कुछ लोगों ने ईमेल पर और अधिकाँश ने फ़ोन पर कहा है किआप तो संघ की समस्त मान्यताएं उलट रहे हैं ....मेरी समझ यह है कि मैं संघ को उनसे अधिक जानता हूँ...
. सत्य क्या है ,इसका निर्णय तो संघ के अधिकारी ही कर सकते हैं पर मैं जो जानता हूँ वह लिख रहा हूँ क्योंकि आद्य सरसंघचालक के अतिरिक्त सभी को मैंने समीप से देखा है.
१ संघ की मूल भावना और श्रद्धा नित्य की जाने वाली प्रार्थना ~~ नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे ..... द्वारा समझी जा सकती है .
२ भारत के सभी महापुरुषों का स्मरण भारत भक्ति स्तोत्र के रूप में नित्य करने वाला केवल संघ है . जिस से उसकी व्यापक्ता का प्रमाण मिलता है .
३ संघ ब्राह्मणों यानी पंडितों ,विद्वानों का संगठन नहीं है .
४ संघ अपने समाज से गहरी आत्मीयता रखता है और इसकी विभूतियों से उसे प्रेम है और यह अनाग्रही है , उसका एक ही आग्रह है : हिन्दू राष्ट्र
५ अपने विद्वानों के प्रति उसकी प्रीति अन्यतम है , मैंने सर संघ चालकों को विद्वानों का आतंरिक सम्मान करते देखा है ..
६ विद्वान जो कहते हैं ,वह वही कहने लगे,यह स्वाभाविक है .
७ सत्य उस से भिन्न है ,यह जानते ही उसे पल भर देर नहीं लगती सत्य को अपनाने में . यह बात मैंने अपनी पुस्तक ~ कभी भी पराधीन नहीं रहा है भारत :- के प्रकाशन और लोकार्पण के समय स्वयं देखी और श्री सुरेश सोनी जी ने भाषण में स्पष्ट कहा भी कि सत्य को ग्रहण करने में हमें पल भर झिझक नहीं होती . हमारी (केडिया जी और मेरी संयुक्त है यह पुस्तक ) पुस्तक की ५०० प्रतियाँ आधे घंटे में उनके एक कार्यक्रम में बिक गयीं .जिसमे यही सब कहा है जो मैं यहाँ लिख रहा हूँ .
८ वे किसी मतवाद को समर्पित नहीं हैं , हिन्दू राष्ट्र को समर्पित हैं .
९ जिन लोगों का मस्तिष्क कम्युनिज्म के बौद्धिक दुष्प्रभाव से दूषित है ,वे समझते हैं कि कोई अनम्य और कड़ा कठोर मतवाद संघ का है . वे मूर्ख हैं . १० चालू ढर्रे में ढले लोगों को नरेंद्र मोदी जी संघ के सर्वोत्तम प्रतिनिधि नजर आते है , वे किसी व्यापक वस्तु को समझने में असमर्थ लोग हैं .संघ में नरेंद्र मोदी जी से कई कई गुनी बड़ी प्रतिभाएँ हो चुकी हैं . गुरु गोलवलकर के सामने मोदी ऐसे ही हैं जैसे हाथी के सामने बिल्ली . अतः संघ गंभीर है ,देश काल की समझ रखता है , धैर्यवान है. किसी प्रकार की तानाशाही से उसका दूरदूर तक सम्बन्ध नहीं इसलिए राजनीति जैसी चल रही है उसमे जितना आवश्यक है ,उतना ही ध्यान वे देते हैं .
११ अतः कल को हिदू राष्ट्र के लिए अधिक अनुकूल नेत्रित्व उभर आएगा तो सघ उसे भी पूरा आशीर्वाद देगा .पर इसका अर्थ यह नहीं कि बना बनाया काम बिगाड़ ले और मोदी को हटा दे जो संघ के दुष्ट विरोधी कल्पना और लालसा रखते हैं. सघ का काम सघ के शत्रुओं की लालसाएं पूरा करना है क्या ?
इन टिप्पणियों का यह अर्थ नहीं कि मनुष्यों के संगठन में जो कमियां आ सकती हैं वे कभी उसमे आ ही नहीं सकतीं पर अभी जो स्थिति है ,वह यह है .
