Monday, 12 October 2015

नोआखाली का जब भी ज़िक्र होगा, वहाँ हुए नरसंहार की यादों से कोई आँख चुरा नहीं सकता। १० अक्टूबर १९४६, लक्ष्मी पूजा का पावन दिन, लेकिन नोआखाली के बदनसीब हिन्दू बंगालियों पर वो दिन कहर ही बन कर टूट पड़ा था। इलाका मुसलामानों का था। मुस्लिम लीग का पूरा वर्चस्व था । ६ सितम्बर को ग़ुलाम सरवर हुसैनी ने, मुस्लिम लीग ज्वाइन किया था और ७ सितम्बर को ही उसने शाहपुर बाज़ार में, मुसलामानों को हिन्दुओं का क़त्लेआम करने का आह्वान किया। उसका यह अनुदेश था कि हर मुसलमान हथियार उठाएगा और हिन्दुओं को किसी भी हाल में नहीं बक्शेगा। १२ अक्टूबर का दिन मुक़र्रर किया गया था, इस वहशत को अंजाम देने के लिए । अफ़सोस यह है कि इस योजना की पूरी ख़बर प्रशासन को भी थी। १० अक्टूबर को ही जिला मजिस्ट्रेट एन. जी. रे, जिन्हें १२ अक्टूबर को जाना था, उन्होंने दो दिन पहले ही जिला छोड़ दिया था और अपनी जान बचा ली थी।
योजना के मुताबिक़, हमला सुनियोजित तरीके से किया गया और १२ अक्टूबर को ही जिले के कई प्रसिद्ध और धनिक हिन्दुओं का क़त्ल हो गया। उसके बाद तो यह क़त्लो-ग़ारत का काम पूरे हफ़्ते चलता रहा। मुसलमानों ने अपने आक़ाओं के इशारे पर वहशत का वो नाच नाचा कि हैवानियत भी पानी-पानी हो गयी होगी। हिन्दुओं का नरसंहार, बलात्कार, अपहरण, हिन्दुओं की संपत्ति की लूट-पाट, आगज़नी, धर्म परिवर्तन, सबकुछ किया उन नरपिशाचों ने । तात्पर्य यह कि शायद ही ऐसा कोई जघन्य कर्म रहा हो, जो मुसलामानों ने उस दिन, हिन्दुओं के साथ नहीं किया। औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार, पत्नियों के सामने ही उनके पतियों की हत्या, पतियों की लाशों के सामने ही, औरतों का उसी वक्त धर्म परिवर्तन किया गया, और मरे हुए पति के लाश के सामने ही, उन्हीं आतताईयों में से किसे एक से बल पूर्वक निक़ाह भी कर दिया गया, जिन्होंने उनके ही पतियों का क़त्ल किया था। वहशत की कोई इन्तेहाँ नहीं थी ।
कहते हैं नोआखाली जिले के अतर्गत आने वाले रामगंज, बेगमगंज, रायपुर, लक्ष्मीपुर, छागलनैया और सन्द्विप इलाके, जो दो हज़ार से अधिक वर्ग मील में बसे हुए हैं। दंगे के बाद वो पूरा इलाका लाशों से पटा हुआ था। एक सप्ताह तक बे रोक-टोक हुए इस नरसंहार में 5000 से ज्यादा हिन्दू मारे गए थे। सैकड़ों महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया और हजारों हिंदू पुरुषों और महिलाओं के जबरन इस्लाम क़बूल करवाया गया था । लगभग 50,000 से 75,000 हिन्दुओं को कोमिला, चांदपुर, अगरतला और अन्य स्थानों के अस्थायी राहत शिविरों में आश्रय दिया गया। रिपोर्ट्स बताती है कि इसके अलावा, मुस्लिम गुंडों की सख्त निगरानी में लगभग 50,000 हिन्दू इन प्रभावित क्षेत्रों में असहाय बने पड़े रहे थे। कुछ क्षेत्रों से गाँव से बाहर जाने के लिए, हिंदुओं को मुस्लिम नेताओं से परमिट प्राप्त करना पड़ा। जबरन धर्म परिवर्तित हुए हिंदुओं को लिखित घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर करना पड़ा, कि उन्होंने स्वयं अपनी मर्ज़ी से इस्लाम क़बूला है। बहुतों को अपने घर में रहने की आज्ञा नहीं थी, वो तब ही अपने घर में जा सकते थे जब कोई सरकारी मुलाज़िम निरीक्षण के लिए आता था। हिन्दुओं को मुस्लिम लीग को जज़िया टैक्स भी देने के लिए मज़बूर किया गया।
