Tuesday 27 February 2018


बेंगलुरु में महिलाओं की सोच
हो रहा कूड़े-कचरे का ‘सही’ इस्तेमाल...

बेंगलुरु शहर से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर स्थित मंदूर नाम का गांव, कूड़े के ढेर में परिवर्तित हो गया था। बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) रोजाना 1,800 टन तक कूड़ा-कचरा मंडूर में जमा कर देती थी। कूड़े के ढेर से बायो-मीथेन गैस बनती है, जिससे वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ने लगा और साथ ही, ढेर में आग लगने का खतरा भी बढ़ने लगा। इलाके की मिट्टी और पानी भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए। मंदूर गांव से प्रदूषण का प्रभाव बेंगलुरु शहर तक पहुंचने लगा। इन हालात को देखकर, शहर के बेलंदूर इलाके की महिलाओं ने कूड़े की व्यवस्था का जिम्मा खुद के हाथों में लेने का फैसला लिया।
“शुरूआत में लोग काफी बहाना बताते थे और उनके बीच, कौन सा कूड़ा कहां डालना है, इस संबंध में काफी असमंजस भी रहता था, लेकिन धीरे-धीरे ये उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन गया


अपने आस-पास के पर्यावरण को साफ रखने के लिए प्रशासन पर निर्भर रहना एक आम बात है, लेकिन बेंगलुरु की कुछ महिलाओं द्वारा 5 साल पहले शुरू हुई इस मुहिम से सबक मिलता है कि हमें अपनी जिम्मेदारियों को भी समझना चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी के ‘स्वच्छ भारत मिशन’ से भी पहले इन महिलाओं ने जागरूकता का उदाहरण पेश करते हुए शहर में कूड़े-कचरे से छुटकारा पाने की एक सटीक और कारगर व्यवस्था शुरू की और शहर के वातावरण को बचाने के लिए अपने घरों से शुरूआत की।

2013 बेंगलुरु से सिर्फ 25 किलोमीटर दूर स्थित मंदूर नाम का गांव, कूड़े के ढेर में परिवर्तित हो गया था। बृहत बेंगलुरु महानगर पालिका (बीबीएमपी) रोजाना 1,800 टन तक कूड़ा-कचरा मंडूर में जमा कर देती थी। कूड़े के ढेर से बायो-मीथेन गैस बनती है, जिससे वायु प्रदूषण तेजी से बढ़ने लगा और साथ ही, ढेर में आग लगने का खतरा भी बढ़ने लगा। इलाके की मिट्टी और पानी भी इससे बुरी तरह प्रभावित हुए। मंदूर गांव से प्रदूषण का प्रभाव बेंगलुरु शहर तक पहुंचने लगा। इन हालात को देखकर, शहर के बेलंदूर इलाके की महिलाओं ने कूड़े की व्यवस्था का जिम्मा खुद के हाथों में लेने का फैसला लिया।हालात इतने बिगड़ चुके थे कि एक स्थाई उपाय की जरूरत थी, जो पर्यावरण को ध्यान में रखते हुए भी उपयुक्त हो। बेलंदूर की महिलाओं ने तय किया कि गीले और सूखे कचड़े को अलग करके और फिर उसके ट्रीटमेंट से ही बात बनेगी। इस सोच ने ही ‘2 बिन 1 बैग’ के कॉन्सेप्ट को जन्म दिया। पूरे शहर में कूड़ा-कचरा डालने की एक जैसी व्यवस्था हो और लोगों में गीले और सूखे कचड़े को अलग-अलग रखने के संबंध में कोई दुविधा न हो, इसलिए महिलाओं ने एक सरल कलर-कोड का सहारा लिया। उन्होंने लोगों को बताया कि गीला कचरा (जैसे किचन या गार्डन में जमा होने कचरा आदि) हरे रंग के डस्टबिन में डाला जाए। सूखा कचरा और ऐसी चीजें, जिन्हें रीसाइकल किया जा सकता हो (प्लास्टिक, पेपर, ग्लास, मेटल आदि), उन्हें लाल रंग के कूड़ेदान में डालने को कहा गया।इस कॉन्सेप्ट को तैयार करने और अमल में लाने वाली महिलाओं में से एक, ललिता मोंदरेती ने कहा, “शुरूआत में लोग काफी बहाना बताते थे और उनके बीच, कौन सा कूड़ा कहां डालना है, इस संबंध में काफी असमंजस भी रहता था। इसलिए हमने तय कि हम एक थम्ब रूल या एक तरह की मानक प्रक्रिया पर ही काम करेंगे ताकि सभी जगहों पर एक जैसी व्यवस्था संभव हो सके।”

