जो सेक्युलर ज्ञान बांटते फिर है की पटाखे मत फोड़ो, ये मत करो वो मत करो, इनके मुह से आवाज नहीं निकली जब भोपाल में पेटा कार्यकर्ताओ को शाकाहारी ईद का सन्देश देने के लिए दौड़ा दौड़ा कर पीटा जा रहा था। क्रिसमस और न्यू ईयर पर तो इनकी दिमाग की बत्ती बुझ जाती है जब सारी दुनिया में पटाखे फोड़े जाते है।
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नोबेल प्राइज तो मात्र $ 1.2 million = लगभग 7 करोड़ रूपये का होता है। लेकिन इस पुरस्कार का प्रचार करने वाली लॉबियाँ इससे हजारों गुना अधिक रकम तो बिकाऊ मीडिया पर इसके लिए खर्च कर देती हैं ताकि वे नोबेल प्राइज का हौआ बनायें। सैंकड़ो पत्रकारों को इस भ्रम को सर्जित करने के लिए खरीदा जाता है कि नोबेल पुरस्कार किसी राजनीतिक उद्देश्य से अभिप्रेरित नही हैं, हजारों पत्रकारों को इस मुद्दे पर मात्र अपना मुंह बंद रखने की कीमत दी जाती है।
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विज्ञान के क्षेत्र में जो नोबेल प्राइज दिया जाता है वह वास्तविक काम के लिए दिया जाता है। लेकिन अर्थशास्त्र, साहित्य और शांति का नोबेल पुरस्कार बस ऐसे व्यक्तियों को आगे बढ़ने के लिए दिए जाते हैं जो पश्चिमी लॉबियों के हितो की तुष्टि कर सके। वस्तुतः ये पुरस्कार किसी पेशेवर शिकारी को चमकीला कवच पहना कर संत की तरह प्रस्तुत करने का साधन हैं।
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इसी प्रकार के कई अन्य पुरस्कारों जैसे रमन मैग्सेसे अवार्ड आदि के पीछे भी समान उद्देश्य है। लेकिन नोबेल पुरस्कार तो इन सब की जननी है। ये पुरस्कार वैसे व्यक्तियों को दिए जाते हैं जो पश्चिमी देशों की तरफ से उनके हितों के लिए कार्य कर अपने देशों के हितों का शिकार करते हैं। इन्हे एक सच्चे कार्यकर्ता और क्रन्तिकारी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जबकि वे वास्तव में भेड़ की खाल में छिपे भेड़िये होते हैं।
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क्या पुरे साल मिलावटी मावे, मिलावटी दूध नहीं बिकते ?? क्या इनके ऊपर छापे नहीं पड़ते ? आखिर जब हिन्दू पर्व आता है तभी क्यूँ दिखाया जाता है ये सब ?
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काश ऐसे ही ईद के वक़्त "Save Animals" का पोस्टर लेके घूमते ..ये 20 हजारी दल्ले उस समय कहा ''मर'' गये थे जब लाखो बेजुवान जानवर' काटे जा रहे थे.
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ISIS SHOP..PAID MEDIA SILENT,SECULAR MEDIA SILENT,... CONGRESS and AAP SILENT,
औरतों और लड़कियों का बिक्री केंद्र-सिंजार क्षेत्र ईराक
SALE OF WOMEN AND GIRLS in SINJAR (IRAQ)
पैसा सिर्फ अमरीकी डालर में,
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नोबेल प्राइज तो मात्र $ 1.2 million = लगभग 7 करोड़ रूपये का होता है। लेकिन इस पुरस्कार का प्रचार करने वाली लॉबियाँ इससे हजारों गुना अधिक रकम तो बिकाऊ मीडिया पर इसके लिए खर्च कर देती हैं ताकि वे नोबेल प्राइज का हौआ बनायें। सैंकड़ो पत्रकारों को इस भ्रम को सर्जित करने के लिए खरीदा जाता है कि नोबेल पुरस्कार किसी राजनीतिक उद्देश्य से अभिप्रेरित नही हैं, हजारों पत्रकारों को इस मुद्दे पर मात्र अपना मुंह बंद रखने की कीमत दी जाती है।
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विज्ञान के क्षेत्र में जो नोबेल प्राइज दिया जाता है वह वास्तविक काम के लिए दिया जाता है। लेकिन अर्थशास्त्र, साहित्य और शांति का नोबेल पुरस्कार बस ऐसे व्यक्तियों को आगे बढ़ने के लिए दिए जाते हैं जो पश्चिमी लॉबियों के हितो की तुष्टि कर सके। वस्तुतः ये पुरस्कार किसी पेशेवर शिकारी को चमकीला कवच पहना कर संत की तरह प्रस्तुत करने का साधन हैं।
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इसी प्रकार के कई अन्य पुरस्कारों जैसे रमन मैग्सेसे अवार्ड आदि के पीछे भी समान उद्देश्य है। लेकिन नोबेल पुरस्कार तो इन सब की जननी है। ये पुरस्कार वैसे व्यक्तियों को दिए जाते हैं जो पश्चिमी देशों की तरफ से उनके हितों के लिए कार्य कर अपने देशों के हितों का शिकार करते हैं। इन्हे एक सच्चे कार्यकर्ता और क्रन्तिकारी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है जबकि वे वास्तव में भेड़ की खाल में छिपे भेड़िये होते हैं।
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क्या पुरे साल मिलावटी मावे, मिलावटी दूध नहीं बिकते ?? क्या इनके ऊपर छापे नहीं पड़ते ? आखिर जब हिन्दू पर्व आता है तभी क्यूँ दिखाया जाता है ये सब ?
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काश ऐसे ही ईद के वक़्त "Save Animals" का पोस्टर लेके घूमते ..ये 20 हजारी दल्ले उस समय कहा ''मर'' गये थे जब लाखो बेजुवान जानवर' काटे जा रहे थे.
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ISIS SHOP..PAID MEDIA SILENT,SECULAR MEDIA SILENT,... CONGRESS and AAP SILENT,
औरतों और लड़कियों का बिक्री केंद्र-सिंजार क्षेत्र ईराक
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