Tuesday, 20 February 2018

हवा में लकड़ी की तलवार घुमाने वाले वीरों से
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जन्मना जाति मानने वाले और न मानने वाले दोनों ही प्रकार के लोगों से मेरी प्रार्थना है कि अपनी लकड़ी की तलवार हवा में घुमाते हुए आप स्वयम को वीर माने रहिये , अन्य को आप विदूषक दिखेंगे और वह इसका लाभ लेगा .
कृपया अपनी शक्ति सार्थक कार्य में लगायें ,आगे जैसी आपकी इच्छा.
१९४७ के बाद हिन्दुओं के लिए धर्म निजी विश्वास का विषय बनाया जा चूका है कानूनन और इस्लाम तथा ईसाइयत को अल्पसंख्यक के रूप में विशेष संरक्षण देकर सामूहिक शक्ति का दर्जा दिया जा चूका है ,यह महापाप कांग्रेस के शीर्ष नेताओं ने किया ,साधारण कांग्रेसी कुछ समझा नहीं,भाजपा इस विषय में अब तक निर्वीर्य सिद्ध हुयी है .
स्थिति यह है कि आप क्या मानते हैं (अगर आप हिन्दू हैं तो ) यह आपका वयस्क व्यक्ति का निजी अधिकार है ,अन्य को आप विवश नहीं कर सकते .शासन की तो इसमें कोई रूचि ही नहीं है कि आप क्या मानते हैं . अतः आप जाति जन्म से माने या न माने ,यह आपका निजी विश्वास है और आप इसकी अभिव्यक्ति कर सकते हैं पर आपको इस विषय में कोई अधिकार प्राप्त नहीं है जबकि इस्लम और ईसाइयत को अधिकार प्राप्त है कि वे आपके विरुद्ध अभियान चलायें .
यह स्थिति एक मामूली अध्यादेश या संशोधन से बदली जा सकती है कि.
" भारत का राज्य बहुसंख्यकों के धर्म को भी वैसा ही संरक्षण देगा जैसा अल्प संख्यकों के religion और मज्हब को देता है" . यह निवेदन ४० वर्ष से तो मैं कर रहा हूँ ,अन्य लोग और पहले से कर रहे हैं .
भारत को धार्मिक स्वतंत्रता की घोषणा करनी चाहिए कि हर भारतीय को अपने मन का धर्म चुनने का अधिकार होगा . ऐसा आज तक नहीं किया गया क्योंकि इस से मुसलमानों और ईसाइयों की करोडो की संख्या हिन्दू बनने को उमड़ पड़ेगी . इसकी जगह धार्मिक सुधार की आड़ में हिन्दू धर्म पर आक्रमण की छूट ही नहीं प्रोत्साहन दिया जा रहा है जिसमे दलितवाद आदि आदि औजार हैं
जातिगत विषमता कानूनन दंडनीय अपराध है अतः उस विषमता के विरुद्ध तलवार भांजने वाले या तो विदूषक हैं या किसी की कठपुतली . भगवान् कृष्णके शब्दों में वे " जीर्णं चरन्ति ".
आज किसी समूह या जाति या समाजके पास कोई अधिकार ही नहीं है कि वह जाति के विषय में कोई निर्णय लेकर उसे लागू करा सके . आप केवल बात कर सकते हैं . अतः आप जाति जन्म से मानते हैं या उसके विरोधी हैं ,इसकी कोई विधिक हैसियत नहीं है . आ प को मन है तो पहले समाज को अधिकार तो दिलाइये ..
वैसे अभी जन्मना जाति ही कानून में मान्य है . आप स्वयं को जाति रहित कहने के तो अधिकारी हैं पर जन्म से भिन्न अपनी जाति बताने पर आपके लिए जेल का प्रावधान है
. यह विधिक स्थिति जानकर भी ,फिर आप हवा में अपनी लकड़ी की तलवार शौक से घुमाइए , मनोरंजन अच्छा होगा .दुनिया हँसेगी और कुछ लोग लाभ भी उठायेगे तो उठायें जी , आपकी बला से .आपको तो अपनी कहनी है ,कहिये .आप १९१० या २० या ३० या ४० में मन से रहें ,भले तन २०१८ में है
ओए , तुस्सी मौज करो बादशाओ .

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