इन महिलाओं ने शुरूआत अपने अपार्टमेंट्स से की और इसके बाद धीरे-धीरे आस-पास के रहवासियों तक अपनी मुहिम को पहुंचाया। गीले और सूखे कचरे को अलग-अलग रखना कितना जरूरी है, इन महिलाओं ने लोगों को समझाया। घर से निकलने वाली गंदगी की व्यवस्था कैसे करनी चाहिए, इसके बारे में भी लोगों को जानकारी दी गई। बेलंदूर इलाके से शुरू हुई महिलाओं की यह मुहिम, कुछ ही महीनों में 25,000 से भी ज्यादा लोगों तक पहुंच गई और वे इसका हिस्सा बन गए। इस सफलता को देखते हुए, समूह की दो महिलाओं को सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट राउंड टेबल-2014 में हिस्सा लेने का मौका भी मिला। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जहां पर वेस्ट मैनेजमेंट में काम कर रहे संगठन इत्यादि हिस्सा लेते हैं और अपने विचार साझा करते हैं। इसके अलावा बेंगलुरु के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के लिए एक कॉमन अजेंडे पर अपनी सहमति बनाते हैं।
‘स्वच्छ गृह’ मुहिम

आमतौर पर लोगों को यह पता नहीं होता कि उनके घर के निकलने के बाद कूड़े का क्या होता है? जागरूकता की कमी की वजह से लोगों के अंदर पर्यावरण को लेकर जिम्मेदारी का अभाव है और इन वजहों से समाज में कूड़ा-कचरा उठाने वालों को उपेक्षा भरी नजरों से देखा जाता है। ललिता ने एक बार, कूड़ा उठाने वालों को खाली प्लॉट्स पर जमा कचरे के ढेर को साफ करते देखा और इस दृश्य ने उनकी सोच को झकझोरा और उन्हें प्रेरणा मिली। उन्होंने तय कर लिया कि अब वह अपना कूड़ा-कचरा बाहर इस तरह नहीं जाने देंगी। ललिता ने अपने दोस्तों से भी ऐसा करने के लिए कहा।जल्द ही लोगों को इस बात का एहसास हुआ कि कूड़े को अलग-अलग तो कर लिया जा रहा है, लेकिन इसे समय पर उठाया नहीं जा रहा है। कई लोगों को पता ही नहीं था कि इस संबंध में क्या किया जाना चाहिए। 2015 में, ललिता और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट राउंड टेबल के सदस्यों ने मिलकर ‘स्वच्छ गृह’ नाम से मुहिम की शुरूआत की। इस मुहिम के जरिए लोगों को अपने घरों में ही ग्रीन स्पॉट बनाने के लिए प्रेरित किया जाने लगा।

गीले कचरे को कम्पोजिटिंग के माध्यम से घर ही पर ही खाद में बदला जा सकता है, जिसकी मदद से आप घर में सब्जी वगैरह उगा सकते हैं। ‘स्वच्छ गृह’ मिशन का लक्ष्य था कि बेंगलुरु के लाखों घरों में ग्रीन स्पॉट बनवाए जा सकें। टीम फिलहाल बीबीएमपी के साथ मिलकर काम कर रही है। लोगों को ‘स्वच्छ गृह’ चैलेंज लेने के लिए कहा गया, जिसके तहत उन्हें घर के एक हफ्ते के कचरे को कम्पोजिट करना था। इससे जुड़कर लगभग 50,000 शहरवासियों ने कम्पोजिटिंग के चैलेंज को स्वीकार किया।
बढ़ता गया प्रभाव, जुड़ते गए लोग

ललिता ने इस मुहिम को बढ़ावा देने के लिए रमाकांत और अलमित्रा पटेल को खासतौर पर धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि पूरे बेंगलुरु शहर में कई समहू कूड़े-कचरे की व्यवस्था को लेकर बेहद सकारात्मक काम कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, “हमारा प्रयास है कि शहर के हर व्यक्ति तक यह संदेश पहुंचे और सब साथ मिलकर काम करें। हम एक-दूसरे से अपने अनुभव और आइडिया साझा करें। इससे हमारी मुहिम को और भी ज्याद ताकत मिलेगी।”

शहर के निवासियों द्वारा शुरू हुई यह मुहिम अब एक नीतिगत बदलाव में तब्दील हो चुकी है। 2014 में नगरपालिका ने कूड़े-कचरे को अलग-अलग रखने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए लोगों से कहा कि इसका पालन न करके पर उनपर फाइन भी लगाया जाएगा। पिछले चार सालों से पूरे शहर में अलग-अलग समूहों द्वारा इस मुहिम को आगे बढ़ाया जा रहा है। नगरपालिका की रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे साल में शहर का 80-90 प्रतिशत वेस्ट, अलग-अलग किया जा रहा है। इन कैंपेन की सफलता को देखते हुए 15 शहरों के लोगों ने ‘2 बिन 1 बैग’ की टीम से संपर्क कर, अपने यहां भी ऐसी व्यवस्था को शुरू करने के लिए कहा। ‘स्वच्छ गृह’ की टीम अभी तक बेंगलुरु नगरपालिका के साथ मिलकर 22 कम्पोजिटिंग प्रोग्राम आयोजित करा चुकी है। आने वाले वक्त में इस तरह के और भी कार्यक्रम आयोजित कराने की योजना है।

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