Sunday, 25 February 2018

चर्च की शक्ति और हिन्दुओं की परस्पर एकता

 intro -------हिंदूवादी संगठन अगर आज भी ध्यान देते है। तो उनकी आने वाली पीढ़ियां बच जाएगी। जयललिता हिन्दू समाज का हित करना चाहती थी। बदले में हिन्दुओं से राजनीतिक समर्थन वोट बैंक के रूप में लेना चाहती थी। मगर हिन्दू समाज ने जातिवाद, बाहुबल, प्रांतवाद, भाई-भतीजावाद के चलते उनका साथ न दिया। हिन्दू समाज ने अपने आंशिक तात्कालिक हित के लिए दूरगामी हित की अनदेखी कर दी। 2002 से आज-तक तमिलनाडु में हजारों लोग ईसाई बन चुकें हैं। ये सभी हिन्दू न केवल ईसाई होने से बच जाते, अपितु जो बन चुकें थे। वे भी वापिस आ जाते। मगर ऐसा नहीं हुआ। अपनी कब्र खोदने का कार्य जैसा तमिल नाडु में हिन्दुओं ने किया वैसा पुरे देश में भी हिन्दू कर रहा हैं। आगे आपको सोचना आपको है कि आपका हित किस कार्य में है..?------intro--------

पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने सन 2002 में तमिलनाडु में धर्मान्तरण विरोध बिल लागु किया था। इस विधेयक के अंतर्गत किसी भी प्रकार के प्रलोभन अथवा दबाव में कोई किसी का धर्मान्तरण करता हैं। तो वह दंडनीय होगा एवं उसमें सजा का भी प्रावधान होगा। स्वाभाविक रूप से धर्मान्तरण विधेयक का सबसे अधिक विरोध ईसाई मिशनरी ने करना था। तत्कालीन विपक्षी पार्टियों DMK एवं कांग्रेस द्वारा जयललिता के इस कदम का पुरजोर विरोध किया गया। उनका लक्ष्य ईसाई, मुसलमानों, कम्युनिस्ट आदि को इस विधेयक के विरोध में संगठित करना था। जबकि जयललिता का लक्ष्य इस विधेयक के समर्थन में हिन्दू वोटबैंक को संगठित करना था। इस विधेयक के समर्थन में विधान सभा में जयललिता ने महात्मा गाँधी द्वारा ईसाई धर्मान्तरण के विरोध में दिए गए वक्तवयों को भी पक्ष में प्रस्तुत किया था। जिसके विरोध में कांग्रेस पार्टी DMK के साथ में खड़ी थी। 

सरकार के इस कदम का शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती ने समर्थन किया। इससे पूर्व भी जयललिता रामजन्मभूमि मंदिर और समान नागरिक संहिता जैसे विषयों का समर्थन कर चुकीं थी। इससे पहले भी डॉ एमजीआर की 1982 की सरकार के समय कन्याकुमारी में हिन्दू-ईसाई दंगे हुए थे। उन दंगों की जाँच के लिए एक आयोग बैठाया गया था। जिसकी अध्यक्षता द्रविड़ समर्थक नेता वेणुगोपाल ने की थी। वेणुगोपाल ने अपनी जाँच में पाया कि कन्याकुमारी में भारी मात्रा में हिन्दू विरोधी साहित्य ईसाई मिशनरी द्वारा प्रकाशित किया गया है। उनका कथन तो यह भी था कि ईसाई मिशनरियों का उद्देश्य कन्याकुमारी का नाम परिवर्तन कर कनिमैरी अर्थात कुंवारी मैरी करने का प्रतीत होता है। उस समय आयोग के यह प्रस्ताव दिया था कि डॉ एमजीआर की सरकार को भी ओड़िसा, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश के समान धर्म परिवर्तन विधेयक लागु करना चाहिए। जयललिता ने संभवत उसी छूटे हुए कार्य को पूरा करने का प्रयत्न किया था। 

मगर जयललिता तमिलनाडु में चर्च की शक्ति और हिन्दुओं की परस्पर एकता का गलत आंकलन कर गई। इस विधेयक के लागु होते ही ईसाईयों द्वारा वृहद् स्तर पर प्रतिक्रिया हुई। ईसाईयों द्वारा संचालित हर गिरिजाघर से लेकर कॉलेज आदि में बड़े पैमाने पर सरकार के विरोध में प्रस्ताव पारित हुए। विरोधी पार्टियों के अनेक नेता उनके कार्यक्रमों में शामिल होकर सरकार का विरोध करने लगे। अंदर से चर्च की संस्थाएँ जो अपनी मान्यताओं और कार्य को लेकर विभाजित थी। इस कदम के विरोध में संगठित हो गई। उनका संगठन एक वोट बैंक के रूप में खड़ा हो गया। जयललिता को ब्राह्मणवाद को बढ़ावा देने का आरोप लगाया गया। इस परिस्थिति को लुभाने में विपक्ष ने कोई कसर बाकि नहीं छोड़ी। इधर हिन्दू संगठन गहरी नींद में सोये रहे। इसका परिणाम अगले संसदीय चुनाव में सामने आया। जयललिता तमिलनाडु से एक भी लोकसभा की सीट निकालने में असफल रही। परिणाम जयललिता ने इस विधेयक को न केवल निरस्त कर दिया। अपितु शंकराचार्य को दीवाली के दिन गिरफ्तार कर अपनी ब्राह्मणवादी छवि को सुधारने का प्रयास किया। बाकि सब अब इतिहास है। 

No comments:

Post a Comment