Monday, 12 October 2015

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सीताफल या शरीफा --- www.oldveda.com
- कहीं पर भी बाड़ी या खेत की मेढ़ में सरलता से उगने एवं फल देने वाला ‘सीताफल’ ही एकमात्र ऐसा वृक्ष एवं फल है जिसपर किसी रोग का आक्रमण नहीं होता। लोग इसे राम एवं सीता से जोड़ते हैं। ऐसी मान्यता है कि सीता ने वनवास के समय जो वन फल राम को भेंट किया, उसी का नाम सीताफल पड़ा।
- आयुर्वेद के मतानुसार सीताफल शीतल, पित्तशामक, कफ एवं वीर्यवर्धक, तृषाशामक, पौष्टिक, तृप्तिकर्ता, मांस एवं रक्तवर्धक, उलटी बंद करने वाला, बलवर्धक, वातदोषशामक एवं हृदय के लिए हितकर है।
- आधुनिक विज्ञान के मतानुसार सीताफल में कैल्शियम, लौह तत्त्व, फासफोरस, विटामिन – थायमीन, राईबोफ्लेविन एवं विटामिन सी आदि अच्छे प्रमाण में होते हैं।
- जिन लोगों की प्रकृति गर्म अर्थात् पित्तप्रधान है उनके लिए सीताफल अमृत के समान गुणकारी है।
औषधी प्रयोगः
- हृदय पुष्टिः जिन लोगों का हृदय कमजोर हो, हृदय का स्पंदन खूब ज्यादा हो, घबराहट होती हो, उच्च रक्तचाप हो ऐसे रोगियों के लिए भी सीताफल का सेवन लाभप्रद है। ऐसे रोगी सीताफल की ऋतु में उसका नियमित सेवन करें तो उनका हृदय मजबूत एवं क्रियाशील बनता है।
- भस्मक (भूख शांत न होना)- जिन्हें खूब भूख लगती हो, आहार लेने के उपरांत भी भूख शांत न होती हो ; ऐसे भस्मक रोग में भी सीताफल का सेवन लाभदायक है।
- अतिसार — सीताफल का कच्चा फल खाना अतिसार और पेचिश में उपयोगी है।
- घाव पर — सीताफल के पत्तों को पीसकर, सेंधा नमक मिलाकर पुल्टिस को घाव पर बांधने से उसमें पड़े हुए कीड़े मर जाते हैं।
कच्चे अपक्व फोड़ों पर सीताफल के पत्ते, कच्ची तंबाकू और सूखे चूने में शहद मिलाकर घाव पर बांधने से शीघ्र पकता है और भीतरी पीप बाहर निकलकर घाव शीघ्र ठीक होता है।
- जुएं या लीख में — कच्चे सीताफल का चूर्ण या इसके बीज का चूर्ण बनाकर रात में सोने से पूर्व सिर में खूब लगाकर सिर को कपड़े से बांध लें। इससे सिर के बालों में पड़ी जुएं और लीखें मर जाती हैं।
- पित्त में — पके सीताफल को खुली जगह ओस में रख दें। सवेरे खाने से पित्त का दाह शांत होता है।
- शरीर की जलन : शरीफा सेवन करने या इसके गूदे से बने शर्बत शरीर की जलन को ठीक करता है।
- बालों के रोग : शरीफा के बीजों को बकरी के दूध के साथ पीसकर बालों में लगाने से सिर के उड़े हुए बाल फिर से उग आते हैं।
- मिर्गी हिस्टीरिया : इसके पत्तों को पीसकर उसका पानी रोगी/रोगिणी की दोनों नासाओं (नाक के दोनों ओर) में दो-दो बूंद डालने से होश आ जाएगा।
- गांठ का इलाज : पके हुए सीताफल का गूदा कूटकर पोटली बांधने पर सांघातिक गांठ फूट जाते हैं।
- घाव में कृमि : सीताफल के पत्तों को कूटकर उसमें सेंधा नमक मिला, घाव वाले स्थान पर रख पट्टी में बांध दें। इससे फोड़े या घाव में पीव तथा कीड़े, कृमि पड़ गये हो तो वे नष्ट हो जाएंगे।
- घाव में कीटाणु : सीताफल के पत्ते पर तम्बाकू का चूर्ण, बुझा हुआ चूना को शहद में मिलाकर इसे घाव पर बांध दें। तीन दिन भीतर घाव के कीटाणु मर जायेंगे।
सावधानीः
- सीताफल गुण में अत्यधिक ठंडा होने के कारण ज्यादा खाने से सर्दी होती है। कइयों को ठंड लगकर बुखार आने लगता है, अतः जिनकी कफ-सर्दी की तासीर हो वे सीताफल का सेवन न करें। - जिनकी पाचनशक्ति मंद हो, बैठे रहने का कार्य करते हों, उन्हें सीताफल का सेवन बहुत सोच-समझकर सावधानी से करना चाहिए, अन्यथा लाभ के बदले नुक्सान होता है।
- सीताफल का बीज आंख में जाने पर दाह-जलन करता है, इससे आंखें खराब हो जाती हैं। जुएं या लीखें मारने के लिए उनके बीज का चूर्ण सिर में भरते समय आंख में न चला जाए।
- सीताफल न पचने पर फायदे के बदले नुकसान भी कर देता है।

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