Thursday, 9 October 2014

सामाजिक समरसता और जागरूकता की दृष्टि से सफल और सहज प्रयोग .......


जीवन की आपाधापी में सबसे ज्यादा क्षति सामाजिक सम्बन्धों की हुई है | गाँव और मोहल्ला छोड़िये, लोगों को पड़ोसी के यहाँ जाने की फुरसत नहीं हैं | अब कोई किसी को अपने यहाँ आने का निमन्त्रण देता भी है तो विवाह आदि समारोह में, जो घर पर नहीं किसी धर्मशाला, होटल या लान मे होते हैं | जिसके कारण लोगों का एक-दूसरे के घर आना-जाना बंद सा हो रहा है और ऐसे में पारिवारिक सुख-दु:ख एकदम निजी होते जा रहे हैं | परिवार छोटे और छोटे होने के कारण हर किसी को अकेलापन और असुरक्षा का भय बना रहता है | सहज मिलना-जुलना बन्द होने के कारण अविश्वास बढ़ता जा रहा है |
हमने एक प्रयोग किया है | भारत भारती के श्री हनुमान मन्दिर में प्रति मंगलवार को परिसर तथा परिसर के बाहर के नवयुवक श्री रामचरितमानस के दस दोहों का पाठ करते थे | मैंने उनके सम्मुख एक बार विषय रखा कि "अगर हम हर मंगलवार यह मानस पाठ सामुहिक रूप से एक-एक के घर पर करें तो इसी बहाने सबके घर पर जाना हो जाएगा" | सुझाव सबको पसन्द आया | पन्द्रह-सोलह परिवारों के नाम निकले | क्रम तय हुआ | तीन से चार महीने मे एक घर का नम्बर आता है, जिस दिन उस घर में यह पाठ होता है बड़े-बूढ़े-बच्चे, माताएँ-बहिनें सभी उत्साहित रहते हैं | उस घर का वातावरण एक-दो घन्टे के लिए उत्सव जैसा हो जाता है | मानस पाठ केवल आधा घन्टे का रहता है, बाकी एक-डेढ़ घन्टे घर के हाल-चाल, बच्चों की पढ़ाई, दूकान-मकान, खेती-बाड़ी सहित अन्य सामाजिक और राष्ट्रीय विषयों पर भी सहज चर्चा हो जाती है | कोई दान-दक्षिणा नहीं, स्वागत के नाम पर बस केवल चाय का प्रावधान रखा है |
पाँच वर्ष से अधिक हो गए | मैं अपने और अन्य मानस मण्डल जुड़े मित्रों के अनुभव के आधार पर कह सकता हूँ कि सामाजिक संवेदना, समरसता और जागरूकता की दृष्टि से यह एक बहुत सफल और सहज प्रयोग है | 

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गुवाहाटी के नौजवान निर्मल रॉय का पासपोर्ट एक साल से अटका हुआ था। जब वह इस बारे में पता करने गए तो पासपोर्ट अफसर अंजलि दास ठाकुरिया ने कहा, 'तुमने मोदी को वोट दिया है, अब उन्हीं से लो पासपोर्ट।' 
रॉय ने ठीक यही किया। उन्होंने 25 अगस्त को प्रधानमंत्री के नाम एक ईमेल लिखा जिसमें बताया कि उनके डॉक्युमेंट्स बनने में देरी हो रही है। तीन दिन बाद रॉय को प्रधानमंत्री कार्यालय और विदेश मंत्रालय दोनों की तरफ चिट्ठियां आईं जिनमें तुरत कार्रवाई का वादा किया गया। 30 अगस्त को पासपोर्ट रॉय के घर पहुंच गया, और 15 सितंबर को सीबीआई ने ठाकुरिया को रिश्वत लेते रंगे हाथ गिरफ्तार भी कर लिया।

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शरद पवार जी की बिटिया सुप्रिया सूले के पास 10 एकड़ ज़मीन है.. और खेती से उनकी आय है 119 करोड़ !! ये उगाती क्या हैं ?? अफ़ीम ?
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केवल सीमा पर जाकर गोली खाना ही देश सेवा नहीं है,अगर रजनीगंधा तुलसी खाकर हर जगह थूकना छोड़ दो तो भी देश पर बहुत बड़ा एहसान होगा।
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भारत का पहला स्मार्ट ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम एक जापानी कम्पनी ने अहमदाबाद में लगाया ..

इस सिस्टम में सड़को पर कई सेंसर और एलइडी डिस्प्ले लगे होते है .... ये सेंसर ट्रैफिक स्लो है या जाम है या नार्मल है इसकी जानकारी देता रहता है .. साथ ही किसी चौराहे पर जिस दिशा से ज्यादा गाड़िया आ रही है तो उधर की ग्रीन लाईट ज्यादा देर तक जलाये रखता है ...
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कोई भी माँ बाप अपने नाबालिक बेटे को किसी चाय की दूकान पर "छोटू" बनने या किसी कालीन या किसी भी फैक्ट्री में मजदूरी करने ख़ुशी से नही भेजता है .... गरीबी और मजबूरी ही माँ बाप को अपने नाजुक हाथो वाले नाबालिक बच्चो को काम करने पर मजबूर करती है ...
भारत में कुछ लोगो ने इन बाल मजदूरों की बेबसी और मजबूरी की विदेशो में जमकर मार्केटिंग की .... बाल मजदूरों के झूठे आंकड़े पेश किये ..और कई डाक्युमेंटरी बनाकर विदेशो से जमकर फंड लिए ...और उन पैसो से पूरी दुनिया में घूमते रहे ... भारत में दो ऐसे लोग थे जिन्होंने इस नीच काम को किया ...पहला अग्निवेश और दूसरा कैलाशा सत्यार्थी
सवाल ये है की जो माँ बाप इतने गरीब है की अपने बच्चो को काम पर भेजते है वो अपने बच्चो को इस महंगाई के जमाने में स्कुल कैसे भेज पायेंगे ? कैलाश सत्यार्थी और अग्निवेश जैसे दलालों ने सिर्फ फैक्ट्रीज से बच्चो को छापा मारकर पकड़ा फिर उन्हें भीख मांगने के लिए बेसहारा छोड़ दिया ...
सिर्फ समस्या बताने से काम नही होता असली मेहनत तो उस समस्या का हल निकालना है
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