Tuesday, 28 October 2014

sabskar=jan=भगिनी निवेदिता

भगिनी निवेदिता का पूरा नाम 'मार्ग्रेट एलिज़ाबेथ नोबल' था। इनका जन्म 28 अक्टूबर 1867 को आयरलैण्ड के डेंगानेन में हुआ और मृत्यु 11 अक्टूबर 1911 को दार्जिलिंग, भारत में हुई। वह एक अच्छी पत्रकार तथा वक्ता थीं। 

1895 में मार्ग्रेट स्वामी विवेकानन्द जी से उनकी इंग्लैण्ड यात्रा के दौरान मिलीं। वह वेदान्त के सार्वभौम सिद्धान्तों, विवेकानन्द की मीमांसा और वेदान्त दर्शन की मानववादी शिक्षाओं की ओर आकर्षित हुईं तथा विवेकानन्द जी के 1896 में भारत आने से पहले तक इंग्लैण्ड में वेदान्त आन्दोलन के लिए काम करती रहीं।

उनके सम्पूर्ण समर्पण के कारण विवेकानन्द ने उन्हें निवेदिता नाम दिया, जिसका अर्थ है, जो समर्पित है। आरम्भ में वह एक शिक्षिका के रूप में भारत आई थीं, ताकि विवेकानन्द की स्त्री-शिक्षा की योजनाओं को मूर्त किया जा सके। उन्होंने कलकत्ता के एक छोटे से घर में स्थित स्कूल में कुछ महीनों तक पश्चिमी विचारों को भारतीय परम्पराओं के अनुकूल बनाने के प्रयोग किए। 1899 में स्कूल बन्द करके धन इकट्ठा करने के लिए वह पश्चिमी देशों की यात्रा पर चली गईं। 1902 में लौटकर उन्होंने फिर से स्कूल की शुरुआत की। 1903 में निवेदिता ने आधारभूत शिक्षा के साथ-साथ युवा महिलाओं को कला व शिल्प का प्रशिक्षण देने के लिए एक महिला खण्ड भी खोला। उनके स्कूल ने शिक्षण और प्रशिक्षण जारी रखा।

भारत में विधिवत दीक्षित होकर वह स्वामी जी की शिष्या बन गई और उन्हें रामकृष्ण मिशन के सेवाकार्य में लगा दिया गया। कलकत्ता में भीषण रूप से प्लेग फैलने पर भारतीय बस्तियों में प्रशंसनीय कार्य ने उन्हें आदर्श रूप में स्थापित कर दिया। निवेदिता ने प्रत्यक्ष रूप से कभी किसी आन्दोलन में भाग नहीं लिया, लेकिन उन्होंने भारतीय युवाओं को प्रेरित किया, जो उन्हें रूमानी राष्ट्रीयता और प्रबल भारतीयता का दर्शनशास्त्री मानते थे।

रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें जननी की संज्ञा दी। निवेदिता की मृत्यु दार्जिलिंग में 44 वर्ष की आयु में हुई। उनकी समाधि पर अंकित है- यहाँ सिस्टर निवेदिता का अस्थि कलश विश्राम कर रहा है, जिन्होंने अपना सर्वस्व भारत को दे दिया।

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