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। इसके अंतर्गत वर और वधू दोनों साथ रहकर धर्म के पालन का संकल्प लेते हुए विवाह करते हैं। विवाह के द्वारा सृष्टि के विकास में योगदान दिया जाता है। इसी संस्कार से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त होता है।
अंत्येष्टी संस्कार (Antyesti Sanskar)– अंत्येष्टि संस्कार इसका अर्थ है अंतिम संस्कार। शास्त्रों के अनुसार इंसान की मृत्यु यानि देह त्याग के बाद मृत शरीर अग्नि को समर्पित किया जाता है। आज भी शवयात्रा के आगे घर से अग्नि जलाकर ले जाई जाती है। इसी से चिता जलाई जाती है। आशय है विवाह के बाद व्यक्ति ने जो अग्नि घर में जलाई थी उसी से उसके अंतिम यज्ञ की अग्नि जलाई जाती है।
कहने का एक तात्पर्य यह भी है कि सनातन धर्म एक मात्र ऐसा धर्म है जिसमें व्यक्ति को जन्म से लेकर मरण तक संस्कारो पर चलना ही सिखाया जाता है। सनातन धर्म अत्यंत प्रचीन होते हुए भी आज भी वैज्ञानितका से भरपूर है। 

टूटे हुए तारे से बन गई थी 

यह सुन्दर झील ...

आपने तारा टूटने की कहानियां जरूर सुनी होंगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत में एक ऐसी झील मौजूद है जो टूटे हुए तारे के पृथ्वी पर गिरने से बनी थी। बात हो रही है महाराष्ट्र में मौजूद लोनार झील की। खारे पानी की यह झील बुलढ़ाना जिले में स्थित है।
माना जाता है कि लोनार सरोवर का निर्माण एक उल्का पिंड के पृथ्वी से टकराने के कारण हुआ था। साथ ही वैज्ञानिक यह भी मानते हैं कि इसका खारा पानी इस बात का प्रतीक है कि कभी यहाँ समुद्र था।

इस झील की गहराई लगभग पांच सौ मीटर है। वैज्ञानिकों के अनुमान के मुताबिक क़रीब

 दस लाख टन का उल्का पिंड यहां गिरा था। यह झील समुद्र तल से 1,200 मीटर ऊँची 

सतह पर है और इसका व्यास दस लाख वर्ग-मीटर है।

हालांकि आज भी वैज्ञानिक इस पर गहन शोध कर रहे हैं कि लोनार में जो टक्कर हुई, वह उल्का पिन्ड और पृथ्वी के बीच हुई या फिर कोई ग्रह पृथ्वी से टकराया था।

अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेन्सी नासा (NASA) का मानना है कि बेसाल्टिक चट्टानों से

 बनी यह झील बिलकुल वैसी ही है, जैसी झील मंगल की सतह पर पाई जाती है। यहाँ 

तक कि इसके जल के रासायनिक गुण भी मंगल पर मिलने वाली झीलों के 

रासायनिक गुणों से मिलते-जुलते हैं।

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Thursday, 26 May 2016

क्या आप कल्पना कर सकते है कि अब आपकी सायकल भी बाईक की तरह ही हवा से बातें करेंगी। वो भी बगैर पैडल चलाए !! 
ये सफल करिश्मा भी भारतीय दिमाग ने कर दिखाया है। हम आपको बता देवें सूरत (गुजरात)। के डॉक्टर राजेंद्र पटेल और एसवीएनआईटी के प्रोफेसर पी.आर. शिवदास, प्रोफेसर एस.ए. चनिवाला और प्रोफ़ेसर ए.वी. दोषी ने साइकिल के साथ प्रयोग करके हवा के दबाव से चलने वाली साइकिल बनाई है।
 इस साइकिल में एक सिलेंडर लगाया गया है, जिसके कारण पैडल मारे बिना साइकिल चला सकते हैं। सुनने देखने में यह बहुत आसान बात लगती है, लेकिन इसे बनाने में डॉक्टर राजेंद्र पटेल को तीन साल से भी ज्यादा का समय लगा है।


