विश्वविख्यात अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने अपने मालिको के दबाव में कारपोरेट सेकटर को लाखो करोड़ के लोंन बांटे ....कारपोरेट सेक्टर ने उस पैसे को हजम करके .एक हिस्सा कांग्रेस को दिया और शेष हिस्सा कर गए हजम ...फिर जब बैंक डूबने लगे तो मनमोहन सरकार ने बैको को आर्थिक पॅकेज दिया जनता के पैसो से ..कुछ इस तरह देश तरक्की कर रहा था सोनिया की मनमोहन सरकार में ..फिर आया मोदी सरकार का दौर ..
सरकार बनते ही कांग्रेस गिरोह की तमाम बाधाओं से पार पाते हुए .जब बैंकिग सेकटर के डूबे हुए लाखो करोड़ के आकडे देखे तो मोदी सरकार सकपकाई ..अगर मोदी इस राज को तत्काल खोलते तो देश की बैंकिग ब्यवस्था तो धरासायी होती ही साथ में विदेशी निवेश भी शून्य होता .फिर भारत में कैसा हाहाकार मचता जिसकी कल्पना करना भी असंभव ..इसलिए मोदी सरकार ने सबसे पहले बैंकिग सेकटर को कसना शुरू किया ...
ये कहानी लम्बी है ..फिलहाल .सोनिया सरकार में जो कारपोरेट सेकटर .बैंको से लोन लेकर हजम कर जाया करते थे अब उनको ही नीलाम करके पैसा बसूला जाएगा !
सरकार बनते ही कांग्रेस गिरोह की तमाम बाधाओं से पार पाते हुए .जब बैंकिग सेकटर के डूबे हुए लाखो करोड़ के आकडे देखे तो मोदी सरकार सकपकाई ..अगर मोदी इस राज को तत्काल खोलते तो देश की बैंकिग ब्यवस्था तो धरासायी होती ही साथ में विदेशी निवेश भी शून्य होता .फिर भारत में कैसा हाहाकार मचता जिसकी कल्पना करना भी असंभव ..इसलिए मोदी सरकार ने सबसे पहले बैंकिग सेकटर को कसना शुरू किया ...
ये कहानी लम्बी है ..फिलहाल .सोनिया सरकार में जो कारपोरेट सेकटर .बैंको से लोन लेकर हजम कर जाया करते थे अब उनको ही नीलाम करके पैसा बसूला जाएगा !
पीएनबी_घोटाले को अंजाम देने के लिए लेटर ऑफ अंडरटेकिंग यानी एलओयू (LoU) का इस्तेमाल किया गया, जिसे आसान भाषा में बैंक गारंटी पत्र कह सकते हैं. यह पत्र एक बैंक द्वारा दूसरे बैंकों की ब्रांच के लिए जारी की जाती हैं, जिसके तहत कोई शख्स उस बैंक से कर्ज लेता है. कर्ज की गारंटी पीएनबी की होती है, ऐसे में अगर कर्जदाता अपना कर्ज नहीं चुका पाता है तो उसकी पूरी जिम्मेदारी गारंटी देने वाले बैंक पर आ जाती है.....
अब तक पंजाब नेशनल बैंक को करीब 11,300 करोड़ रुपए का घोटाला हो चुका है. बैंक गारंटी पत्र के दम पर नीरव मोदी ने उतनी गारंटी उपलब्ध करा ली, जितने के हीरे उनके पास नहीं थे... इस घोटाले को अंजाम देने में बैंक के ही एक सिस्टम स्विफ्ट (SWIFT) की मदद ली गई. एलओयू को स्विफ्ट (SWIFT) के जरिए ही भेजा गया, जिसकी वजह से वह कोर बैंकिंग सिस्टम यानी सीबीएस के दायरे में नहीं आई और उसका पता नहीं चल सका.... स्विफ्ट वह सिस्टम है, जिसमें कर्जदाता का एलओयू तुरंत ही सभी संबंधित लोगों (कर्जदाता) तक पहुंच जाता है. यह सिस्टम सीबीएस से जुड़ा हुआ नहीं है.. इसलिए इसका पता भी नहीं चल पा रहा था. इस तकनीक का इस्तेमाल बैंक आपात स्थिति में करते हैं, लेकिन बैंक के कुछ अधिकारियों ने इसका गलत इस्तेमाल किया, जिसका फायदा नीरव मोदी ने उठाया.....
