बंजर जमीन को कर देते हैं पानी से लबालब
ये हैं देश के 'वॉटर डॉक्टर'...
अयप्पा के नाम और शोहरत से आप भले ही वाकिफ न हों, लेकर देश और दुनिया के जलवेत्ता इन्हें 'वॉटर डॉक्टर' घोषित कर चुके हैं। आगे की स्लाइड में पढ़ें अयप्पा की कामयाबी की पूरी कहानी।
अब तक हजारों लोगों की मदद करने वाले अयप्पा मसागी कर्नाटक के गडग जिले के दूरदराज के गांव से आते हैं। वे कद काठी से आम इंसानों जैसे हैं। 58 वर्ष के उम्रदराज शख्स है। बाल पक गए हैं। आंखों पर मोटा चश्मा लगाते हैं। बंजर जमीन पर तालाब बनाते हैं। लेकिन माथे पर जरा भी सिकन नहीं, उनके चेहरे पर गंभीरता और सफलता का भाव बराबर नजर आता है। जो भी चाहता है वे उससे बड़ी साफगाई से बात करते हैं। वे बड़े की सहज होकर कहते है कि 'आपको पानी चाहिए? हमें कॉल करो!' अयप्पा 'वॉटर लिटरेसी फाउंडेशन' चलाते हैं।
अयप्पा बताते हैं कि जब वे छोटे बच्चे थे तब उन्हें रोजाना सुबह 3 बजे उठकर पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी। वे पैदल चलकर काफी दूर से एक नदी से पानी भरकर लाते थे। उस वक्त वे सोचते थे कि क्या पानी की समस्या का कोई हल नहीं हैं? खुद से ये सवाल करते-करते उन्होंने संकल्प कर लिया कि जब बड़े होंगे तो इस समस्या से निपटने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगे।
आखिरकार साल 2002 में मैकेनिकल इंजीनियर अयप्पा ने नौकरी को अलविदा कहा और पानी की समस्या सुलझाने के लिए 'वॉटर लिटरेसी फाउंडेशन' की बुनियाद रखी। अयप्पा कहते हैं कि पानी कोई समस्या नहीं है, बारिश कोई समस्या नहीं है, समस्या है तो सिर्फ लोगों और समुदायों का नजरिया। लोग बात तो करते हैं लेकिन प्रयास नहीं करते हैं।
लोग अगर काम करने का बीड़ा उठा लें तो फिर समस्या नहीं रहेगी। इसी संदेश के साथ अयप्पा ने लोगों को बारिश के पानी को इकट्ठा करने के गुर सिखाने शुरू कर दिए।दुनिया ने अयप्पा के प्रयासों का लोहा तब मान लिया जब साल 2014 में आंध्रप्रदेश के बेहद सूखा प्रभावित इलाके चिलमाचुर में 82 एकड़ बंजर खरीदी और पानी-हरियाली से उसकी तस्वीर बदल दी।
अयप्पा बताते हैं कि जब वे छोटे बच्चे थे तब उन्हें रोजाना सुबह 3 बजे उठकर पानी के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती थी। वे पैदल चलकर काफी दूर से एक नदी से पानी भरकर लाते थे। उस वक्त वे सोचते थे कि क्या पानी की समस्या का कोई हल नहीं हैं? खुद से ये सवाल करते-करते उन्होंने संकल्प कर लिया कि जब बड़े होंगे तो इस समस्या से निपटने के लिए कुछ न कुछ जरूर करेंगे।
आखिरकार साल 2002 में मैकेनिकल इंजीनियर अयप्पा ने नौकरी को अलविदा कहा और पानी की समस्या सुलझाने के लिए 'वॉटर लिटरेसी फाउंडेशन' की बुनियाद रखी। अयप्पा कहते हैं कि पानी कोई समस्या नहीं है, बारिश कोई समस्या नहीं है, समस्या है तो सिर्फ लोगों और समुदायों का नजरिया। लोग बात तो करते हैं लेकिन प्रयास नहीं करते हैं।
लोग अगर काम करने का बीड़ा उठा लें तो फिर समस्या नहीं रहेगी। इसी संदेश के साथ अयप्पा ने लोगों को बारिश के पानी को इकट्ठा करने के गुर सिखाने शुरू कर दिए।दुनिया ने अयप्पा के प्रयासों का लोहा तब मान लिया जब साल 2014 में आंध्रप्रदेश के बेहद सूखा प्रभावित इलाके चिलमाचुर में 82 एकड़ बंजर खरीदी और पानी-हरियाली से उसकी तस्वीर बदल दी।
अयप्पा बताते हैं कि कुछ वक्त पहले तक इस जमीन पर आग की लपटों जैसी झुलसा देने वाली हवाएं चला करती थी। जमीन पर दूर-दूर तक एक अदत पौधा नजर नहीं आता था। कंकड़-पत्थरों से भरी जमीन पर काम करना लोहे के चने चबाने जैसा था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अयप्पा बताते हैं कि उन्होंने अपने सहयोगियों से कह दिया था कि एक साल में वो बंजर धरती को पानी से लबालब कर देंगे। इसके लिए अयप्पा ने पूरी 82 एकड़ जमीन को 37 कंपार्टमेंट में बांट दिया।
अयप्पा को अपने इंतजाम पर पूरा यकीन था कि जब भी बारिश होगी तो पानी कहीं जाने वाला नहीं हैं। ऐसा ही हुआ। आज 25 हजार रेतीले गड्ढे और 4 झीलें पानी बारिश के पानी से लबालब हैं। अयप्पा ने इस जमीन के आस-पास पेड़-पौधे भी लगाए हैं। इनमें से 60 फीसदी ऐसे है जो घने जंगल का रूप लेंगे और 40 फीसदी पेड़ फल वाले है जिनसे आर्थिक लाभ होगा।
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