कभी पगडंडियों से होते हुए जाती थीं स्कूल, आज मिशन मंगल की टीम में
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कोटा. कभी गांव की पगडंडियों से होते हुए स्कूल जाना पड़ता था। ढेरों दुश्वारियों का सामना करते हुए स्कूल की पढ़ाई पूरी की। मां-बाप के पास इतने पैसे नहीं थे कि टू-व्हीलर दिला सकें। लेकिन आज उनकी लाडली राजदीप कौर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सबसे बड़े अंतरिक्ष मिशन (मिशन मंगल) में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उसे मंगल से आने वाली तस्वीरों की प्रॉसेसिंग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। बूंदी के नैनवा की रहने वाली राजदीप को इसके लिए इसरो के अहमदाबाद सेंटर से बेंगलुरु बुलाया गया है। उसका सिलेक्शन 5 साल पहले इसरो में बतौर जूनियर साइंटिस्ट हुआ था।
उसने 8वीं और 10वीं की पढ़ाई नैनवां के देई के सरकारी स्कूल से की है। 12वीं नैनवां के सीनियर सेकंडरी स्कूल से की। इसके बाद राजदीप ने पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से बीटेक किया, जहां गोल्ड मेडल मिला। खुशी से गदगद पिता गुरदीप ने बताया कि वह उस समय बीटेक के बैच में एकमात्र हिंदी मीडियम की स्टूडेंट थी।
संघर्ष कर पाया यह मुकाम
आसान नहीं थी राह- वर्तमान में भीलवाड़ा में व्यवसाय कर रहे गुरदीप ने बताया कि देई में 12वीं तक के स्कूल नहीं थे। ऐसे में राजदीप को रोज 13 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। जीप और अन्य गाड़ियों से वह किसी तरह स्कूल पहुंचती थी। उस समय पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उसे टू-व्हीलर तक दिला पाते। राजदीप की मां हरविंदर कौर बताती है कि बचपन से ही वह विज्ञान को लेकर उत्साहित रहती थी। विज्ञान में रुचि के चलते ही उसने इतना संघर्ष किया।
एक प्रमोशन भी मिला
2009 में इसरो में बतौर जूनियर साइंटिस्ट ज्वाइन करने वाली राजदीप को एक प्रमोशन भी मिल चुका है। वर्तमान में उनका कैडर साइंटिस्ट-डी का है। यूजीसी के पूर्व चेयरमैन और जाने-माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल भी राजदीप से काफी प्रभावित हैं। वे एक अवार्ड सेरेमनी में उसे सम्मानित भी कर चुके हैं।
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कोटा. कभी गांव की पगडंडियों से होते हुए स्कूल जाना पड़ता था। ढेरों दुश्वारियों का सामना करते हुए स्कूल की पढ़ाई पूरी की। मां-बाप के पास इतने पैसे नहीं थे कि टू-व्हीलर दिला सकें। लेकिन आज उनकी लाडली राजदीप कौर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के सबसे बड़े अंतरिक्ष मिशन (मिशन मंगल) में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। उसे मंगल से आने वाली तस्वीरों की प्रॉसेसिंग की जिम्मेदारी सौंपी गई है। बूंदी के नैनवा की रहने वाली राजदीप को इसके लिए इसरो के अहमदाबाद सेंटर से बेंगलुरु बुलाया गया है। उसका सिलेक्शन 5 साल पहले इसरो में बतौर जूनियर साइंटिस्ट हुआ था।
उसने 8वीं और 10वीं की पढ़ाई नैनवां के देई के सरकारी स्कूल से की है। 12वीं नैनवां के सीनियर सेकंडरी स्कूल से की। इसके बाद राजदीप ने पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से बीटेक किया, जहां गोल्ड मेडल मिला। खुशी से गदगद पिता गुरदीप ने बताया कि वह उस समय बीटेक के बैच में एकमात्र हिंदी मीडियम की स्टूडेंट थी।
संघर्ष कर पाया यह मुकाम
आसान नहीं थी राह- वर्तमान में भीलवाड़ा में व्यवसाय कर रहे गुरदीप ने बताया कि देई में 12वीं तक के स्कूल नहीं थे। ऐसे में राजदीप को रोज 13 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था। जीप और अन्य गाड़ियों से वह किसी तरह स्कूल पहुंचती थी। उस समय पारिवारिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि उसे टू-व्हीलर तक दिला पाते। राजदीप की मां हरविंदर कौर बताती है कि बचपन से ही वह विज्ञान को लेकर उत्साहित रहती थी। विज्ञान में रुचि के चलते ही उसने इतना संघर्ष किया।
एक प्रमोशन भी मिला
2009 में इसरो में बतौर जूनियर साइंटिस्ट ज्वाइन करने वाली राजदीप को एक प्रमोशन भी मिल चुका है। वर्तमान में उनका कैडर साइंटिस्ट-डी का है। यूजीसी के पूर्व चेयरमैन और जाने-माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल भी राजदीप से काफी प्रभावित हैं। वे एक अवार्ड सेरेमनी में उसे सम्मानित भी कर चुके हैं।
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