Tuesday 27 February 2018


गुड़ बनाने के लिए मशहूर है गांव
हर घर में होता है उत्पादन...
तमिलनाडु का एक गांव, नीक्करापट्टी। इस गांव से जुड़ी ख़ास बात यह है कि यहां का लगभग हर घर गन्ने से गुड़ बनाने की अपनी ख़ुद की औद्योगिक इकाई चलाता है और व्यापार करता है। इतना ही नहीं, घर के लगभग सभी सदस्य अपने गांव के वजूद से जुड़े इस उद्योग को सहर्ष अपनाकर इसे और भी सुदृढ़ करते जा रहे हैं।नीक्करापट्टी में गन्ने की पैदावर पर्याप्त मात्रा में होती है। विकल्प के तौर पर व्यावसायिक महत्व के हिसाब से गांव वाले शक्कर (चीनी) बनाने की यूनिट्स भी लगा सकते थे, लेकिन उन्होंने अपने व्यवसाय को एक आदर्श, सकारात्मक और लोगों की भलाई की मुहिम से जोड़ा और अब यह गांव चीनी के एक बेहतर और हेल्दी विकल्प के तौर पर गुड़ का उत्पादन कर रहा है। इस गांव से जुड़ा एक रोचक तथ्य यह भी है कि ब्रिटिश काल में यहां के लोग मुख्य रूप से पशु-पालन का व्यवसाय करते थे और ब्रिटिश आबादी को घर का बना दूध और घी पहुंचाते थे। अब इस गांव ने अपनी पहचान बदल ली है। हाल में इस गांव में रह रहे लोगों से बात करने पर पता चलता है कि ये लोग लंबे समय से इस व्यवसाय से जुड़े हैं और पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसे आगे बढ़ा रहे हैं।
घर पर ही कर रहे बड़ी मात्रा में उत्पादन

यहां पर ज़्यादातर लोग अपने घरों के ही एक हिस्से में यूनिट्स चला रहे हैं और कुछ लोग ऐसे हैं, जो किराए की ज़मीन पर यह व्यवसाय कर रहे हैं। आमतौर पर गांव में गन्ने की पैदावार अच्छी ही होती है, लेकिन मौसम की अनियमितता जैसे की कम बारिश से मौसम में पैदावार पर असर पड़ता है तो किसी दूसरे प्रदेश के गांवों से गन्ने मंगाए जाते हैं। नीक्करापट्टी में लगभग 75 गुण बनाने की यूनिट्स लगी हुई हैं।
यह काम नहीं आसान

नीक्करापट्टी में इस व्यवसाय से जुड़े लोगों ने जानकारी दी कि यह बेहद धैर्य और मेहनत मांगता है। सुबह 2 बजे से लेकर शाम के 4 बजे तक लगातार काम चलता है। गन्ने के रस को बड़े स्टील के बर्तनों में निकालकर गर्म किया जाता है। गांव वाले ईंधन के संरक्षण के बारे में भी सोचते हैं और गर्म करने की प्रक्रिया के लिए रस निकालने के बाद बचे सूखे गन्ने को ईंधन के रूप में इस्तेमाल कर लिया जाता है। इस तरह गंदगी फैलाने से भी बचा जाता है।गर्म करने की प्रक्रिया 3 घंटों तक चलती है, जिस दौरान घोल को लगातार चलाना भी पड़ता है। इसके बाद घोल को लकड़ी के सांचों में डालकर ठंडा होने के लिए पानी में रख दिया जाता है। अब जो गुड़ बनकर तैयार होता है, वह सांचे के आकार का होता है और इनके अलग-अलग नाम भी होते हैं जैसे कि अच्चु वेलम और मंडई वेलम। पूरी प्रक्रिया में लगभग 5 घंटों का समय लगता है और दिनभर में औसतन ऐसे 7 बैच तैयार किए जाते हैं। बाज़ार में इस गुड़ को 30 किलो के पैक में बेचा जाता है। इसका भी एक ख़़ास नाम होता है, 'सिप्पम'। अनुपात की जानकारी देते हुए ग्रामीणों ने बताया कि 1.75 टन गन्ने के रस से 210 पैक तैयार किए जा सकते हैं। एक यूनिट एकबार में लगभग 15 बैग तैयार करती है।

नीक्करापट्टी में गुड़ की बिक्री या नीलामी के लिए 5 केंद्र बनाए गए हैं। तमिलनाडु के विभिन्न हिस्सों से गुण यहां की मंडियों में लाया जाता है। नीक्करापट्टी के अलावा इरोड, करूर, सेलम, तंजावुर, गोबी और सत्यमंगलम गांवों में भी गुड़ का उत्पादन प्रमुख है। इन केंद्रों में गुड़ की बिक्री का दाम 1200-1500 रुपए प्रति बैग तक होता है। लोगों से मिली जानकारी के मुताबिक, तमिलनाडु के अलावा केरल में भी गुड़ की पर्याप्त खपत है। मौसम और त्योहारों के हिसाब से दोनों जगह पर मांग में इज़ाफ़ा होता है और गुड़ के दाम भी बढ़ते हैं। तमिलनाडु में पोंगल के दौरान और केरल में सबरीमाला तीर्थ यात्रा के दौरान गुड़ की मांग बढ़ती है।
गांव वालों की अपनी अलग दुनिया

नीक्करापट्टी के स्थानीय लोगों से बात करने पर पता चलता है कि यहां के लोग अपनी दुनिया और काम में मस्त हैं। उन्हें इस बात का पता है कि पैसा कमाने के लिए सही दिशा में ईमानदारी से मेहनत करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है और वे इस सिद्धांत पर ही चलते हैं। लोगों ने बताया कि आमतौर पर सिर्फ़ बिक्री के सीज़न में ही वे बाहरी लोगों से मुलाक़ात करते हैं। अंग्रेज़ी वेबसाइट 'विलेज स्कवेयर' (villagesquare.in) ने यहां के लोगों से बात कर, रहवासियों की जीवनशैली को जानने की कोशिश और उनके मारफ़त मिली जानकारी के हिसाब से यहां के लोग अपने व्यवसाय और जीवनशैली से बेहद संतुष्ट भी हैं।

दिलचस्प बात है कि ज़्यादातर घरों में रोज़ खाना नहीं बनता। महिलाएं एक दिन खाना बनाती हैं और फिर उसे आने वाले 2-3 दिनों तक चलाया जाता है। समय बचाकर महिलाएं गुड़ के उत्पादन में हाथ बंटाती हैं। लंबे समय से इस व्यवसाय से जुड़े ग्रामीण मानते हैं कि आज की पीढ़ी को एक सरल और आरामदायक जीवनशैली की ज़रूरत लगती है और इसलिए वे शहरों की ओर भागते हैं।

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