Sunday, 12 October 2014

भारतीय गाय इस धरती पर सभी गायो मे सर्वश्रेष्ठ क्यों है ??
यह जानकार आपको शायद झटका लगेगा की हमने
अपनी देशी गायों को गली-गली आवारा घूमने के
लिए छोड़ दिया है । क्यूंकी वे दूध कम देती हैं ।
इसलिए उनका आर्थिक मोल कम है , लेकिन ब्राज़ील
हमारी इन देशी गायो की नस्ल का सबसे
बड़ा निर्यातक बन गया है । जबकि भारत
अमेरिका और यूरोप से घरेलू दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के
लिए विदेशी प्रजाती की गायों का आयात
करता है । वास्तव मे 3 महत्वपूर्ण भारतीय
प्रजाती गिर, कंकरेज , व ओंगल की गाय जर्सी गाय
से भी अधिक दूध देती हैं ।
यंहा तक की भारतीय प्रजाती की गाये होलेस्टेन
फ्राइजीयन जैसी विदेशी प्रजाती की गाय से
भी ज्यादा दूध देती है । और भारत
विदेशी प्रजाती की गाय का आयात करता है
जिनकी रोगो से लड़ने की क्षमता ( वर्ण संकर
जाती के कारण ) भी बहुत कम होती है ।
हाल ही मे ब्राज़ील मे दुग्ध उत्पादन
की प्रतियोगिता हुई थी जिसमे भारतीय
प्रजाती की गिर ने गाय एक दिन मे 48 लीटर दूध
दिया । तीन दिन तक चली इस प्रतियोगिता मे
दूसरा स्थान भी भारतीय प्राजाती की गाय गिर
को ही प्राप्त हुआ । इस गाय ने एक दिन मे 45 लीटर
दूध दिया । तीसरा स्थान भी आंध्रप्रदेश के ओंगल
नस्ल की गाय ( जिसे ब्राज़ील मे नेरोल
कहा जाता है ) को मिला उसने भी एक दिन मे 45
लीटर दूध दिया ।
केवल ज्यादा दुग्ध उत्पादन की ही बात क्यूँ करे ?
भारतीय नस्ल की गाय स्थानीय महोल मे
अच्छी तरह ढली हुई हैं वे भीषण गर्मी भी सह सकती हैं
। उन्हे कम पानी चाहिए , वे दूर तक चल सकती हैं । वे
अनेक संक्रामक रोगो का मुक़ाबला कर सकती हैं । अगर
उन्हे
सही खुराक और सही परिवेश मिले तो वे उच्च उत्पादक
भी बन सकती हैं । हमारी देशी गयो मे ओमेगा -6
फेटी एसीड्स होता है जो केंसर नियंत्रण मे सहायक
होता है ।
विडम्बना देखिए ओमेगा -6 के लिए एक बड़ा उद्योग
विकसित हो गया है जो इसे केपसूल की शक्ल मे बेच
रहा है । , जबकि यह तत्व हमारी गायो के दूध मे
स्वाभाविक ( हमारे पूर्वज ऋषियों द्वारा विकसित
कहना ज्यादा सही होगा ) रूप से विद्यमान है ।
आयातित गायो मे इस तत्व का नामोनिशान
भी नही होता ।
न्यूजीलेंड के वेज्ञानिकों ने पाया है
की पश्चिमी नस्ल की गायो के दूध मे '
बेटा केसो मार्फीन ' नामक मिश्रण होता है ।
जिसकी वजह से अल्जाइमर ( स्मृती लोप ) और
पार्किसन जैसे रोग होते हैं ।
इतना ही नही भारतीय नस्ल की गायो का गोबर
भी आयातित गयो की तुलना मे श्रेष्ठ है ।
जो एसा पंचागभ्य तैयार करने के अनुकूल है
जो रासायनिक खादों से भी बेहतर विकल्प है ।
पिछली सदी के अंत मे ब्राज़ील ने भारतीय पशुधन
का आयात किया था । ब्राज़ील गई गायो मे
गुजरात की गिर और कंकरेज नस्ल तथा आन्ध्रप्रदेश
की ओंगल नस्ल की गाय शामिल थी । इन
गायों को मांस के लिए ब्राज़ील ले
जाया गया था । लेकिन जब वे ब्राज़ील
पहुची तो वंहा के लोगो को एहसास हुआ की इन
गायों मे कुछ खास है ।
अगर भारत मे विदेशी जहरीली वर्ण संकर नस्ल
की गायों के बजाय भारतीय नस्ल की गायो पर
ध्यान दिया होता तो हमारी गायें न केवल
आर्थिक रूप से व्यावहारिक होती बल्कि हमारे
यंहा की खेती और फसल की दशा भी व्यावहारिक
व लाभदायक होती । मरुभूमि के अत्यंत कठिन माहोल
मे रहने वाली थारपारकर जैसी नस्ल की गाये
उपेक्षित न होती । आज दुग्ध उत्पादन ही नही प्रत्येक
क्षेत्र मे आत्म निर्भरता प्राप्त करने के लिए
विदेशी नस्ल ( मलेच्च्यो- मुसालेबीमान व किसाई )
और उनके सहायक चापलूस हन्दुओ से
ज्यादा विनाशकारी और कुछ नही हो सकता ।
इससे यह स्पष्ट हो जाता है की भारतीय सारकर हर
क्षेत्र मे पूर्व निर्धारित षड्यंत्र के तहत
गलत नीती अपनाकर चल रही है ।

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