बेटे को कुछ समझाते हुए महाभारत का रेफरेंस दे रहा था...बेटा, Conflict को जहाँ तक हो सके, avoid करना चाहिए. महाभारत से पहले कृष्ण भी गए थे दुर्योधन के दरबार में. यह प्रस्ताव लेकर, कि हम युद्ध नहीं चाहते. तुम पूरा राज्य रखो. पाँडवों को सिर्फ पाँच गाँव दे दो...वे चैन से रह लेंगे, तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे.
बेटे ने पूछा - पर इतना unreasonable proposal लेकर कृष्ण गए क्यों थे? अगर दुर्योधन प्रोपोजल एक्सेप्ट कर लेता तो?
बेटे ने पूछा - पर इतना unreasonable proposal लेकर कृष्ण गए क्यों थे? अगर दुर्योधन प्रोपोजल एक्सेप्ट कर लेता तो?
- नहीं करता. कृष्ण को पता था कि वह प्रोपोजल एक्सेप्ट नहीं करेगा...उसके मूल चरित्र के विरुद्ध था.
- फिर कृष्ण ऐसा प्रोपोजल लेकर गए ही क्यों थे?
- वे तो सिर्फ यह सिद्ध करने गए थे कि दुर्योधन कितना अनरीजनेबल, कितना अन्यायी था. वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे, कि देख लो बेटा...युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा...हर हाल में. अब भी कोई शंका है तो निकाल दो मन से. तुम कितना भी संतोषी हो जाओ, कितना भी चाहो कि घर में चैन से बैठूँ, दुर्योधन तुमसे हर हाल में लड़ेगा ही. लड़ना या ना लड़ना तुम्हारा ऑप्शन नहीं है...
फिर भी बेचारे अर्जुन को आखिर तक शंका रही...कृष्ण ने सत्रह अध्याय तक फंडा दिया...फिर भी शंका थी.. ज्यादा अक्ल वालों को ही ज्यादा शंका होती है...दुर्योधन को कभी शंका नही थी, उसे हमेशा पता था कि उसे युद्ध करना ही है...उसने गणित लगा रखा था.
हिन्दुओं को भी समझ लेना है...कन्फ्लिक्ट होगा या नहीं, यह आपका ऑप्शन नहीं है...आपने तो पाँच गाँव का प्रोपोजल भी देकर देख लिया...देश के टुकड़े मंजूर कर लिए, हर बात पर विशेषाधिकार देकर देख लिया. हज के लिए सबसीडी देकर देख ली, उनके लिए अलग नियम कानून बनवा कर देख लिए..आप चाहे जो कर लीजिए, उनकी माँगें नहीं रुकने वाली. उन्हें सबसे स्वादिष्ट उसी गौमाता का माँस लगेगा जो आपके लिए पवित्र है, उसके बिना उन्हें भयानक कुपोषण हो रहा है. उन्हें सबसे प्यारी वहीं मस्जिदें हैं, जो आपके मंदिरों को तोड़ कर बनी हैं. उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी उसी आवाज से है जो मंदिरों और पूजा-पंडालों से है. यह माँगें गाय को काटने तक नहीं रुकेंगी...यह समस्या मंदिरों तक नहीं रहने वाली, यह आपके घर तक आने वाली है...आपकी बहू-बेटियों तक जाने वाली है...
आज का तर्क है, तुम्हें गाय इतनी प्यारी है तो सड़कों पर क्यों घूम रही है, हम तो काट कर खाएँगे. कल कहेंगे, तुम्हारी बेटी की इतनी इज्जत है तो वह घर से क्यों निकलती है, हम तो उठा कर ले जाएँगे.
उन्हें समस्या गाय से नहीं है, तुम्हारे अस्तित्व से है. तुम जब तक हो, उन्हें कुछ ना कुछ प्रॉब्लम रहेगी. इसलिए अर्जुन, और डाउट मत पालो...कृष्ण घंटे भर की क्लास बार-बार नहीं लगाते...
- फिर कृष्ण ऐसा प्रोपोजल लेकर गए ही क्यों थे?
- वे तो सिर्फ यह सिद्ध करने गए थे कि दुर्योधन कितना अनरीजनेबल, कितना अन्यायी था. वे पाँडवों को सिर्फ यह दिखाने गए थे, कि देख लो बेटा...युद्ध तो तुमको लड़ना ही होगा...हर हाल में. अब भी कोई शंका है तो निकाल दो मन से. तुम कितना भी संतोषी हो जाओ, कितना भी चाहो कि घर में चैन से बैठूँ, दुर्योधन तुमसे हर हाल में लड़ेगा ही. लड़ना या ना लड़ना तुम्हारा ऑप्शन नहीं है...
फिर भी बेचारे अर्जुन को आखिर तक शंका रही...कृष्ण ने सत्रह अध्याय तक फंडा दिया...फिर भी शंका थी.. ज्यादा अक्ल वालों को ही ज्यादा शंका होती है...दुर्योधन को कभी शंका नही थी, उसे हमेशा पता था कि उसे युद्ध करना ही है...उसने गणित लगा रखा था.
हिन्दुओं को भी समझ लेना है...कन्फ्लिक्ट होगा या नहीं, यह आपका ऑप्शन नहीं है...आपने तो पाँच गाँव का प्रोपोजल भी देकर देख लिया...देश के टुकड़े मंजूर कर लिए, हर बात पर विशेषाधिकार देकर देख लिया. हज के लिए सबसीडी देकर देख ली, उनके लिए अलग नियम कानून बनवा कर देख लिए..आप चाहे जो कर लीजिए, उनकी माँगें नहीं रुकने वाली. उन्हें सबसे स्वादिष्ट उसी गौमाता का माँस लगेगा जो आपके लिए पवित्र है, उसके बिना उन्हें भयानक कुपोषण हो रहा है. उन्हें सबसे प्यारी वहीं मस्जिदें हैं, जो आपके मंदिरों को तोड़ कर बनी हैं. उन्हें सबसे ज्यादा परेशानी उसी आवाज से है जो मंदिरों और पूजा-पंडालों से है. यह माँगें गाय को काटने तक नहीं रुकेंगी...यह समस्या मंदिरों तक नहीं रहने वाली, यह आपके घर तक आने वाली है...आपकी बहू-बेटियों तक जाने वाली है...
आज का तर्क है, तुम्हें गाय इतनी प्यारी है तो सड़कों पर क्यों घूम रही है, हम तो काट कर खाएँगे. कल कहेंगे, तुम्हारी बेटी की इतनी इज्जत है तो वह घर से क्यों निकलती है, हम तो उठा कर ले जाएँगे.
उन्हें समस्या गाय से नहीं है, तुम्हारे अस्तित्व से है. तुम जब तक हो, उन्हें कुछ ना कुछ प्रॉब्लम रहेगी. इसलिए अर्जुन, और डाउट मत पालो...कृष्ण घंटे भर की क्लास बार-बार नहीं लगाते...
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