19 अक्तूबर 1946 को ब्रिटिश-भारतीय सेना को नोआखाली भेजा गया। सेना को सही जगह पहुँचने में भी और दो हफ्ते लग गए। अगले एक महीने तक सेना ने बचे हुए लोगों के संरक्षण का काम किया।
16 अक्टूबर 1946 McInerney ने , नोआखाली के नए जिला मजिस्ट्रेट का कार्यभार सम्हाला ।
ग़ुलाम सरवर हुसैनी ने, कलकत्ता में एक संवाददाता सम्मेलन के सामने,लूट-पाट और जबरन धर्म परिवर्तन की बात को तो कबूला था लेकिन उस नराधम ने सामूहिक हत्याओं, गिरोह बलात्कार और जबरन निक़ाह की बात से साफ़ इनकार कर दिया।
22 अक्टूबर 1946 ग़ुलाम सरवर हुसैनी को गिरफ्तार कर लिया गया था।
हारान चंद्र घोष चौधरी, बंगाल विधान सभा के लिए, नोआखाली जिले से इकलौते हिन्दू प्रतिनिधि थे। उनका कहना था, यह दंगा मुसलामानों द्वारा एक प्रायोजित और आयोजित हमला था। माननीय श्यामा प्रसाद मुखर्जी, जो कलकत्ता विश्वविद्यालय के पूर्व वाइस चांसलर और बंगाल के पूर्व वित्त मंत्री थे, ने इस तर्क को सीरे से ख़ारिज कर दिया कि नोआखाली में घटी यह जघन्य घटना एक साधारण सांप्रदायिक घटना थी । उनका कहना है कि यह बहुत सोची समझी, पूर्वनियोजित योजना थी। यह एक षड्यंत्र था, जो मुस्लिम बहुल इलाके के बहुसंख्यकों ने, अल्पसंख्यक हिन्दुओं का नृशंस तरीक़े से क़त्लेआम, बलात्कार, लूट-मार, धर्म-परिवर्तन इत्यादि करने के लिए रचा था। दुखद यह है कि इस बात की पूरी ख़बर प्रशासन को थी और प्रशासन अपने कर्तव्य से चूक गया।
7 नवंबर 1946 गांधी जी ने, शांति और सांप्रदायिक सद्भाव बहाल करने के लिए, नोआखाली का न सिर्फ दौरा किया, बल्कि वो पूरे चार महीने तक वहीँ डेरा जमाये रहे। लेकिन पीड़ितों का विश्वास वो नहीं जीत पाए। विश्वास बहाल करने की उनकी हर कोशिश नाक़ामयाब रही। फलतः विस्थापित हिन्दुओं का पुनर्वास भी नहीं हो पाया। शांति मिशन की इस विफलता के बाद 2 मार्चको गांधी जी ने नोआखाली छोड़ दिया। बचे हुए अधिकतर हिन्दू, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा और आसाम के हिन्दू बहुल इलाकों में चले गए। उसके बाद आप सभी को ज्ञात हो, नोआखली जिले के खिलपारा नामक स्थान में 23 मार्च 1946 को मुसलामानों ने 'पाकिस्तान दिवस' मनाया था।
यह घटना १० अक्टूबर १९४६ की थी। इसके तुरंत बाद ही कांग्रेस के नेतृत्व में भारत ने, देश का विभाजन स्वीकार कर लिया। इस फैसले के बाद शांति मिशन को बर्खास्त कर दिया गया और राहत शिविरों को भी बंद कर दिया गया। और फिर 15 अगस्त 1947 भारत आज़ाद देश हो गया।

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