हरे पर्दों का रहस्य
आर्य समाज के प्रचारक उषबोधन जी प्रचार करने राजस्थान के एक आर्यसमाज में गये। उन्होंने देखा कि आर्यसमाज के परदे से लेकर बिछाने कि चादरे तक हरे रंग के थे। उनके मन में कुछ उत्सुकता हुई पर वे चुप रहे। दोपहर को आर्यसमाज के प्रधान श्री चौहान जी के घर पर भोजन करने गये तो उनके घर पर भी हरे रंग के परदे और चादरे देखी। उन्होंने प्रधान जी से इसका कारण पूछा।
प्रधान जी ने कहा कि इसका उत्तर आपको कल प्रात: चार बजे मिलेगा। प्रात: काल में आप सैर करने उनके साथ गये। चौहान जी उन्हें पीरों कि कब्र पर ले गये और उन पर बिछी हुई चादरों को उतारने लगे और जोर से कहने लगे उठों कब्रों में सोने वालो भोर हो गई हैं।
चौहान जी बोले कि मैं हर कब्र से उसकी चादर उतार लाता हूँ। उसे या तो किसी गरीब को ओढ़ने के लिए दे देता हूँ अथवा उसका सदुपयोग कर लेता हूँ।
मुस्लिम समाज तो मुर्दों पर चादरे चढ़ाकर मूर्खता कर ही रहा हैं उसके मुर्ख हिन्दू बिना सत्य को जाने उनका अनुसरण कर रहा हैं। इससे अधिक और क्या मूर्खता हो सकती हैं।
उषबोधन जी चौहान जी कि धर्म भावना और अन्धविश्वास के विरूद्ध भावना को सुनकर चकित रह गये।
आर्य समाज के प्रचारक उषबोधन जी प्रचार करने राजस्थान के एक आर्यसमाज में गये। उन्होंने देखा कि आर्यसमाज के परदे से लेकर बिछाने कि चादरे तक हरे रंग के थे। उनके मन में कुछ उत्सुकता हुई पर वे चुप रहे। दोपहर को आर्यसमाज के प्रधान श्री चौहान जी के घर पर भोजन करने गये तो उनके घर पर भी हरे रंग के परदे और चादरे देखी। उन्होंने प्रधान जी से इसका कारण पूछा।
प्रधान जी ने कहा कि इसका उत्तर आपको कल प्रात: चार बजे मिलेगा। प्रात: काल में आप सैर करने उनके साथ गये। चौहान जी उन्हें पीरों कि कब्र पर ले गये और उन पर बिछी हुई चादरों को उतारने लगे और जोर से कहने लगे उठों कब्रों में सोने वालो भोर हो गई हैं।
चौहान जी बोले कि मैं हर कब्र से उसकी चादर उतार लाता हूँ। उसे या तो किसी गरीब को ओढ़ने के लिए दे देता हूँ अथवा उसका सदुपयोग कर लेता हूँ।
मुस्लिम समाज तो मुर्दों पर चादरे चढ़ाकर मूर्खता कर ही रहा हैं उसके मुर्ख हिन्दू बिना सत्य को जाने उनका अनुसरण कर रहा हैं। इससे अधिक और क्या मूर्खता हो सकती हैं।
उषबोधन जी चौहान जी कि धर्म भावना और अन्धविश्वास के विरूद्ध भावना को सुनकर चकित रह गये।
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