छत्तीसगढ़ के चावल से होगी अब कैंसर की बीमारी खत्म !…
छत्तीसगढ़ के चावल से होगी अब कैंसर की बीमारी खत्म !…धान की इन 3 किस्मों में कैंसर खत्म करने की ताकत
कृषि विश्ववविद्यालय व भाभा अटॉमिक की रिसर्च में खुलासा
मुख्यमंत्री रमन सिंह तथा कृषि मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने जतायी खुशी
मुख्यमंत्री रमन सिंह तथा कृषि मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने जतायी खुशी
रायपुर 16 फरवरी 2018/ छत्तीसगढ़ का धान खतरनाक बीमारी कैन्सर से लड़ने में मददगार साबित हुआ है। भाभा अटॉमिक रिसर्च सेन्टर मुम्बई में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के सहयोग से किये जा रहे अनुसंधान में छत्तीसगढ़ की तीन औषधीय धान प्रजातियों – गठवन, महाराजी और लाईचा में फेफडे़ एवं स्तन के कैन्सर की कोशिकाओं को खत्म करने के गुण पाए गए हैं। इनमें से लाईचा प्रजाति कैन्सर की कोशिकाओं का प्रगुणन रोकने और उन्हें समाप्त करने में सर्वाधिक प्रभावी साबित हुई है। औषधीय धान की ये तीनों प्रजातियां इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में संग्रहित जर्मप्लाज्म से ली गई हैं। इस नये अनुसंधान से कैन्सर के इलाज में आशा की एक नई किरण जागी है। मुख्यमंत्री डॉ0 रमन सिंह और कृषि मंत्री श्री बृजमोहन अग्रवाल ने अनुसंधान के परिणामों पर खुशी जाहिर की है। उन्होंने कहा कि यह छत्तीसगढ़ के लिए गर्व की बात है। कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से लड़ने में प्रदेश की बहुमूल्य धान प्रजातियां समक्ष है। कृषि वैज्ञानिक स्वर्गीय डॉ रिछारिया की मेहनत से इस तरह की दुर्लभ प्रजातियों के धान जर्मप्लाज्म छत्तीसगढ़ के पास उपलब्ध है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और भाभा अटॉमिक रिसर्च सेन्टर मुम्बई के मध्य हुए अनुबंध के तहत बार्क मुम्बई में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के एम.एस.सी. के छात्र श्री निषेष ताम्रकार द्वारा बार्क के वैज्ञानिक डॉ. दीपक शर्मा (रेडिएशन बायोलॉजी एवं हेल्थ साइंस डिविजन) एवं डॉ. बी.के. दास (न्यूक्लियर एग्रीकल्चर एण्ड बायोटेक्नोलॉजी डिविजन) के मार्गदर्शन में किये गए एक अनुसंधान में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के जर्मप्लाज्म में संग्रहित औषधीय धान की तीन किस्मों गठवन, महाराजी और लाईचा के एक्सट्रेक्ट का प्रयोग मानव ब्रेस्ट कैन्सर सेल्स (एम.सी.एफ.-7) एवं मानव लंग कैन्सर सेल्स (ए.-549) के प्रगुणन को रोकने के लिए किया गया।
प्रयोगशाला में किये गए अनुसंधान के निर्ष्कषों से पता चलता है कि इन तीनों किस्मों के मेथेनॉल में बने एक्सट्रेक्ट ने हयूमन ब्रेस्ट कैन्सर और हयूमन लंग कैन्सर कोशिकाओं की वृद्धि को ना केवल रोक दिया बल्कि कैन्सर कोशिकाओं को नष्ट भी कर दिया। धान की इन तीनों किस्मों में से लाईचा किस्म ब्रेस्ट कैन्सर सेल्स को नष्ट करने में सबसे प्रभावी साबित हुई। लंग कैन्सर सेल्स को नष्ट करने में तीनों किस्में लगभग बराबर प्रभावी रहीं। हयूमन ब्रेस्ट कैन्सर सेल्स के संबंध में किये गए अनुसंधान में गठवन धान के एक्सट्रेक्ट ने जहां 10 प्रतिशत कैन्सर सेल्स को नष्ट किया वहीं महाराजी के एक्सट्रेक्ट ने लगभग 35 प्रतिशत और लाईचा के एक्सट्रेक्ट ने लगभग 65 प्रतिशत कैन्सर सेल्स को नष्ट कर दिया। इसी प्रकार हयूमन लंग कैन्सर के संबंध में किये गए अनुसंधान में गठवन धान के एक्सट्रेक्ट ने जहां 70 प्रतिशत कैन्सर सेल्स को नष्ट किया वहीं महाराजी के एक्सट्रेक्ट ने लगभग 70 प्रतिशत और लाईचा के एक्सट्रेक्ट ने लगभग 100 प्रतिशत कैन्सर सेल्स को नष्ट कर दिया। कैन्सर सेल्स नष्ट करने के लिए आवश्यक एक्टिव इन्ग्रेडिएट की मात्रा 200 ग्राम चावल प्रति दिन खाने से प्राप्त की जा सकती है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति डॉ. एस.