Sunday 12 October 2014

कोई भी माँ बाप अपने नाबालिक बेटे को किसी चाय की दूकान पर "छोटू" बनने या किसी कालीन या किसी भी फैक्ट्री में मजदूरी करने ख़ुशी से नही भेजता है .... गरीबी और मजबूरी ही माँ बाप को अपने नाजुक हाथो वाले नाबालिक बच्चो को काम करने पर मजबूर करती है ...
भारत में कुछ लोगो ने इन बाल मजदूरों की बेबसी और मजबूरी की विदेशो में जमकर मार्केटिंग की .... बाल मजदूरों के झूठे आंकड़े पेश किये ..और कई डाक्युमेंटरी बनाकर विदेशो से जमकर फंड लिए ...और उन पैसो से पूरी दुनिया में घूमते रहे ... भारत में दो ऐसे लोग थे जिन्होंने इस नीच काम को किया ...पहला अग्निवेश और दूसरा कैलाशा सत्यार्थी
सवाल ये है की जो माँ बाप इतने गरीब है की अपने बच्चो को काम पर भेजते है वो अपने बच्चो को इस महंगाई के जमाने में स्कुल कैसे भेज पायेंगे ? कैलाश सत्यार्थी और अग्निवेश जैसे दलालों ने सिर्फ फैक्ट्रीज से बच्चो को छापा मारकर पकड़ा फिर उन्हें भीख मांगने के लिए बेसहारा छोड़ दिया ...
सिर्फ समस्या बताने से काम नही होता असली मेहनत तो उस समस्या का हल निकालना
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कितनी फिल्मो का विरोध किया जिसमे बच्चे काम करते हे....
कितने टीवी सीरियल का विरोध किया जिसमे बच्चे काम करते है....
--------[क्या ये बाल मजदूर नहीं है. ]-----------------
क्या गरीबी और बेचारी में मजदूरी करने बाले बच्चे ही बाल मजदूर की
श्रेणी में आते है.........
या इनकी बेचारगी को बेच कर अपनी दूकान चलाते हो......

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