Thursday 28 April 2016


गौमांस शैतान का आहार है 

 वैज्ञानिकों की चेतावनी!

डॉ. राम श्रीवास्तव
परिचय : सेवानिवृत्त प्राचार्य, होलकर कॉलेज, इंदौर

. असली में "बीफ" यानि गौमांस खाना,  हिन्दू हो या मुस्लिम या ईसाई सबको तत्काल बन्द कर देना चाहिए. इतना ही नहीं पूरी दुनिया से गौमांस तैयार करने  की फ़ैक्टरियों को तत्काल प्रभाव से बन्द कर देना चाहिए.  यह कथन तो  UNEP अर्थात  संयुक्त राष्ट्र संघ की पर्यावरण सुरक्षा संस्थान का है. जिसने इंग्लैण्ड और अमेरिका में हो रही  गौ माँस खाने पर चल रहीं रिसर्च के आधार पर यह निष्कर्ष निकाले हैं.
FAO, फ़ूड एण्ड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन नामक संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था ने तो  यहाँ तक कह दिया BEEF IS THE DEVIL OR THE SHAITAN  OF THE MEAT PRODUCTION INDUSTRY. अर्थात गौमांस बनाने  वाली फ़ैक्टरियों को डेविल यानि शैतान की संज्ञा दी है.
यदि  यह सही तर्क है , तो शैतान का बनाया खाना क्या किसी इन्सान को खाना चाहिए ?  शैतान का खाना शैतान ही खा सकता है . तभी दुनिया के उन हिस्सों में जहाँ गौ माँस का सबसे ज़्यादा सेवन होता है  वहां शैतानियत  आतंकवाद के रूप में हावी होकर मानवता को चुनौती बनकर खड़ी है.
असली में पूरी दुनिया में इस समय एक अरब ४२ करोड़  पशु धन है.  भारत में यह संख्या सिर्फ़ ५ करोड़ १२ लाख ही है, इसमें गाय बैलों की संख्या सिर्फ़ एक करोड़ १० लाख ही है.  पूरी दुनिया में माँस की खपत के आंकडे बहुत ही विचारणीय है . प्रति व्यक्ति प्रति दिन माँस की खपत दुनिया में किस तरह हो रही है  ज़रा देखिए-
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देश                                            प्रति व्यक्ति प्रति दिन
                                                      माँस की खपत
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अमेरिका             .......                         ३२२ ग्राम
चीन              .......            ....             १६० ग्राम
अन्य देश....              ......            ....    १५५ ग्राम
भारत...          ......              ......          १२ ग्राम
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पूरी दुनिया में जब २७ करोड़ ८० लाख टन  माँस  खाया जाता है तब भारत में ५९ लाख टन माँस की खपत होती है जो कि पूरी दुनिया का मात्र दो प्रतिशत ही है जबकि आबादी १७ % ज़्यादा है .
येल विश्व विद्यालय अमेरिका और लीडस्  विश्व विद्यालय इंग्लैण्ड में गौमांस पर हुई ताज़ा रिसर्च के निष्कर्षों में बहुत चौंकाने वाले नतीजे प्राप्त हुए हैं . वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि  एक किलो ग्राम गौमांस तैयार करने में जितना वायुप्रदूषण  तथा हवा में कार्बन की मात्रा  बढ़ती है उतनी कार्बन की मात्रा  किसी कार के १६० किलोमीटर चलाने से निकलती है.
इतना ही नहीं गौमांस तैयार करने में फ़ैक्टरियों में जितना पानी ख़र्च होता है उतने पानी से  १७ गुना ज़्यादा गेहूँ चावल की  पैदावार  बढ़ाई जा सकती है.
इसके अलावा गौ माँस की सबसे बडी ख़राबी है कि गाय की आँतों में मीथेन  और मार्श नामक गैसों की अधिक मात्रा होती है . यही कारण है कि "गौमांस को पर्यावरण का शत्रु घोषित कर दिया गया है ." पूरी दुनिया में जहाँ कार और फ़ैक्टरियों से वायुमण्डल में जहाँ १५ प्रतिशत कार्बन की मात्रा मिलती है  उससे तीन प्रतिशत ज़्यादा यानि १८ % कार्बन हवा में अकेले  गौमांस के कारण बढ़ जाता है.
वैज्ञानिकों का निष्कर्ष है  कि अगर पृथ्वी के वायुमण्डल को गरम होने से बचाना है , तो यह ज़रूरी है कि वायुमण्डल में कार्बन की मात्रा बढ़ने से रोकना होगा और दुनिया भर में जितना कार्बन का ज़हर कारें और फ़ैक्टरियाँ हवा में घोल रही है उससे ३ % ज़्यादा गौमांस से हवा में प्रदूषण का ज़हर घुल रहा है .
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि अगर सन् २०५० तक पूरी दुनिया में गौमांस प्रतिबंधित हो जाए तो वायुमण्डल के बढ़ते हुए तापमान को बढ़ने से रोका जा सकता है . अन्यथा  उत्तरी दक्षिणी ध्रुव की पिघलकर समुद्र का जल स्तर बढ़ जावेगा और पृथ्वी की ज़मीन का २० % भाग जल प्लस में डूब जावेगा.
इस महा जल-प्रलय को रोकने के लिए तत्काल ही गौ माँस  को प्रतिबन्धित कर देना चाहिये.तभी तो  संयुक्त राष्ट्र संघ ने "गौमांस को शैतान का आहार " बताया है .
एक तरफ़ तो हम "शैतान " को पत्थर मारने के लिए हज़ारों मील दूर जाकर शहीद हो रहे हैं  दूसरी तरफ़ "शैतान" का भोजन खाने से रोकने , चाहे वह हिन्दू हो या अन्य किसी धर्म का , उसे "शैतान" का भोजन नहीं खाने का कोई विनम्र अनुरोध करता है तो उसे राजनीतिक धींगामस्ती का कारण क्यों बनाया जाता है? गौमांस नहीं खाना यह तो पूरी तरह वैज्ञानिक चेतावनी है .  इसमें धर्म या अधर्म का कीड़ा कहाँ से आ घुसा?

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