Saturday 18 October 2014

एक कथा....!!

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एक साधू महाराज तीर्थयात्रा पर निकले।
वह मार्ग में पड़ने वाले गावो और कस्बो में
ठहरते जाते थे।
जहा जो भी भक्त उन्हें प्रेम और आदर से अपने घर बुलाते, चले जाते।

एक गाव में एक ऐसा भक्त मिला जिसने उन्हें एक गाय दान दे दी।

वह बोला - “महाराज इसे आप साथ रखिए, रास्ते में घास-पात खा लेगी और आपको दूध भी देगी।”

साधू महाराज ने गाय ले ली और आगे चल पड़े।

अभी कुछ दूर ही गए होगे की रास्ते में एक व्यापारी मिला वह भी साधू महाराज के साथ-साथ चलने लगा।

व्यापारी ने साधू महाराज को अपना परिचय दिया।
फिर उत्सुकतावश पूछ बेठा -“ यह गाय लेकर आप तीर्थयात्रा के लिए क्यों निकले है?"

साधू महाराज ने कहा -“में तो अकेला ही चला था परंतु एक भक्त ने इस गाय को मुझे दान दिया ताकि दूध मिलता रहे।”

व्यापारी ने देखा की गाय बहुत सुन्दर है, दूध भी काफी देती होगी।
अगर किसी तरह इसे में खरीद लू तो इसके अछे दाम मिल जायगे।

यह सोचकर बोला - महाराज आपके लिए भला दूध की क्या कमी है?
जिस गाव में डाल देगे, वहा भक्त लोग दूध-ही-दूध ले आएगे।
पर इतना ज़रूर है की जंगल का मामला है, अगर गाय को खतरा हो गया तो व्यर्थ ही आपको पाप लगेगा।
मेरी बात मानिए, आप इसे बेच दीजिए।”

साधू महाराज ने कहा - “दान में मिली गाय को बेचना भी तो पाप है।
में तो सोचता हु, आगे जो गाव आएगा वहा अगर कोई सच्चा भक्त मिल गया तो उसे ही दे दूगा।”

व्यापारी का लोभ अब और भी बढ़ गया।

वह बोला - “ महाराज सुबह-शाम भगवान की पूजा करना, ब्रह्ममणौ का दान देना, सच्चाई और ईमानदारी से रहना तो मेरी भी विशेषता है।
क्या में इस गाय को प्राप्त करने योग्य नहीं हुँ ?”

साधू महाराज उस व्यापारी के मन की बात समझ गए और बोले - “तुम भी इस गाय को प्राप्त करने के अधिकारी बन सकते हो, लेकिन उससे पहले एक काम करना होगा तुम अपना यह लोटा मुझे दे दो।“

मैं इसमें गाय का दूध दुहकर तुम्हे दूगा, यह लोटा लेकर तुम उस गाव तक मेरे साथ चलोगे यदि रास्ते में लोटे का एक बूंद दूध भी छलककर गिर गया तो तुम गाय प्राप्त करने का अधिकार खो दोगे।”

व्यापारी ने सोचा - इसमें कोनसी मुशिकल बात है।
उसने अपना लोटा साधू महाराज को दे दिया।

साधू महाराज ने उसमे दूध दुहकर उसे दे दिया और वे फिर चल पड़े।

दूध से लबालब भरा लोटा लिये हुए व्यापारी भी चलने लगा।

वह बहुत खुश था की उसे इतनी सुन्दर गाय मुफ्त में ही मिल जाएगी।
व्यापारी कुछ ही दूर चलकर अपने विचारो में खो गया।

उसने सोचा -"मान लो, इस गाय के लिए मुझे मुहमागे दाम न मिले तो इसे में घर पर ही रख लुगा।
घर के द्वार पर बंधी इतनी सुंदर गाय देखकर लोग बार-बार यही पूछेगे कि "अरे लालाजी! इसे कहा से ले आए इतनी सुंदर गाय.?"

और में मुछो पर तव देकर कहुगा की..”

इतना सोचते ही उसका एक हाथ मुछो तक पहुच गया और दुसरे हाथ ने लोटे का सतुलंन खो दिया फिर तो दूध छलक गया।

साधू महाराज मुस्कराए और बोले -“अब तो तुम गाय नहीं प्राप्त का सकोगे लेकिन एक बात गाठ में बांध लो कभी किसी चीज को प्राप्त करने के लिए मन में लोभ न लाना और न ही शान दिखाना।
अगर तुम एकाग्र और शांत मन से दूध के लोटे को सभालकर गाय प्राप्त करने कि बात सोचते तो ज़रूर सफल हो जाते।

अब तो इस सीख को प्राप्त करके सतोष करो।“

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