इस घोटाले का खुलासा बैंक के उस नव नियुक्त अफसर ने किया, जिसकी पोस्टिंग रिटायर हुए फॉरेक्स डिपार्टमेंट के अधिकारी की जगह हुई थी....ये कंपनियां विदेशी सप्लायरों को भुगतान के लिए शॉर्ट टर्म क्रेडिट (कर्ज) चाहती थीं. बैंक अफसरों ने लेटर ऑफ अंडरटेकिंग(एलओयू) देने से पहले 100% कैश मार्जिन मांगा. तीनों फर्मों ने कहा कि वे पहले भी यह सुविधा लेती रही हैं...जब इस अफसर ने रिकॉर्ड्स चैक किये तो उसके होश उड़ गए.
बैंक रिकॉर्ड्स में करोड़ों के लोन और लेटर ऑफ अंडरटेकिंग का कोई जिक्र नहीं था....घोटाले की शिकायत अफसर नें सीबीआई से की. जांच हुई तो पता चला कि मार्च 2010 से बैंक के फॉरेक्स डिपार्टमेंट में कार्यरत डिप्टी मैनेजर गोकुलनाथ शेट्टी ने मनोज खरात नाम के एक अन्य बैंक अधिकारी के साथ मिलकर इन कंपनियों को फर्जी तरीके से एलओयू दिया. पकड़ में आने से बचने के लिए इसकी एंट्री भी नहीं की..
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घोटाले को समझने से पहले हम जानेंगे कि Letter of Undertaking (LOU) क्या होता हैं?
मान लीजिये कि आप एक 'भारतीय व्यापारी' हैं, जो अमेरिका से माल खरीदना चाहता हैं।
आप एक अमेरिकी पार्टी 'John' से संपर्क करते हैं, John आपको माल का सैम्पल भेजता हैं और आपको माल पसंद आ जाता हैं। आप john को ऑर्डर देते हैं, परन्तु John को डर रहता है कि यदि माल भेजने के बाद पैसे नहीं आये तो?
तो वो आपसे एडवांस में पैसे देने के लिए अनुरोध करता हैं।
फिर आपको ये डर लगता हैं कि अगर एडवांस देने के बाद माल नही आया तो ?
इसलिये आप दोनों इसमें "बैंक" को बीच में लाते हैं। आपका भारतीय बैंक, John के अमेरिकी बैंक, को ये आश्वाशन एक कागज पे लिखित रूप में देता हैं कि यदि john का माल भारत पहुँच जाता है तो माल का पेमेंट भारतीय बैंक कर देगा। इसी कागज को Letter of Undertaking कहते हैं।
आप एक अमेरिकी पार्टी 'John' से संपर्क करते हैं, John आपको माल का सैम्पल भेजता हैं और आपको माल पसंद आ जाता हैं। आप john को ऑर्डर देते हैं, परन्तु John को डर रहता है कि यदि माल भेजने के बाद पैसे नहीं आये तो?
तो वो आपसे एडवांस में पैसे देने के लिए अनुरोध करता हैं।
फिर आपको ये डर लगता हैं कि अगर एडवांस देने के बाद माल नही आया तो ?
इसलिये आप दोनों इसमें "बैंक" को बीच में लाते हैं। आपका भारतीय बैंक, John के अमेरिकी बैंक, को ये आश्वाशन एक कागज पे लिखित रूप में देता हैं कि यदि john का माल भारत पहुँच जाता है तो माल का पेमेंट भारतीय बैंक कर देगा। इसी कागज को Letter of Undertaking कहते हैं।
भारतीय बैंक, ये कागज़ देने से पहले आपसे माल का पूरा पैसा एडवांस में ले लेता है। और जैसे ही माल भारत आता हैं भारतीय बैंक john के बैंक को पेमेंट कर देता हैं।
अब आते हैं घोटाले पर,
घोटाला बस इतना सा हैं कि 'भारतीय बैंक' ने आपसे पैसे लिए बिना अमेरिकी बैंक को LOU दे दिया और बाद में माल भारत आते ही उसका पेमेंट भी कर दिया। अब अगर आप ये पैसा बैंक को नहीं देते हैं तो ये नुकसान बैंक को भुगतना पड़ेगा।
घोटाला बस इतना सा हैं कि 'भारतीय बैंक' ने आपसे पैसे लिए बिना अमेरिकी बैंक को LOU दे दिया और बाद में माल भारत आते ही उसका पेमेंट भी कर दिया। अब अगर आप ये पैसा बैंक को नहीं देते हैं तो ये नुकसान बैंक को भुगतना पड़ेगा।
👇👇नीरव मोदी, ने भी यही किया है। उसने बैंक के साथ मिलकर विदेश में अपने माल के पैसे तो भिजवा दिये पर बैंक को पैसे नहीं दिए।
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