Monday, 26 February 2018



”तथ्‍य न मेरे होते हैं और न तुम्‍हारे। तथ्‍य क्रूर होते हैं और मैं उसी क्रूरता का वाहक हूं।”

मेरी उपरोक्‍त फिलॉसोपी को न समझने वाले मुझ पर लगातार हमलावर हैं। वो समझ नहीं पा रहे हैं कि मैं किस विचारधारा का हूं, इसलिए पूछते रहते हैं कि आपने पहले तो फलां व्‍यक्ति की ओलाचना की थी और आज फलां व्‍यक्ति के बारे में अच्‍छा लिख रहे हैं। जो लोग ऐसा कहते हैं, उन्‍हें कम से कम अब तो यह समझ आ ही जाना चाहिए कि मेरा किसी के प्रति कोई पूर्वग्रह नहीं है।

एक तथ्‍य आज किसी के खिलाफ जाता है तो यह जरूरी नहीं कि दूसरा तथ्‍य उसके पक्ष में न जाए। जीवन एक रेखीय नहीं है, इसीलिए न राजनीति, न समाज और न ही प्रकृति ही एक रेखीय है। तथ्‍य केवल तथ्‍य होते हैं, बस नजरिया आपका होता है। मेरे सभी पोस्‍ट से लेकर पुस्‍तक लेखन तक में आप इसे ही पाएंगे या फिर आगे शुरू होने वाले ”इतिहास के सच को सामने लाने के अभियान” में भी यही मेरा आधार होगा।क्‍या उचित है और क्‍या अनुचित यह ‘तथ्‍य’ नहीं समझते, यह तो आपकी समझ है। और आपकी-हमारी समझ के मुताबिक तथ्‍य नहीं चलते। जो आपको पसंद हो वह अच्‍छा और जो आपको पसंद न हो वह बुरा, देखने का यह नजरिया ही सच से परे होता है।

मैं उपनिषद के ऋषियों की संतान हूं, जिन्‍होंने सच के अलावा अपना नाम भी कभी जाहिर नहीं होने दिया। फिर हम आप सच नहीं कहेंगे तो काैन कहेग?

अपने पूर्वजों के ज्ञान को भूलने के कारण ही तो कृष्‍ण हमारे भगवान बन गए, लेकिन कृष्‍ण का दिया ज्ञान हमारे जीवन का संबल नहीं बन पाया। हम आज गीता उतना ही जानते हैं, जितना टीवी और सिनेमा ने हमें बता दिया या फिर किसी दुकान में कलेंडर में टंगे गीता के कुछ वाक्‍यों को देखकर हमने समझ लिया। गीता पढ़ते तो जान जाते कि ज्ञान ही हमारी विरासत है। ज्ञान वस्‍तुनिष्‍ठ होता है व्‍यक्तिनिष्‍ठ नहीं। अर्थात ज्ञान मिलते ही हमारे सामने कोरा सच तथ्‍य के रूप में प्रकट होता है, जिसके आधार पर हम दृष्टिकोण बनाते हैं। दृष्टिकोण हमें कभी सीधे प्राप्‍त नहीं होता है।

आज तक होता यह आया है कि लेखक या विचारक लोगों पर अपने विचार थोपते रहे हैं, लेकिन मैं आपको तथ्‍य उपलब्‍ध कराना चाहता हूं ताकि आप उसे अपना हथियार बनाएं और अपने स्‍वतंत्र विचार का निर्माण उसके आधार पर स्‍वयं करें। आप स्‍वतंत्र विचारधारा के वाहक बनें, जैसे कि मैं क्रूर तथ्‍यों का वाहक हूं।

देश बदलना है तो क्रूर बनिए, मुलायम तो मेमना भी होता है, लेकिन वह सिर्फ कटता है! जंगल को दहलना देने वाला गर्जना तो बस सिंह के वश की बात होती है!

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