Monday, 26 February 2018


#पलाश
पलाश को ढाक पलाश , टेसू ,खांकरा ओर संस्कृत में किंशुक भी कहते है .....शास्त्रों में #ब्रह्मा के पूजन अर्चन हेतु पवित्र माना है,इस कारण इसे ब्रह्मवृक्ष भी कहा गया है..... कम पानी और बंजर भूमि पर आसानी से पनपने वाला पलाश अब कम होता जा रहा है....कुछ वर्ष पूर्व तक इसकी पत्तलों का काफी चलन था जिसमे भोजन किया जाता था,,जिससे औषधीय गुण भी मिलते थे....पर आज प्लास्टिक सब दूर जहर बिखेर रही है ....।
बसंत के आगमन पर जब पलाश पतझड़ के पश्चात फूलों से लदते है, तब दूर से देखने पर अग्निज्वाला कि भाँती दिखाई देते हैं, इसलिए इसे जंगल कि आग भी कहते हैं।
#पलाश के औषधीय उपयोग ....नारी को गर्भ धारण करते ही अगर गाय के दूध में पलाश के कोमल पत्ते पीस कर पिलाने से शक्तिशाली बालक का जन्म होगा....वहीं इसी पलाश के बीजों को मात्र लेप करने से नारियां अनचाहे #गर्भ से बच सकती हैं......नेत्रों की ज्योति बढानी है तो पलाश के फूलों का रस निकाल कर उसमें शहद मिला लीजिये और #आँखों में काजल की तरह लगाकर सोया कीजिए। अगर रात में दिखाई न देता हो तो पलाश की जड़ का अर्क आँखों में लगाइए........#पेशाब में जलन या पेशाब रुक रुक कर आ रहा हो तो पलाश के फूलों का एक चम्मच रस निचोड़ कर दिन में 3 बार पी लीजिये काफी लाभदायक होगा .........वही इसके बीजों को नीबू के रस में पीस कर लगाने से दाद खाज #खुजली में आराम मिलता है....
पलाश के फूलो से परम्परागत #होली खेली जाती है...जिससे चर्म रोग समाप्त हो जाते है.... पिछले वर्ष नईदुनिया ख़बर में बताया था की बरसाना की विश्वप्रसिद्ध होली के लिए 10 क्विंटल टेसू के फूलों का ऑर्डर दिया गया है...... यह फूल कोलकाता, ग्वालियर और हाथरस से मंगाए जा रहे हैं....... इनसे करीब दो हजार लीटर टेसू का रंग तैयार होगा...... इस होली की खास बात यह है कि #लाडली_मंदिर में प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल किया जाता है........टेसू के फूल मिलते ही इन्हें सुखाया जाएगा.... इसके बाद इन्हें तीन दिन तक पानी में डालकर गलाया जाता है.........तीन दिन बाद और होली से एक दिन पहले बड़े-बड़े कड़ाहों में इन फूलों को गरम पानी में डालकर उबाला जाता है.......रंग केसरिया आए और उसकी पकड़ मजबूत हो, इसके लिए इसमें कुछ मात्रा में #चूना मिलाया जाता है....... इसके साथ ही सुगंध के लिए इत्र मिलाया जाता है। यह रंग चर्म रोगों में लाभ पहुंचाता है ।।

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