Monday 18 April 2016

मनुष्य के रूप में जीवन की सम्भावना जन्म लेती है ...

धर्म वह नहीं जो हम समझते हैं बल्कि धर्म को जानने और समझने के लिए हमें अपने समझ के स्तर का विकास करना होगा 
हम अपने वर्तमान में क्या करते हैं यही हमारे जीवन का महत्व निर्धारित करता है; अतीत कहानी है और भविष्य एक कल्पना, वर्तमान ही इस श्रिष्टि का सत्य है .. यह कहा जाये की मनुष्य के रूप में जीवन की सम्भावना जन्म लेती है तो गलत न होगा;
सैद्धांतिक रूप से हम भले चाहे जितने ही धार्मिक क्यों न हो पर जब तक हम अपने व्यवहार को धर्म सांगत न बनाएं हम अपने धर्म को पाखण्ड सिद्ध करते रहेंगे !
ईश्वर एक है पर देवता और असुर अनेक; व्यक्ति का कर्म ही उसे देव या असुर बनता है पर इसके लिए पहले मनुष्य तो बनें ; आज मनुष्य का इतना मशीनीकरण हो गया है की संसार में मानवता ही खतरे में पड़ गयी है, आखिर यह कैसा विकास है ?
राम राज्य ही श्री राम की विशिष्टता थी और आज भारत को भी वैसे ही समयानुकूल आदर्श व्यवस्था की आवश्यकता है  जब तक श्री राम की भक्ति एक औपचारिकता बनी रहेगी यह संभव न हो पाएगा। सभी को अपने अपने हिस्से का दाइत्व निभाना होगा क्योंकि श्रिष्टि की विविधता में ही उसकी सम्पूर्णता निहित है;
हमारी धर्मनिरपेक्षता ने शायद हमें अधर्मी बन दिया है तभी आज समाज शोषित, उत्पीड़ित और कष्ट में है; क्योंकि जीवन के लिए धर्म के सैद्धांतिक और व्यवहारिक व्याख्या में अंतर है ; यही कारन है की समाज को सही दिशा में नेतृत्व की आवश्यकता है, ऐसे में, क्यों न हम धार्मिक बनें और सत्य को चुनें ?
 यह इतना कठिन भी नहीं अगर हमें स्वयं का ज्ञान और जीवन की वास्तविक समझ हो जाए तो ; समस्या वर्तमान का परिदृश्य नहीं बल्कि दृष्टिकोण है जिसे हमें बदलना होगा !
क्यों न एक प्रयास करें, आखिर खोने का क्या है !!"

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