Wednesday, 21 February 2018

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए इंदिरा गाँधी ने

 इंदिरा गाँधी को ये देश जैसे विरासत में जवाहर लाल नेहरू से मिला था। इंदिरा इसे अपनी जागीर समझती थी, घटती लोकप्रियता,और विपक्ष की बढ़ती लोकप्रियता से परेशान होकर,इंदिरा गाँधी ने सेक्युलर भारत में मुसलमानो के तुष्टिकरण के लिए स्वयं मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की 1973 में स्थापना की। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए इंदिरा गाँधी ने विशेष नियम भी बनाया। इस संस्था का आज तक कभी ऑडिट नहीं हुआ है, जबकि अन्य NGO का होता है पर इसे विशेष छूट मिली हुई है। ये अरब के देशों से कितना पैसा पाती है, उस पैसे का क्या करती है, किसीको कुछ नहीं पता।
91% मुस्लिम महिलाएं ट्रिपल तलाक के खिलाफ है फिर भी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट को हिंसा तक की धमकी देता है। आपको जानकरआश्चर्य होगा की 95% मुसलमान महिलाओ को तो ये भी नहीं पता की मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड असल में है क्या ?
इस NGO में केवल कट्टरपंथी मुस्लिम ही है। नरेंद्र मोदी के सर पर फतवा देने वाला इमाम बरकाती भी इस NGO का सदस्य है। जिहादी किस्म के ही लोग इस संस्था में हैं। इस संस्था में 1 भी महिला नहीं है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानो का नहीं बल्कि इंदिरा गाँधी का बनाया हुआ है।
वैसे आपको एक जानकारी दे दें कि 1930 में मुस्लिम लीग को पाकिस्तान बनाने का आईडिया मुसलमानो ने नहीं बल्कि मोतीलाल नेहरू ने दिया था। इस परिवार ने भारत का इतना नाश किया है कि आज भारत की 99% 1समस्या इनके कारण ही है।...
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की स्थापना 1973 में हुई थी. यह एक गैर सरकारी संगठन है, जो भारतीय मुस्लिमों के लिए शरीयत में बने कानूनों को लागू करने और मुस्लिमों की देखभाल करने के साथ ही उनका प्रतिनिधित्व करता है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ कन्वेंशन की मुंबई में 27-28 दिसंबर को हुई बैठक के दौरान इस बोर्ड का प्रारूप तय हुआ था. इस दौरान इसके कुछ मकसद तय किए गए थे-
1. भारत में मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करना और शरीयत को लागू करना.
2. राज्य या केंद्र की विधायिका की ओर से पारित ऐसे कानून जो सीधे तौर पर या किसी और भी तरह से मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल देते हों, उनका विरोध करना. या फिर ये देखना कि भारतीय मुस्लिमों को इन कानूनों के दायरे से बाहर रखा जाए.
3. शरीयत में बनाए गए कानूनों के बारे में बताना और अपने परिवार के साथ ही समाज में उन कानूनों को लागू करने के लिए निर्देश देना. इससे जुड़ा साहित्य प्रकाशित करना.
4. पर्सनल लॉ को प्रकाशित करना और उसे मुस्लिमों में और ज्यादा लोकप्रिय करना. शरीयत के हिसाब से एक तयशुदा फ्रेमवर्क तैयार करना और मुस्लिमों को उसे पालन करने के लिए राजी करना.
5. बोर्ड के बनाए कानूनों को लागू करने के लिए और मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करने के लिए एक ऐक्शन कमिटी बनाना.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने दो दिनों तक हैदराबाद में बैठक के बाद तय किया कि उसके सदस्य रहे सलमान नदवी ने गलत बयानी की है और इसलिए उन्हें निकाला जाता है.
6. उलमा और कानूनों के जानकारों की मदद से राज्य या केंद्र के द्वारा बनाए गए कानूनों पर नजर रखना. सरकारी या अर्धसरकारी किसी संस्था की ओर से बनाए गए कानूनों पर नजर रखना और देखना कि क्या ये कानून किसी तरह से मुस्लिम पर्सनल लॉ में दखल देते हैं.
7. मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा के लिए अलग-अलग नजरिए वाले और अलग-अलग मतों में बंटे मुस्लिमों और उनकी संस्थाओं को एक करने की कोशिश करना और उनमें एकता और आपसी सामंजस्य की भावना को विकसित करना ताकि उनका एक ही मकसद हो सके, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सुरक्षा.
8 शरीयत के नजरिए से भारत में इस्तेमाल में लाए जा रहे मुस्लिम लॉ की समीक्षा करना, अलग-अलग मतों को मानने वाले इस्लामिक स्कूलों में मतभेद होने पर कुरआन आधारित निष्कर्ष पेश करना, जो शरीयत पर आधारित हो.
