Monday, 26 October 2015

महर्षि वाल्मीकि जी की कहानी बडी अर्थपूर्ण है । सत्पुरुषों की संगति में आकर लोगों की उन्नति कैसे होती है, महर्षि वाल्मीकि इसका एक महान उदाहरण हैं । नारदमुनि के संपर्क में आकर वे एक महान ऋषि, ब्रम्हर्षि बने, तथा उन्होंने ‘रामायण’की रचना की, जिसे संपूर्ण विश्व कभी भूल नहीं सकता । पूरे विश्व के महाकाव्यों में से वह एक है । दूसरे देशों के लोग उसे अपनी-अपनी भाषाओंमें पढते हैं । रामायणके चिंतनसे हमारा जीवन सुधर सकता है । हमें यह महाकाव्य देनेवाले महर्षि वाल्मीकि को हम कभी भूल नहीं सकते । इस महान ऋषि एवं चारण को हमारा कोटि-कोटि प्रणाम ।
महर्षि वाल्मीकि की रामायण संस्कृत भाषाका पहला काव्य है, अत: उसे ‘आदि-काव्य’ अथवा ‘पहला काव्य’ कहा जाता है तथा महर्षि वाल्मीकिको `आदि कवि’ अथवा ‘पहला कवि’ कहा जाता है ।
जिस कविने ‘रामायण’ लिखी तथा लव एवं कुशको यह गाना तथा कहानी सिखाई, वे एक महान ऋषि, महर्षि वाल्मीकि थे । यह व्यक्ति महर्षि तथा गायक कवि कैसे बने यह बडी बोधप्रद कहानी है । महर्षि वाल्मीकि की रामायण संस्कृत भाषामें है तथा बहुत सुंदर काव्य है ।
महर्षि वाल्मीकि की रामायण गायी जा सकती है । कोयल की आवाजकी तरह वह कानों को भी बडी मीठी (कर्णप्रिय) लगता है । महर्षि वाल्मीकिको काव्यके पेडपर बैठी तथा मीठा गानेवाली कोयल कहा गया है । जो भी रामायण पढते हैं, प्रथम महर्षि वाल्मीकि को प्रणाम कर तदुपरांत महाकाव्य की ओर बढते हैं ।
महाकाव्य रामायण की रचना
नारदमुनि के जानेके पश्चात महर्षि वाल्मीकि गंगा नदी पर स्नान करने गए । भारद्वाज नामका शिष्य उनके वस्त्र संभाल रहा था । चलते-चलते वे एक निर्झर के पास आए । निर्झरका पानी बिल्कुल स्वच्छ था । धर्माचा विजय झाला ! – शंकराचार्य स्वामी जयेंद्र सरस्वती वाल्मीकि ने अपने शिष्य से कहा, `देखो, कितना स्वच्छ पानी है, जैसे किसी अच्छे मानवका स्वच्छ मन! आज मैं यहीं स्नान करूंगा।’
महर्षि वाल्मीकि पानी में पांव रखने हेतु उचित स्थान देख रहे थे, तभी उन्हें पंछियोंकी मीठी आवाज सुनाई दी । ऊपर देखनेपर उन्हें दो पंछी एक साथ उडते हुए दिखे । उन पंछियोंकी प्रसन्नता देखकर महर्षि वाल्मीकि अति प्रसन्न हुए ।
तभी तीर लगने से एक पंछी नीचे गिर गया । वह एक नर पक्षी था । उसकी घायल हालत देखकर उसकी साथी दुख से चिल्लाने लगी । यह ह्रदयविदारक दृश्य देखकर महर्षि वाल्मीकि का ह्रदय पिघल गया । पंछीपर किसने तीर चलाया यह देखने हेतु उन्होंने इधर-उधर देखा । तीर-कमानके साथ एक आखेटक निकट ही दिखाई दिया । आखेटकने (शिकारीने) खाने हेतु पंछीपर तीर चलाया था । महर्षि वाल्मीकि बडे क्रोधित हुए । उनका मुंह खुला, और ये शब्द निकल गए : `तुमने एक प्रेमी जोडे में से एककी हत्या की है, तुम खुद अधिक दिनों तक जीवित नहीं रहोगे !’ दुखमें उनके मुंहसे एक श्लोक निकल गया । जिसका अर्थ था, तुम अनंत कालके लंबे सालतक शांतिसे न रह सकोगे । तुमने एक प्रणयरत पंछी की हत्या की है ।
पंछीका दुख देखकर महर्षि वाल्मीकि ने बडे दुखी होकर आखेटक को (शिकारीको) शाप दिया; किंतु किसी को शाप देनेसे वे भी दुखी हो गए । उनके साथ चलने वाले भारद्वाज मुनिके पास उन्होंने अपना दुख प्रकट किया । महर्षि वाल्मीकिके मुंहसे श्लोक निकल जानेके कारण उन्हें भी आश्चर्य हुआ था । उनके आश्रम वापिस आने पर तथा उसके पश्चात भी वे श्लोक के विषयमें ही सोचते रहे ।
महर्षि वाल्मीकि का मन अभी भी उनके मुंहसे निकले श्लोकका ही विचार कर रहा था, कि सृष्टिके देवता भगवान ब्रह्मा स्वयं उनके सामने प्रकट हुए । उन्होंने महर्षि वाल्मीकिसे कहा, `हे महान ऋषि, आपके मुंहसे जो श्लोक निकला, उसे मैंने ही प्रेरित किया था । अब आप श्लोकों के रूपमें ‘रामायण’ लिखेंगे । नारद मुनिने तुम्हें रामायणकी कथा सुनाई है । तुम अपनी आंखों से सब देखोगे । तुम जो भी कहोगे, सच होगा । तुम्हारे शब्द सत्य होंगे । जबतक इस दुनिया में नदियां तथा पर्वत हैं, लोग ‘रामायण’ पढेंगे । ’ भगवान ब्रह्मा ने उन्हें ऐसा आशीर्वाद दिया और वे अदृश्य हो गए ।
महर्षि वाल्मीकिी ने ‘रामायण’ लिखी । सर्वप्रथम उन्होंने श्रीराम के सुपुत्र लव एवं कुश को श्लोक सिखाए । उनका जन्म महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में हुआ तथा वहीं पर वे बडे हुए ?

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