आखरी हिन्दू सम्राट की गौरव गाथा ...
आखरी हिन्दू सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य को जब आप पढ़ना शुरू करते हैं तो आपका सीना 56 इंच का हो जाता है…लेकिन इस महान योधा का इतिहास ही जला दिया गया है ...
हिन्दू लोग मारे-काटे जा रहे थे और किसी की भी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह इस कत्लेआम को रोक सके. तभी दिल्ली की राजनीति में हेमचन्द्र विक्रमादित्य का आगमन होता है और यह वीर हिन्दू योद्धा दिल्ली को आजादी दिला देता है.
आप अगर हेमचन्द्र विक्रमादित्य का इतिहास पढेंगे तो आपको यहाँ नजर आएगा कि यह योद्धा कितनी चालाकी से लड़ा और सबसे बड़ी बात कि इसने अकबर जैसे राजा की सेनाओं को मात दी थी. मौत का कफ़न सर पर बांधकर जब इसकी सेना लड़ती थी तो अच्छे-अच्छों की बहादुरी पानी भरने चली जाती थी.
तो आज हम आपको हेमचन्द्र विक्रमादित्य का पूरा शासनकाल बताने वाले हैं. आप आज जान जायेंगे कि कैसे इस योद्धा ने जीरो से हीरो तक का सफ़र तय किया था.
हेमचन्द्र विक्रमादित्य का बचपन
इतिहास में ऐसा वर्णन है कि शेरशाह के उत्तराधिकारी इस्लामशाह की नजर एक बार रिवाड़ी में हाथी की सवारी करते हुए हेमचंद्र पर पड़ी थी. इस्लामशाह हेमचंद्र को अपने साथ ले गए और इनको शानाये मण्डी, दरोगा ए डाक चौकी तथा प्रमुख सेनापति ही नहीं बल्कि अपना निकटतम सलाहाकार बना दिया था. ऐसा इस्लामशाह ने सिर्फ और सिर्फ इनकी प्रतिभा को देखते हुए किया था.
सन 1552 ई. में इस्लामशाह की मत्यु पर इसके 12 वर्षीय पुत्र फिरोज खां को राजा घोषित किया गया था परन्तु तीन दिन के बाद आदित्यशाह सूरी ने उसकी हत्या कर दी थी.
आदित्यशाह कैसा राजा था?
आदित्यशाह अपनी अमीरी में रहने वाला और शराबी किस्म का राजा था. आदित्यशाह को हेमचन्द्र विक्रमादित्य की काबिलियत पर पूरा भरोसा था और इसने हेमचन्द्र को अपनी सारी बागडौर दे दी थी. हेमचन्द्र ने इस विश्वास का आदर किया और आदित्यशाह के लिए इरान तक लड़ाई लड़ी थी.
एक बार ऐसा भी बोला गया है कि आदित्यशाह के खिलाफ चारों तरफ विद्रोह भड़क गया था तब हेमचन्द्र ने सबके मुंह को बंद कर दिया था. इसने एक-एक करके आदित्यशाह के सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया.
सन 1556 में जब हुमायूँ आया
सन 1556 में जब बाबर का बेटा हुमायुं आया तो उसने आदित्यशाह पर हमला कर दिया.
इससे घबराकर यह राजा तो चुनार भाग गया लेकिन हेमचन्द्र को पता था कि अगर हुमायूँ को हराया तब अपना साम्राज्य खड़ा करने का वक़्त आ जायेगा. कुछ ऐसा ही हुआ और हुमायूँ खुद ही मारा गया था. तब हेमचन्द्र विक्रमादित्य ने अपनी सारी सेना को जोड़कर पूरे दम से आसपास के राजाओं पर हमला कर दिया. अकबर की सेनायें भी आसपास थीं और उनको भी हेमचन्द्र विक्रमादित्य की सेना ने मौत के घाट उतार दिया.
ऐसा कई जगह लिखा हुआ है कि हेमचन्द्र ने आगरा पर भी कब्जा कर लिया था और तब वह दिल्ली की ओर बढ़ा था.
वह दिन क्या बताया है जब दिल्ली को मिली थी आजादी?
6 अक्तूबर, 1556 को तुगलकाबाद में एक युद्ध हुआ था. इसमें लगभग 3000 मुगल सैनिक मारे गए थे. यह दिन दिल्ली की आजादी का भी दिन था. कई वर्षों बाद दिल्ली पर किसी हिन्दू राजा का राज कायम हो पाया था.
तो इस तरह से हेमचन्द्र विक्रमादित्य ने दिल्ली पर भगवा झंडा फिर से लहराया था.
इस महान राजा के आगे के सफ़र को हम अपने अगले लेख में लेकर आयेंगे. लेकिन तब तक आपको इस महान राजा के बारें में सभी जानकारी अपने बच्चों और बड़े सभी को बताने की आवश्यकता है ताकि सभी जान सकें कि हेमचन्द्र विक्रमादित्य नाम के हिन्दू योद्धा ने दिल्ली को मुगलों से आजाद कराया था.
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