ऐसे चलती है:
साइकिल में बाइक की तरह ही एक्सलेटर लगाया गया है। इस एक्सलेटर की वजह से सिलेंडर का वॉल्व खुलता और बंद हो जाता है। इस साइकिल की सीट की नीचे कम्प्रेस्ड हवा भरने के लिए एक टंकी लगाई गई है जिसमें 150 बार दबाव से हवा भरी जा सकती है। सिलेंडर के साथ दोनों तरफ छोटे सिलेंडर भी लगाए गए हैं जो हवा बाहर आने पर पिस्टन के जैसे आगे पीछे होते रहते हैं। जब भी हवा बाहर निकलती है तब मेकिनिकली सिलेंडर का रॉड आगे-पीछे होता है और साइकिल के पीछे लगा गियर गोल-गोल घूमने लगता है।
सात बार जितना दबाव होने पर यह साइकिल 10-12 कि.मी. प्रति घंटा की गति से चलती है। साइकिल में ब्रेक लगते ही हवा का दबाव बंद होता है और साइकिल कम दूरी पर रुक जाती है। साइकिल के आगे एक बॉक्स है जिसे चाबी से बंद करने पर इलेक्ट्रिक सर्किट बंद हो जाता है और साइकिल का चलना बंद हो जाता है।

 डॉक्टर राजेन्द्र पटेल ने साइकिल को ऑनलाइन यूएसए की वेबसाइट पर पेटेंट किया है। हाल ही में इसका सिर्फ प्राथमिक मॉडल बनाया गया है।








रोज़ सुबह काला नमक और पानी मिला कर पीना शुरु करें !
( सादे नमक का प्रयोग नहीं करना ) इस घोल को सोल वॉटर कहते हैं ....
काले नमक में 80 खनिज और जीवन के लिए वे सभी आवश्यक प्राकृतिक तत्व पाए जाते हैं जो जरुरी हैं !जिससे आपकी ब्‍लड शुगर - ब्‍लड प्रेशर - ऊर्जा में सुधार - मोटापा और अन्‍य तरह की बीमारियां झट से ठीक हो जाएंगी !
नमक वाला पानी बनाने की विधि :-
एक गिलास हल्‍के गरम पानी में एक तिहाई छोटा चम्‍मच काला नमक मिला गिलास को प्‍लास्‍टिक के ढक्‍कन से ढंक - गिलास को हिलाते हुए नमक मिलाइये और 24 घंटे के लिये छोड़ दें !
24 घंटे के बाद देखिये कि क्‍या काले नमक का टुकड़ा ( क्रिस्‍टल ) पानी में घुल चुका है - उसके बाद इसमें थोड़ा सा काला नमक और मिलाइये !
जब आपको लगे कि पानी में नमक अब नहीं घुल रहा है तो समझिये कि आपका घोल पीने के लिये तैयार हो गया है !
काला नमक और पानी के फायदे क्या है
1 पाचन दुरुस्‍त करे :-
नमक वाला पानी मुंह में लार वाली ग्रंथी को सक्रिय करने में मदद करता है - अच्‍छे पाचन के लिये यह पहला कदम बहुत जरुरी है !
2.पेट के अंदर प्राकृतिक नमक - हाइड्रोक्लोरिक एसिड और प्रोटीन को पचाने वाले इंजाइम को उत्‍तेजित करने में मदद करता है !
इससे खाया गया भोजन टूट कर आराम से पच जाता है !
इसके अलावा इंटेस्‍टाइनिल ट्रैक्ट और लिवर में भी एंजाइम को उत्‍तेजित होने में मदद मिलती है - जिससे खाना पचने में आसानी होती है !
3 नींद लाने में लाभदायक :-
अपरिष्कृत नमक में मौजूदा खनिज हमारी तंत्रिका तंत्र को शांत करता है !
नमक - कोर्टिसोल और एड्रनलाईन - जैसे दो खतरनाक स्‍ट्रेस हार्मोन को कम करता है !
इसलिये इससे रात को अच्‍छी नींद लाने में मदद मिलती है !
4 शरीर करे डिटॉक्‍स :-
नमक में काफी खनिज होने की वजह से एंटीबैक्‍टीरियल का काम भी करता है !
इस‍से शरीर में मौजूद खतरनाक बैक्‍टीरिया का नाश होता है !
5 हड्डी की मजबूती :-
हम मे से ज्‍यादातर को नहीं पता कि हमारा शरीर, हमारी हड्डियों से कैल्‍शियम और अन्‍य खनिज खींचता है जिससे हमारी हड्डियों में कमजोरी आ जाती है !
इसलिये नमक वाला पानी उस मिनरल लॉस की पूर्ती करता है और हड्डियों को मजबूती प्रदान करता है !
6 त्‍वचा की समस्‍या :-
नमक में मौजूद क्रोमियम एक्‍ने से लड़ता है और सल्‍फर से त्‍वचा साफ - कोमल बनती है !
7 नमक वाला पानी पीने से एक्‍जिमा और रैश की समस्‍या दूर होती है !
8 मोटापा घटाए :-
यह पाचन को दुरुस्‍त कर के शरीर की कोशिकाओं तक पोषण पहुंचाता है जिससे मोटापा कंट्रोल करने में मदद मिलती है !
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