Sunday 17 April 2016


आनंद कुमार 

       जैसा कि हम अक्सर कहा करते हैं ये रामायण जैसे जो ग्रन्थ आपके पूजा वाली जगह पे रखे हैं वो सिर्फ़ सजाने के लिए नहीं हैं. लाल कपड़े में उन्हें लपेट के अगरबत्ती दिखाना बंद कीजिये और पढ़ लीजिये. अगर आप उसे पढ़ेंगे तो आपका ध्यान रामायण के मुख्य विलन पर जायेगा. अपने ज़माने के हिसाब से घनघोर खलनायक है. ये अपने बहनोई की मुंडी काट सकता है. किसी की पत्नी उठा के भाग जाता है. भाई का महल लूट लेता है. मतलब सारे पाप करता है.
इस ढक्कन को धर्म कब याद आता है? याद कीजिये, याद आ जायेगा. जब हनुमान अशोक वाटिका उजाड़ देते हैं तो ये अपने बेटे को उन्हें रोकने भेजता है. द ग्रेट हनुमान जी सुपुत्र को भी निपटा देते हैं और तोड़ फोड़ जारी रखते हैं. फाइनली मेघनाद हनुमान को बाँध कर ले आता है. अब जिसकी मुंडी फ़ौरन काट लेनी चाहिए थी, उसकी बारी में रावण महान को धरम याद आने लगता है ! टू कूल !! मारो मत, बस पूँछ में आग लगा दो. नतीजा क्या हुआ ? पहले ही एक बेटे को निपटा चुके थे हनुमान, लंका जला दी वो अलग.
ऊपर से जिन्दा लौट गए तो सीता के लंका में होने की खबर भी साथ ले गए. दोबारा वापिस आये तो राम-लक्ष्मण और पूरी वानर सेना साथ ले आये. विभीषण पलटी मार सकता है ये भी राम को उन्होंने ही बताया होगा, पक्का ! मुझे तो यकीन है रावण की आधी सेना चपटी करने के पीछे उन्ही का डायरेक्ट-इनडायरेक्ट हाथ रहा होगा. पहले ही रावण मार डालता तो इतनी टेंशन ही नहीं होती. जरुरत क्या थी युद्ध के टाइम धर्म याद करने की?
ऐसा रावण ने एक ही बार नहीं किया था. विभीषण वाला केस याद कीजिये जरा. वो जब दुश्मन का समर्थन करता दिखा तो उसे मारा क्या? नहीं दुश्मन का साथ देने भेज दिया उल्टा! नतीजा क्या हुआ. विभीषण बाद में चुगली कर देता है कि वैद्य सुषेन लंका में हैं, लक्ष्मण को बचाने का इंतजाम हो गया. इन्द्रजीत के यज्ञ की जगह का पता बता देता है. मेघनाद भी गया. फाइनली रावण को भी नहीं छोड़ता! उसकी नाभि में तीर मारने का सज्जेशन भी विभीषण का ही था. अंत में रावण के मरते ही मंदोदरी से शादी भी कर लेता है. शुरू से ही नियत ठीक नहीं थी लुच्चे की. जिस सेकंड इसने मुंह खोला था उसी वक्त रावण को निपटाना था इसे. जिन्दा छोड़ा गलती की.
इसके उलट राम को देखिये. ताड़का का सामना होने पर क्या धनुष रख के बैठ गए थे? OMG ! आई एम् मर्यादा पुरुषोत्तम! मैं फीमेल पर तीर कैसे चला दूं? नो नो वैरी बैड, डर्टी हैबिट, शेम शेम !! शत्रु है, मारो, बात ख़त्म. बाली का सामना करके जीता नहीं जा सकता था तो क्या किया? पीछे से तीर मार दिया, कहानी ख़तम बाली की. जब सवाल हुए तो कह दिया तुम दूसरे की पत्नी उठा भागे हो, मानव ही नहीं तो काहे के मानवाधिकार? तुमपे तो पशु के शिकार वाले ही तरीके इस्तेमाल होने चाहिए, पशु कहीं के!
