Thursday 5 May 2016

विज्ञान को अध्यात्म से जोड़ने की कड़ी है संस्कृत

आधुनिक विज्ञान सृष्टि के रहस्यों को सुलझाने में बौना पड़ रहा है। अलौकिक शक्तियों से 
सम्पन्न मंत्र-विज्ञान की महिमा से विज्ञन आज भी अनभिज्ञ है। उड़न तश्तरियां कहां से 
आती हैं और कहां गायब हो जाती हैं। इस प्रकार की कई बातें हैं जो आज भी विज्ञान के लिए 
रहस्य बनी हुई हैं।

प्राचीन संस्कृत ग्रंथों से ऐसे कई रहस्यों को सुलझाया जा सकता है। विमान

 विज्ञान, नौका विज्ञान से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त हमारे ग्रंथों से प्राप्त 

हुए हैं। इस प्रकार के और भी अनगिनत सूत्र हमारे ग्रंथों में समाए हुए हैं, जिनसे

 आधुनिक विज्ञान को अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश मिल सकते हैं।

आज अगर विज्ञान के साथ संस्कृत का समन्वय कर दिया जाए, तो अनुसंधान के क्षेत्र में 
बहुत उन्नति हो सकती है। हिन्दू धर्म के प्राचीन महान ग्रंथों के अलावा बौद्ध, जैन आदि 
धर्मों के अनेक मूल धार्मिक ग्रंथ भी संस्कृत में ही हैं। संस्कारी जीवन की नींव संस्कृत 
वर्तमान समय में भौतिक सुख-सुविधाओं का अम्बार होने के बावजूद भी मानव-समाज 
अवसाद, तनाव, चिंता और अनेक प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त है, क्योंकि केवल भौतिक
 उन्नति से मानव का सर्वांगीण विकास सम्भव नहीं है, इसके लिए आध्यात्मिक उन्नति
 अत्यंत जरूरी है।

जिस समय संस्कृत का बोलबाला था उस समय मानव-जीवन ज्यादा संस्कारित 

था। यदि समाज को फिर से वैसा संस्कारित करना हो तो हमें फिर से सनातन

 धर्म के प्राचीन संस्कृत ग्रंथों का सहारा लेना ही पड़ेगा।

संस्कृत की धरोहर को सहेजने की दरकार

वर्तमान में ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज और कोलम्बिया जैसे 200 से भी ज्यादा लब्ध-प्रतिष्ठित 
विदेशी विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ाई जा रही है। नासा के पास 60,000 ताड़ के 
पत्ते की पांडुलिपियां हैं, जिनका वे अध्ययन कर रहे हैं। माना जाता है कि रूसी, जर्मन, 
जापानी, अमेरिकी सक्रिय रूप से हमारी पवित्र पुस्तकों से नई चीजों पर शोध कर रहे हैं और
 उन्हें वापस दुनिया के सामने अपने नाम से रख रहे हैं।
दुनिया के 17 देशों में एक या अधिक संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत के बारे में अध्ययन और
 नई प्रौद्योगिकी प्राप्त करने के लिए है, लेकिन संस्कृत को समर्पित उसके वास्तविक अध्ययन
 के लिए एक भी संस्कृत विश्वविद्यालय भारत में नहीं है। जो हैं भी वहां संस्कृत केवल साहित्य
 और कर्मकांड तक सीमित हैं, विज्ञान के रूप में नहीं।

भारत को विश्वगुरू और विश्व में सिरमौर बनाने के लिए संस्कृत के पुनरूत्थान की 

आवश्यकता है, क्योंकि संस्कृत हमारी विरासत है और उस पर हमारा जन्म-सिद्ध 

अधिकार है।

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