विमर्श के 51 सूत्रों की पुस्तिका प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जारी की। इन 51 मुद्दों सूत्रों पर नजर डालें तो यह सूत्र भारत से भारत का परिचय कराते हुए नजर आते हैं।
पहली नजर में शायद आपको कुछ नया नजर न भी आए, क्योंकि जिस धारा को हम छोड़कर आए यह बिंदु आपकी उसी राह पर वापसी कराते हैं। सही मायने में भारतीय राज्य और राष्ट्र को अपनी नजर से देखना है, अपने घर लौटना है। यह घर वापसी विचारों की भी है, राजनीतिक संस्कृति की भी। भारतीय परम्पराओं और सांस्कृतिक प्रवाह की भी है। वे वही बातें हैं जिन्हें हमारे ऋषि, विद्वान, पीर-फकीर, बुद्धिजीवी कहते आ रहे हैं और आधुनिक समय में जिन बातों को महर्षि अरविंद, स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, राममनोहर लोहिया,दीनदयाल उपाध्याय, आचार्य नरेन्द्र देव, जेबी कृपलानी, डा.बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर, डा. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा।
मूल्य आधारित जीवन, मानव कल्याण के लिए धर्म, ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन, विज्ञान और अध्यात्म, महिला सशक्तिकरण, कृषि की ऋषि परम्परा, स्वच्छता और पवित्रता, कुटीर और ग्रामोद्योग जैसे विषयों पर विमर्शों ने इन संगोष्ठियों की उपादेयता न केवल बढ़ाई है, बल्कि यह आयोजन एक सरकारी कर्मकांड से आगे लोक-विमर्श के स्वरूप में बदल गया।
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