Ved Parkash Sharma
वर्तमान भोगवादी लोगो के अनुसार ईश्वर संकीर्ण मानसिकता वाला रहा होगा क्योंकि वर्तमान जनसमुदाय के अनुसार मांस खाने में ,या शराब पीने में या जुँवा वैश्या गमन इत्यादि में कोई बुराई नहीं है...
मांसाहार करने वालो के अनुसार मांस में प्रोटीन होता है
मांसाहार करने वालो के अनुसार मांस में प्रोटीन होता है
भगवद् गीता में भगवान् ने पाप के चार स्तम्भ बताये है
1)मांसाहार
2)मदिरा
3)जुंवा
4)वैश्या गमन....
इन्ही चार स्तंभों पर पाप खड़ा है..
1)
मांसाहार1)मांसाहार
2)मदिरा
3)जुंवा
4)वैश्या गमन....
इन्ही चार स्तंभों पर पाप खड़ा है..
1)
पशुओ की हत्या कर उन्हें अपना आहार बना लेना, या फिर किसी मनुष्य को ही खा लेना इत्यादि पाप है क्योंकि जीवन देने वाला ईश्वर है तब फिर किसी को क्या हक़ की वो किसी की हत्या करे,उसको तड़पा कर मारे,जुबान के स्वाद के लिए उसकी ह्त्या करे...उसका खून बहाये... ये हक़ मनुष्य की कब से मिला?? इसीलिए मांसाहार करने वालो को ईश्वर ने राक्षस या असुर की संज्ञा दी है....मांसाहार करने वाले अधिकतर लोग हिंसक प्रवृत्ति के होते है, जैसा भोजन होगा वैसा मन होगा..मांसाहार एक तरह का तामसिक भोजन होता है और मांस खाने वाले लोग इसका त्याग नहीं कर पाते...क्योंकि उनको मांसाहार की लत होती है....इसका सिर्फ एक अपवाद इतना ही है कि जहाँ अन्न का अभाव हो वहां मांसाहार किया जा सकता है
2)मदिरा यानि शराब..
. शराब पाप का दूसरा स्तम्भ है, शराब मनुष्य के बुद्धि विवेक को नष्ट करती है और कहीं न कहीं अपराध को जन्म देती है ..शराब एक तामसिक पेय पदार्थ है..और जिनको इसकी लत होती है वो इसका त्याग नहीं कर पाते क्योंकि तामसिक चीजो का यही गुण होता है की जिसने उनका संपर्क किया वो उसके आदि हो जाते है...बेहतर होगा तामसिक पदार्थो से दूर रहा जाये
3)जुँवा
3)जुँवा
जुँवा एक तरह का छल है जिसने धर्मराज युद्धिस्थिर की बुद्धि भ्रष्ट कर दी थी..... इस से सदैव दूर रहना चाहिए... ये पाप का तीसरा स्तम्भ है... जुवा खेलने से घर की लक्ष्मी का नाश होता है...भले व्यक्ति ये कहे की उसने इतना पैसा कमाया मगर वो पैसा ज्यादा दिन टिकता नहीं....और एक समय ऐसा आता है की व्यक्ति बर्बाद हो जाता है...
4)वैश्यालय जाना
4)वैश्यालय जाना
एक तरह का पाप है और इस तरह के पाप से सदैव दूर रहना चाहिए, गीता के जानकर इस चौथे स्तम्भ के अंतर्गत लिव इन रिलेशन और विवाहेत्तर संबंधो को भी शामिल करते है और उन्हें भी पाप की श्रेणी में खड़ा करते है...अनैतिक यौन सम्बन्ध से सदैव बचना चाहिए....
ये चार पाप के स्तम्भ है... और जो कोई भी इन चारो में से किसी एक में भी लिप्त है वो उसको जस्टिफाई करने की कोशिश करता है....क्योंकि उसकी बुद्धि पर माया का पर्दा होता है... इन चार स्तम्भ पर ही पाप टिका हुआ है और व्यक्ति को इनसे दूर रहना चाहिए...
ये चार पाप के स्तम्भ है... और जो कोई भी इन चारो में से किसी एक में भी लिप्त है वो उसको जस्टिफाई करने की कोशिश करता है....क्योंकि उसकी बुद्धि पर माया का पर्दा होता है... इन चार स्तम्भ पर ही पाप टिका हुआ है और व्यक्ति को इनसे दूर रहना चाहिए...
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