कभी बहल बस स्टैंड पर चाय की दुकान चलाने वाले नारायण राम ने सोचा भी नहीं होगा कि चाय बनाने में मदद करने वाला उनका लड़का शीशराम वर्मा एक दिन प्रशासनिक सेवा में चयनित होकर आईएएस बन जाएगा। तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद शीशराम का जज्बा ही था कि उन्होंने अपने लक्ष्य को छूटने नहीं दिया और माता-पिता के सपनों को पूरा किया।
सबसे बड़ी बात यह रही कि शीशराम ने केवल प्लस टू तक की पढ़ाई रेगुलर की है तथा इस मुकाम तक पहुंचने के लिए आगे की पूरी पढ़ाई पत्राचार से की है। मंगलवार को घोषित नतीजों में 1078 रैंक हासिल कर आईएएस बने शीशराम की कामयाबी उन युवाओं के लिए प्रेरणादायक है जो परिस्थितियों के आगे घुटने टेक देते है। पारिवारिक परिस्थिति के चलते शीशराम बहल के सरकारी स्कूल से प्लस टू तक पढ़े। रेगुलर पढाई छुटी तो दर्द हुआ पर लक्ष्य विचलित नहीं हुआ।
पिता के साथ चाय की दुकान में हाथ बंटाने लगे तो मां भगवती की डांट से फिर पढ़ाई की राह पर चले और ओढ़ा से जेबीटी की। इसके बाद बीए, एमए (हिन्दी, राजनीतिक शास्त्र), बीएड, एमफिल, नेट सब पत्राचार से पास करते गए। वर्ष 1997 में जेबीटी की नौकरी मिली तथा वर्ष 2010 में पदोन्नति के बाद राजकीय मिडिल विद्यालय सुरपुरा कलां में एसएस अध्यापक बने।
पिछले साल एचसीएस के मैन एक्जाम तक पहुंचे, लेकिन शीशराम का एकमात्र लक्ष्य था आईएएस बनना और इसके लिए अवैतनिक होकर विभाग से एक साल की छुट्टी लेकर दिल्ली मुखर्जी नगर में लाइब्रेरी ज्वाइन की।
बकौल शीशराम, उनकी कामयाबी में मां भगवती देवी का आशीर्वाद ही रहा, जिन्होंने अनपढ़ होते हुए मुझे पढ़ने के लिए निरंतर प्रेरित किया। इसके अलावा हिसार से सुरेश कुमार, अध्यापक बाबूलाल लांबा, सुनील पातवान का विशेष सहयोग रहा। पिता की कामयाबी पर पुत्र गौरव तथा पुत्री जया भी बाग-बाग है।
महत्व समझकर जुनूनी बनेंगे, तो युवा बनेंगे आईएएस
शीशराम का कहना है कि युवाओं को पहले इसके महत्व को समझना होगा। जीवन का लक्ष्य बनाना होगा और जूझना होगा। अपनी कामयाबी की चर्चा में उन्होंने बताया कि रात को पौने नौ बजे रेडियो समाचार सुनना, दो से तीन अखबार पढ़ना, मासिक और वार्षिक पत्रिका पढ़ने के अलावा जनरल स्टडी के लिए एनसीआरटी पुस्तकों का अध्ययन करना उनकी सफलता का राज रहा है। वे जब छुट्टी पर थे तब 15 घंटे और उसके बाद अध्यापन ड्यूटी पूरी होने के बाद दस घंटे नियमित पढाई करते थे।
सबसे बड़ी बात यह रही कि शीशराम ने केवल प्लस टू तक की पढ़ाई रेगुलर की है तथा इस मुकाम तक पहुंचने के लिए आगे की पूरी पढ़ाई पत्राचार से की है। मंगलवार को घोषित नतीजों में 1078 रैंक हासिल कर आईएएस बने शीशराम की कामयाबी उन युवाओं के लिए प्रेरणादायक है जो परिस्थितियों के आगे घुटने टेक देते है। पारिवारिक परिस्थिति के चलते शीशराम बहल के सरकारी स्कूल से प्लस टू तक पढ़े। रेगुलर पढाई छुटी तो दर्द हुआ पर लक्ष्य विचलित नहीं हुआ।
पिता के साथ चाय की दुकान में हाथ बंटाने लगे तो मां भगवती की डांट से फिर पढ़ाई की राह पर चले और ओढ़ा से जेबीटी की। इसके बाद बीए, एमए (हिन्दी, राजनीतिक शास्त्र), बीएड, एमफिल, नेट सब पत्राचार से पास करते गए। वर्ष 1997 में जेबीटी की नौकरी मिली तथा वर्ष 2010 में पदोन्नति के बाद राजकीय मिडिल विद्यालय सुरपुरा कलां में एसएस अध्यापक बने।
पिछले साल एचसीएस के मैन एक्जाम तक पहुंचे, लेकिन शीशराम का एकमात्र लक्ष्य था आईएएस बनना और इसके लिए अवैतनिक होकर विभाग से एक साल की छुट्टी लेकर दिल्ली मुखर्जी नगर में लाइब्रेरी ज्वाइन की।
बकौल शीशराम, उनकी कामयाबी में मां भगवती देवी का आशीर्वाद ही रहा, जिन्होंने अनपढ़ होते हुए मुझे पढ़ने के लिए निरंतर प्रेरित किया। इसके अलावा हिसार से सुरेश कुमार, अध्यापक बाबूलाल लांबा, सुनील पातवान का विशेष सहयोग रहा। पिता की कामयाबी पर पुत्र गौरव तथा पुत्री जया भी बाग-बाग है।
महत्व समझकर जुनूनी बनेंगे, तो युवा बनेंगे आईएएस
शीशराम का कहना है कि युवाओं को पहले इसके महत्व को समझना होगा। जीवन का लक्ष्य बनाना होगा और जूझना होगा। अपनी कामयाबी की चर्चा में उन्होंने बताया कि रात को पौने नौ बजे रेडियो समाचार सुनना, दो से तीन अखबार पढ़ना, मासिक और वार्षिक पत्रिका पढ़ने के अलावा जनरल स्टडी के लिए एनसीआरटी पुस्तकों का अध्ययन करना उनकी सफलता का राज रहा है। वे जब छुट्टी पर थे तब 15 घंटे और उसके बाद अध्यापन ड्यूटी पूरी होने के बाद दस घंटे नियमित पढाई करते थे।
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