राफेल डील के बारे में देश नहीं पाकिस्तान और चीन जानना चाहता है। कांग्रेस इसलिये जानने को उत्सुक है ताकि गुप्त तकनीक जानने के पश्चात पाकिस्तान और चीन को बताकर भारी आर्थिक लाभ प्राप्त कर सके और २०१९ के आम चुनाव में उसका सदुपयोग कर सके क्योंकि वह इस समय दिवालिया है और वह चुनाव लड़ने में स्वयं को असमर्थ पा रही है।
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१. अमेरिका इजराइल और सऊदी अरब दोनों को हथियार बेचता है परन्तु दोनों को मिलने वाले एक ही हथियार में दिन रात का अंतर है। सऊदी अरब को दिए जाने वाले हथियारों की मारक क्षमता इजराइल को मिलने वाले हथियारों से कम है। रडारों की डिटेक्शन पावर भी कम है।
२. रूस ने सीरिया आधुनिक और विकसित रडार तथा एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल बेचीं। इजराइल ने 2007 में "ऑपरेशन ओरचर्ड" के तहत सीरिया के गुप्त निर्माणाधीन परमाणु ठिकानों पर हमला करके उनको तबाह कर दिया। उस समय ना तो ये रडार इसरायली विमानों को डिटेक्ट कर पाए और ना ही कोई एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल किसी विमान को गिरा पायी। असल में रूस ने सीरिया को जो राडार और मिसाइल दिए थे उनमें एक कोड बेस्ड हैक सिस्टम था। इजराइल ने रूस से वो हैक कोड हांसिल कर लिए और सीरिया के मिसाइल और रडारों को रि-प्रोग्राम कर दिया।
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जो अस्त्र-शस्त्र, सैन्य उपकरण आदि विदेशों में बेचे जाते हैं वो अधिकतर मामलों में कस्टमाइज्ड होते हैं। इस कस्टमाईजेशन के पीछे कई घटक काम करते हैं जैसे
-- ग्राहक की मांग और जरूरत के अनुसार।
-- ग्राहक को अलग अलग तकनीकों की कीमत बताई जाती है फिर ग्राहक जितनी कीमत देगा उतनी तकनीकी सुविधाएं और विशेषताएं ग्राहक ले पायेगा।
-- रक्षा सौदों में कोई भी देश अपनी सर्वश्रेष्ठ तकनीक दूसरे देशों को नहीं देता है। ग्राहक देश के साथ कैसे रिश्ते हैं और भविष्य में क्या संभावनाएं है आदि के हिसाब से ही तकनीक दी जाती है।
ऐसी स्थिति में भारत को फ़्रांस से कांग्रेस काल में क्या मिल रहा था और अब क्या मिल रहा है उसमें जमीन आसमान का अंतर हो सकता है। कुछ मोटी मोटी चीजें तो सबके सामने हैं परन्तु उसके अलावा बहुत कुछ ऐसा है जो बताया नहीं जा सकता। इसलिए कांग्रेस की राफेल डील को सार्वजानिक करने की मांग गुमराह करने वाली ही नहीं देशद्रोही भी है।
बाकी मोदी सरकार की डील कांग्रेस की पुरानी डील से 750 मिलियन यूरो (लगभग 6 हजार करोड़ रूपये) सस्ती ही पड़ेगी।
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१. अमेरिका इजराइल और सऊदी अरब दोनों को हथियार बेचता है परन्तु दोनों को मिलने वाले एक ही हथियार में दिन रात का अंतर है। सऊदी अरब को दिए जाने वाले हथियारों की मारक क्षमता इजराइल को मिलने वाले हथियारों से कम है। रडारों की डिटेक्शन पावर भी कम है।
२. रूस ने सीरिया आधुनिक और विकसित रडार तथा एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल बेचीं। इजराइल ने 2007 में "ऑपरेशन ओरचर्ड" के तहत सीरिया के गुप्त निर्माणाधीन परमाणु ठिकानों पर हमला करके उनको तबाह कर दिया। उस समय ना तो ये रडार इसरायली विमानों को डिटेक्ट कर पाए और ना ही कोई एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल किसी विमान को गिरा पायी। असल में रूस ने सीरिया को जो राडार और मिसाइल दिए थे उनमें एक कोड बेस्ड हैक सिस्टम था। इजराइल ने रूस से वो हैक कोड हांसिल कर लिए और सीरिया के मिसाइल और रडारों को रि-प्रोग्राम कर दिया।
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जो अस्त्र-शस्त्र, सैन्य उपकरण आदि विदेशों में बेचे जाते हैं वो अधिकतर मामलों में कस्टमाइज्ड होते हैं। इस कस्टमाईजेशन के पीछे कई घटक काम करते हैं जैसे
-- ग्राहक की मांग और जरूरत के अनुसार।
-- ग्राहक को अलग अलग तकनीकों की कीमत बताई जाती है फिर ग्राहक जितनी कीमत देगा उतनी तकनीकी सुविधाएं और विशेषताएं ग्राहक ले पायेगा।
-- रक्षा सौदों में कोई भी देश अपनी सर्वश्रेष्ठ तकनीक दूसरे देशों को नहीं देता है। ग्राहक देश के साथ कैसे रिश्ते हैं और भविष्य में क्या संभावनाएं है आदि के हिसाब से ही तकनीक दी जाती है।
ऐसी स्थिति में भारत को फ़्रांस से कांग्रेस काल में क्या मिल रहा था और अब क्या मिल रहा है उसमें जमीन आसमान का अंतर हो सकता है। कुछ मोटी मोटी चीजें तो सबके सामने हैं परन्तु उसके अलावा बहुत कुछ ऐसा है जो बताया नहीं जा सकता। इसलिए कांग्रेस की राफेल डील को सार्वजानिक करने की मांग गुमराह करने वाली ही नहीं देशद्रोही भी है।
बाकी मोदी सरकार की डील कांग्रेस की पुरानी डील से 750 मिलियन यूरो (लगभग 6 हजार करोड़ रूपये) सस्ती ही पड़ेगी।
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