9. कॉन्फ्रेंस आयोजित करने, सेमिनार, सिम्पोजिया, पब्लिक मीटिंग और संबंधित किताबों को छापने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल बनाना. जरूरत पड़ने पर अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं और जनरल के जरिए सारी बातों को रखना.
इस ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एक वर्किंग कमिटी होती है.इसका कार्यकाल तीन साल का होता है. इसमें 51 उलमा होते हैं जो इस्लाम के अलग-अलग स्कूलों से ताल्लुक रखते हैं. इसके अलावा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की एक जनरल बॉडी भी होती है, जिसमें 201लोग होते है. इन 201 लोगों में उलमा के अलावा सामान्य लोग भी होते हैं. 201 लोगों की संख्या में 25 महिलाएं भी सदस्य होती हैं.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की जो कार्यसमिति फिलहाल काम कर रही है, उसका कार्यकाल 2019 में खत्म होगा. अभी इस कार्यसमिति के कुछ प्रमुख लोग हैं
1. मौलाना सैयद मोहम्मद राबे हसन नदवी (अध्यक्ष)
2. डॉ. मौलाना सैयद कल्बे सादिक (उपाध्यक्ष)
3. मौलाना मोहम्मद सलीम कासमी (उपाध्यक्ष)
4.मौलाना सैयद जलालुद्दीन उमरी (उपाध्यक्ष)
5. मौलाना काका सैयद अहमद ओमरी (उपाध्यक्ष)
6.मौलाना सैयद शाह फखरुद्दीन असरफ (उपाध्यक्ष)
7. मौलाना सैयद मोहम्मद वली रहमानी (महासचिव)
8. मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी (सचिव)
9.मौलाना मोहम्मद फजलुर रहमान मुजादिदी (सचिव)
10. जफरयाब जिलानी (वकील) (सचिव)
11.मौलाना मोहम्मद उमरैन महफूज रहमानी (सचिव)
12 प्रोफेसर रियाज उमर (खजांची)
इनके अलावा 39 और लोग इस ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य हैं.
इस ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने काम को सही तरीके से अंजाम देने के लिए चार कमिटियां बनाई हैं.
#1_सोशल वेलफेयर
इसका काम देश-दुनिया में मुस्लिमों के सामाजिक उत्थान के लिए किए जाने वाले कामों की निगरानी करना है. इस कमिटी के जरिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ज़रूरतमंदों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर उनके गुजर-बसर करने तक की गतिविधियों को देखता है और उसपर अमल करता है.
#2_बाबरी मस्जिद
इस समिति का काम देश-दुनिया में चल रहे मुकदमों की पैरवी करना है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील डॉ. जफरयाब जिलानी बताते हैं कि बाबरी मस्जिद कमिटी के जरिए हम मुकदमों की पैरवी और उनकी निगरानी करते हैं. चाहे तीन तलाक के मसले की पैरवी हो या फिर बाबरी मस्जिद की, बाबरी मस्जिद ही इसकी देखभाल करती है और उसपर अमल करती है.
#3_दारुल-क़जा
दारुल-कज़ा एक ऐसी संस्था है, जो मुस्लिमों के आपसी और पारिवारिक झगड़े का निपटारा करती है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की कमिटी के रूप में जो दारुल-क़जा काम करती है, उसका काम पूरे देश में चल रहे दारुल-कज़ा की निगरानी करना और वहां आने वाले लोगों की मदद करना है. दारुल-क़जा की कोशिश होती है कि मियां-बीबी के झगड़े सुलझ जाएं. सारे रास्ते बंद होने की स्थिति में तलाक भी दिलवाने का काम दारुल-कज़ा के पास है.
#4_तफहीम-ए-शरीयत
यह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनलल लॉ बोर्ड की चौथी और आखिरी कमिटी है. इस कमिटी का काम पूरे देश के मुस्लिमों को शरीयत के बारे में बताना और उसे ठीक से लागू करवाना है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील डॉ. जफरयाब जिलानी के मुताबिक तफहीम-ए-शरीयत का काम ये भी देखना है कि कौन से मसले पर शरीयत का पालन नहीं हो रहा है और इसके लिए क्या ज़रूरी कदम उठाए जा सकते हैं.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने अब साफ कर दिया है कि मस्जिद के मुद्दे पर वो कोई समझौता नहीं करेंगे. वहीं इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही है. कोर्ट ने भी ये साफ कर दिया है कि अयोध्या का मसला सीधे तौर पर भूमि विवाद का मसला है और आगे की सुनवाई इसी के इर्द-गिर्द होगी.

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