लंका पर हमला करने के लिए अयोध्या से सेना मंगवाने बैठे थे क्या? हथियारों की सप्लाई, रिसोर्सेज का इंतज़ार किया या खुद ही जो बन्दर भालू मिले उन्हें जुटा के पत्थरों का पुल बाँधा था? रावण के गिरने के बाद लक्ष्मण को उस से सीखने भेजा कि पहले ही धर्म-अधर्म उस ज्ञानी ब्राह्मण से पूछने गए थे? ब्रम्हहत्या तो लगभग गौ हत्या और पितृहत्या जैसा ही पाप था! वो भी कर दिया था कि किसी से पूछने बैठे थे, ये सही है या नहीं है ?
एकदम हंड्रेड परसेंट जस्टिफाइड है भाई.
लड़ाई के समय ये सिखाओगे कि महंगे हथियार कहाँ से ख़रीदे जा सकते हैं तो तुम मूर्ख हो. जो घर में बनाये जा सकते हैं वो इस्तेमाल होते हैं लड़ाई में. इसलिए मोदी डिफेन्स इक्विपमेंट भारत के अन्दर बनवाना शुरू करता है. लड़ाई में जीतना हो तो घर की वो हर चीज़ जो हथियार की तरह इस्तेमाल हो सकती है उसे इस्तेमाल करना सीखिए.
एक दिन अचानक शुरू करके कोई साइकिल चलाना भी नहीं सीखता. एक दिन अचानक शुरू करके कोई गोल रोटियां नहीं बेल सकता. एक दिन अचानक जरुरत पड़ने पर कोई कार नहीं चला सकता, हवाई जहाज नहीं उड़ाने लगता. ठीक वैसे ही किसी को रिवाल्वर भी थमा दो तो उस से गोली नहीं चल जाएगी. उसके लिए भी अभ्यास लगता है. बिना प्रैक्टिस बीस फुट पर भी निशाना नहीं लगेगा. और कांपते हाथ से बन्दूक रीलोड भी नहीं होगी. भाग के जान बचाने के लिए भी भागने की प्रैक्टिस होनी चाहिए. आप एक किलोमीटर दौड़ने की स्थिति में भी नहीं है. बिना प्रैक्टिस के डॉ. नारंग की बीवी और साले ने भी उन्हें बचाने की कोशिश की होगी. बचा लिया न? प्रैक्टिस कीजिये.
खून देखना सबके बस की बात नहीं होती. एक मुर्गी काटने में भी आपकी OMG वाली भावनाएं जागने लगेंगी. कुत्ते को मारने की बात करें तो लोगो की अहिंसा, दया, करुणा सब जाग जायेगी. वो भी तब जब सिर्फ बात की है मारने की, सचमुच मारा नहीं है. आप पर हमला करने वाला तो इंसान होगा, उसपर हथियार चला लेंगे आप? लिख के दे सकते हैं नहीं चलेगा आपसे. आप पर हमला हो रहा होगा तो आप 'प्लीज छोड़ दो' कह रहे होंगे बस! बिलकुल यही डॉ नारंग और उनके परिवार ने किया होगा. यकीन ना हो तो जब CCTV फुटेज आने लगे उस इलाके की तब देख लेना. आपके मुंह में मुर्गा नहीं ठूंस रहे, देखने कहा है, देखो कटते हुए. आया समझ में? खून बहते देखने की आदत डालनी है, खून पीने नहीं कह दिया है, मोटी बुद्धि में घुस रहा है कुछ?
बाकी शाकाहार की महिमा जिन्दा रहने पर गा लीजियेगा, फ़िलहाल यज़ीदियों और कुर्दों के बीच का अंतर सीखिए जा के!

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