Sunday 17 April 2016


आनंद कुमार 

महाभारत की लड़ाई चल रही थी और युद्ध होते होते नौ दिन बीत गए थे. दसवें दिन की भी शुरुआत नहीं थी, दिन कुछ चढ़ चुका था. इस दिन कृष्ण पांडवों को ये समझा चुके थे कि भीष्म के रहते किसी भी तरह कौरवों से जीता नहीं जा सकता. आख़िरकार जब अर्जुन भीष्म से लड़ रहे थे उसी वक्त बीच में शिखंडी आ गए. शिखंडी को देखकर जैसे ही भीष्म ने धनुष नीचे किया वैसे ही अर्जुन ने उनपर कई तीर दाग दिए.
कहीं दूर महल में बैठे संजय अपनी दूर दृष्टि से ये सब देख रहे थे. भीष्म को शरसैय्या पर गिरता देखकर वो राजा धृतराष्ट्र को ये बुरी खबर देने चल पड़े. जब धृतराष्ट्र ने ये खबर सुनी तो एक बार तो उन्हें भीष्म के गिरने का यकीन ही नहीं हुआ ! तब युद्ध की पूरी घटनाओं के बारे में धृतराष्ट्र ने पूछा, धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः । मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय ॥ यानि कि धृतराष्ट्र बोले- हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित, युद्ध की इच्छावाले मेरे और पाण्डु के पुत्रों ने क्या किया ?
पूरी भगवतगीता में, धृतराष्ट्र का ये इकलौत श्लोक है, इसके अलावा संजय ने 40, अर्जुन ने 84 और श्री कृष्ण ने बाकि के 575 श्लोक कहे हैं. इस तरह भगवतगीता में कुल 700 श्लोक हैं.
कुछ ज्ञानियों को लग सकता है कि भगवतगीता युद्ध के पहले दिन शुरू हुई थी, दसवें दिन नहीं हुई थी. ऐसे लोग महाभारत दोबारा उठायें. भीष्म पर्व के अन्दर भगवत गीता पर्व नाम का उप पर्व है. वहां पच्चीसवें अध्याय पर भगवत गीता शुरू होती है और आगे बियालिसवें अध्याय में जाकर ख़त्म होती है. थोड़ा अजीब सा लग रहा होगा ये जानके कि गीता युद्ध के पहले दिन नहीं शुरू हो रही होती है. ऊपर से उच्चारण के साथ पढने पर भी ये करीब तीन घंटे में ख़त्म हो जाती है. अट्ठारह दिन नहीं लगते !
ये मामला बिलकुल वैसा ही है जैसे आप अपना लैपटॉप ठीक करवाने जाएँ और कोई आपसे कहे कि इसका RAM उड़ गया है. इसके रिपेयर में 2000 रुपये लगेंगे. अगर आपको नहीं पता कि RAM उड़ जाने पर, ज्यादातर वक्त स्क्रीन बिलकुल नीली दिखने लगती है तो आप मैकेनिक की बात मान लेंगे. आपकी जानकारी की ये कमी गिरोहों को आपको ठगने का मौका देती है.
 मिशनरी फण्ड पर पलती किराये की कलमें ही दोषी नहीं, दोष आपके अपने अज्ञान का भी है. आपने किताब को खोलकर पढ़ने के बदले, सिर्फ उसे लाल कपड़े में लपेट कर अगरबत्ती दिखाई है. जब घर में बच्चों ने उसे पढ़ने की कोशिश की तो आपको लगा कि साधू ना हो जाए ! छाती पीट पीट के आपने फ़ौरन मुहर्रम मानना भी शुरू कर दिया !
बाकी अपने धर्म के सबसे प्रमुख, सबसे आसानी से उपलब्ध, सबसे कम कीमत के ग्रन्थ के बारे में जब इतना भी नहीं पता था, तो आपका कट्टर हिन्दुत्ववाद तो समझ आ ही गया होगा?

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