के. पाटील ने अनुसंधान के परिणामों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा है कि डॉ. आर.एच. रिछारिया द्वारा संग्रहित छत्तीसगढ़ की धान की किस्मों में कैन्सर का इलाज पाया जाना विश्वविद्यालय और छत्तीसगढ़ राज्य के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अनुसंधान के परिणामों के आधार पर शीघ्र ही कैन्सर का इलाज खोजा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि अनुसंधान के अगले चरण में इन चावल की किस्मों से एक्टिव तत्व अलग करने एवं उनका चूहों पर प्रयोग करने की योजना तैयार की जा रही है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर और भाभा अटॉमिक रिसर्च सेन्टर मुम्बई के मध्य हुए अनुबंध के तहत बार्क मुम्बई में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के एम.एस.सी. के छात्र श्री निषेष ताम्रकार द्वारा बार्क के वैज्ञानिक डॉ. दीपक शर्मा (रेडिएशन बायोलॉजी एवं हेल्थ साइंस डिविजन) एवं डॉ. बी.के. दास (न्यूक्लियर एग्रीकल्चर एण्ड बायोटेक्नोलॉजी डिविजन) के मार्गदर्शन में किये गए एक अनुसंधान में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के जर्मप्लाज्म में संग्रहित औषधीय धान की तीन किस्मों गठवन, महाराजी और लाईचा के एक्सट्रेक्ट का प्रयोग मानव ब्रेस्ट कैन्सर सेल्स (एम.सी.एफ.-7) एवं मानव लंग कैन्सर सेल्स (ए.-549) के प्रगुणन को रोकने के लिए किया गया।
प्रयोगशाला में किये गए अनुसंधान के निर्ष्कषों से पता चलता है कि इन तीनों किस्मों के मेथेनॉल में बने एक्सट्रेक्ट ने हयूमन ब्रेस्ट कैन्सर और हयूमन लंग कैन्सर कोशिकाओं की वृद्धि को ना केवल रोक दिया बल्कि कैन्सर कोशिकाओं को नष्ट भी कर दिया। धान की इन तीनों किस्मों में से लाईचा किस्म ब्रेस्ट कैन्सर सेल्स को नष्ट करने में सबसे प्रभावी साबित हुई। लंग कैन्सर सेल्स को नष्ट करने में तीनों किस्में लगभग बराबर प्रभावी रहीं। हयूमन ब्रेस्ट कैन्सर सेल्स के संबंध में किये गए अनुसंधान में गठवन धान के एक्सट्रेक्ट ने जहां 10 प्रतिशत कैन्सर सेल्स को नष्ट किया वहीं महाराजी के एक्सट्रेक्ट ने लगभग 35 प्रतिशत और लाईचा के एक्सट्रेक्ट ने लगभग 65 प्रतिशत कैन्सर सेल्स को नष्ट कर दिया। इसी प्रकार हयूमन लंग कैन्सर के संबंध में किये गए अनुसंधान में गठवन धान के एक्सट्रेक्ट ने जहां 70 प्रतिशत कैन्सर सेल्स को नष्ट किया वहीं महाराजी के एक्सट्रेक्ट ने लगभग 70 प्रतिशत और लाईचा के एक्सट्रेक्ट ने लगभग 100 प्रतिशत कैन्सर सेल्स को नष्ट कर दिया। कैन्सर सेल्स नष्ट करने के लिए आवश्यक एक्टिव इन्ग्रेडिएट की मात्रा 200 ग्राम चावल प्रति दिन खाने से प्राप्त की जा सकती है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति डॉ. एस.के. पाटील ने अनुसंधान के परिणामों पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा है कि डॉ. आर.एच. रिछारिया द्वारा संग्रहित छत्तीसगढ़ की धान की किस्मों में कैन्सर का इलाज पाया जाना विश्वविद्यालय और छत्तीसगढ़ राज्य के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अनुसंधान के परिणामों के आधार पर शीघ्र ही कैन्सर का इलाज खोजा जा सकेगा। उन्होंने कहा कि अनुसंधान के अगले चरण में इन चावल की किस्मों से एक्टिव तत्व अलग करने एवं उनका चूहों पर प्रयोग करने की योजना तैयार की जा रही है।
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