Monday, 27 October 2014

sanskar-dec14 जहां समुद्र खुद महादेव का जलाभिषेक करने के लिए आता है...

गुजरात में एक ऐसा मंदिर है, जहां समुद्र खुद
महादेव का जलाभिषेक करने के लिए आता है ।
गुजरात के भरुच जिले की सम्बूसर तहसील में एक
गांव है कावी कम्बोई । समुद्र किनारे बसे इस
गांव में स्तंभेश्वर महादेव का प्राचीन मंदिर है ।
भगवान शिव के इस मंदिर की खोज लगभग 150



साल पहले हुई । इस प्राचीन मंदिर
की विशेषता इसका अरब सागर के मध्य कैम्बे तट
पर स्थित होना है ।
मंदिर के शिव लिंग के दर्शन केवल ‘लो टाइड’ के
दौरान ही होते हैं क्योंकि ‘हाई टाइड’ के वक्त
यह समुद्र में विलीन हो जाता है । इस समुद्र तट
पर दिन में दो बार ज्वार-भाटा आता है । जब
भी ज्वार आता है तो समुद्र का पानी मंदिर के
अंदर पहुंच जाता है । इस प्रकार दिन में दो बार
शिवलिंग का जलाभिषेक कर वापस लौट
जाता है ।
लोकमान्यता
लोकमान्यता के अनुसार स्तंभेश्वर महादेव मंदिर
में स्वयं शिवशंभु विराजते हैं इसलिए समुद्र
देवता स्वयं उनका जलाभिषेक करते हैं ।
ज्वार के समय शिवलिंग पूरी तरह से जलमग्न
हो जाता है और यह परंपरा सदियों से सतत
चली आ रही है । यहां स्थित शिवलिंग
का आकार 4 फुट ऊंचा और दो फुट के घेरे वाला है
। इस प्राचीन मंदिर के पीछे अरब सागर का सुंदर
नजारा नजर आता है ।
यहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिए खासतौर से
परचे बांटे जाते हैं जिसमें ज्वार-भाटा आने
का समय लिखा होता है । ऐसा इसलिए
किया जाता है जिससे यहां आने वाले
श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार
समस्या का सामना न करना पड़े ।
मान्यता– स्कंदपुराण के अनुसार शिव के पुत्र
कार्तिकेय छह दिन की आयु में ही देवसेना के
सेनापति नियुक्त कर दिये गये थे । इस समय
ताड़कासुर नामक दानव ने देवताओं को अत्यंत
आतंकित कर रखा था । देवता, ऋषि-मुनि और
आमजन सभी उसके अत्याचार से परेशान थे ।
ऐसे में भगवान कार्तिकेय ने अपने बाहुबल से
ताड़कासुर का वध कर दिया । उसके वध के बाद
कार्तिकेय को पता चला कि ताड़कासुर
भगवान शंकर का परम भक्त था । यह जानने के
बाद कार्तिकेय काफी व्यथित हुए । फिर
भगवान विष्णु ने कार्तिकेय से कहा कि वे
वधस्थल पर शिवालय बनवाएं । इससे उनका मन
शांत होगा । भगवान कार्तिकेय ने
ऐसा ही किया । फिर सभी देवताओं ने मिलकर
महिसागर संगम तीर्थ पर विश्वनंदक स्तंभ
की स्थापना की ।
शांत और आध्यात्मिक वातावरण
पश्चिम भाग में स्थापित स्तंभ में भगवान शंकर
स्वयं विराजमान हुए । तब से ही इस तीर्थ
को स्तंभेश्वर कहते हैं । यहां पर महिसागर
नदी का सागर से संगम होता है । स्तंभेश्वर के
मुख्य मंदिर के नजदीक ही भगवान शिव का एक
और मंदिर तथा छोटा सा आश्रम भी है
जो समुद्र तल से 500 मी । की ऊंचाई पर है ।
यहां पर श्रद्धालुओं के लिए हर तरह की सुविधाएं
मौजूद हैं जैसे- कमरे, छोटी सी रसोई जो साल भर
पारंपरिक गुजराती भोजन मुफ्त में प्रदान
करती है । इस मंदिर का वातावरण बहुत शांत और
आध्यात्मिक रहता है ।
अगर कोई श्रद्धालु ध्यान और योगा में
दिलचस्पी रखता है तो यह बेहतर स्थल है । यहां के
आश्रम में एक रात रुकने पर श्रद्धालु को रात्रि के
शांत वातावरण में भगवान शिव के संपूर्ण वैभव के
दर्शन मिल सकते हैं ।
पर्व-त्योहार इस मंदिर में महाशिवरात्रि और
हर अमावस्या पर मेला लगता है । प्रदोष पूनम और
एकादशी पर यहां दिन-रात पूजा-
अर्चना होती रहती है । दूर-दूर से श्रद्धालु समुद्र
द्वारा भगवान शिव के जलाभिषेक
का अलौकिक दृश्य देखने यहां आते हैं ।
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सबसे बड़ा खुलासा
पेप्सी कंपनी अपने शीतल पेय में मिलाती है मानव भ्रूण
यह एक केमिकल युक्त पेय ही नहीं रहा बल्कि मांसाहारी पेय भी है , इसके अन्दर किसी और का नहीं बल्कि मनुष्य का ही भ्रूण डाला गया है
यह सब मैं नहीं बल्कि अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा प्रशासन की एक एजेंसी ने सर्वे किया और दो साल तक पेप्सी के सैंपल एकत्रित किये , उसके बाद एजेंसी ने यह पाया की पेप्सी में खतरनाक रसायन ही नहीं बल्कि मानव भ्रूण की किडनी के उत्तक पेप्सी में मिलाये जाते है ,
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