अतः संघ के विरुद्ध जैसा कुछ भी नहीं है मेरी टिप्पणियों में ..
. सत्य क्या है ,इसका निर्णय तो संघ के अधिकारी ही कर सकते हैं पर मैं जो जानता हूँ वह लिख रहा हूँ क्योंकि आद्य सरसंघचालक के अतिरिक्त सभी को मैंने समीप से देखा है.
१ संघ की मूल भावना और श्रद्धा नित्य की जाने वाली प्रार्थना ~~ नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे ..... द्वारा समझी जा सकती है .
२ भारत के सभी महापुरुषों का स्मरण भारत भक्ति स्तोत्र के रूप में नित्य करने वाला केवल संघ है . जिस से उसकी व्यापक्ता का प्रमाण मिलता है .
३ संघ ब्राह्मणों यानी पंडितों ,विद्वानों का संगठन नहीं है .
४ संघ अपने समाज से गहरी आत्मीयता रखता है और इसकी विभूतियों से उसे प्रेम है और यह अनाग्रही है , उसका एक ही आग्रह है : हिन्दू राष्ट्र
५ अपने विद्वानों के प्रति उसकी प्रीति अन्यतम है , मैंने सर संघ चालकों को विद्वानों का आतंरिक सम्मान करते देखा है ..
६ विद्वान जो कहते हैं ,वह वही कहने लगे,यह स्वाभाविक है .
७ सत्य उस से भिन्न है ,यह जानते ही उसे पल भर देर नहीं लगती सत्य को अपनाने में . यह बात मैंने अपनी पुस्तक ~ कभी भी पराधीन नहीं रहा है भारत :- के प्रकाशन और लोकार्पण के समय स्वयं देखी और श्री सुरेश सोनी जी ने भाषण में स्पष्ट कहा भी कि सत्य को ग्रहण करने में हमें पल भर झिझक नहीं होती . हमारी (केडिया जी और मेरी संयुक्त है यह पुस्तक ) पुस्तक की ५०० प्रतियाँ आधे घंटे में उनके एक कार्यक्रम में बिक गयीं .जिसमे यही सब कहा है जो मैं यहाँ लिख रहा हूँ .
८ वे किसी मतवाद को समर्पित नहीं हैं , हिन्दू राष्ट्र को समर्पित हैं .
९ जिन लोगों का मस्तिष्क कम्युनिज्म के बौद्धिक दुष्प्रभाव से दूषित है ,वे समझते हैं कि कोई अनम्य और कड़ा कठोर मतवाद संघ का है . वे मूर्ख हैं . १० चालू ढर्रे में ढले लोगों को नरेंद्र मोदी जी संघ के सर्वोत्तम प्रतिनिधि नजर आते है , वे किसी व्यापक वस्तु को समझने में असमर्थ लोग हैं .संघ में नरेंद्र मोदी जी से कई कई गुनी बड़ी प्रतिभाएँ हो चुकी हैं . गुरु गोलवलकर के सामने मोदी ऐसे ही हैं जैसे हाथी के सामने बिल्ली . अतः संघ गंभीर है ,देश काल की समझ रखता है , धैर्यवान है. किसी प्रकार की तानाशाही से उसका दूरदूर तक सम्बन्ध नहीं इसलिए राजनीति जैसी चल रही है उसमे जितना आवश्यक है ,उतना ही ध्यान वे देते हैं .
११ अतः कल को हिदू राष्ट्र के लिए अधिक अनुकूल नेत्रित्व उभर आएगा तो सघ उसे भी पूरा आशीर्वाद देगा .पर इसका अर्थ यह नहीं कि बना बनाया काम बिगाड़ ले और मोदी को हटा दे जो संघ के दुष्ट विरोधी कल्पना और लालसा रखते हैं. सघ का काम सघ के शत्रुओं की लालसाएं पूरा करना है क्या ?
इन टिप्पणियों का यह अर्थ नहीं कि मनुष्यों के संगठन में जो कमियां आ सकती हैं वे कभी उसमे आ ही नहीं सकतीं पर अभी जो स्थिति है ,वह यह है .
अतः संघ के विरुद्ध जैसा कुछ भी नहीं है मेरी टिप्पणियों में ..
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