Saturday, 3 February 2018

शिक्षा बनाती है मनुष्य जीवन को अर्थपूर्ण:
 मनुष्य सोचता है कि पढ़-लिखकर क्या करूंगा... कितना बड़ा बनूंगा, परंतु विद्या मात्र पेट भरने का साधन नहीं है, सिर्फ आजीविका सिखाने वाली चीज नहीं है।शिक्षा मनुष्य के जीवन में लक्ष्य देती है... शिक्षा मनुष्य के जीवन को अर्थपूर्ण बनाती है... शिक्षा मनुष्य के जीवन में ज्ञान विज्ञान का विकास करती है।
 मनुष्यों के विद्यालय महाविद्यालय सर्वत्र है, पशुओं के नहीं है क्योंकि पशुओं को सीखने की आवश्यकता नहीं होती।  परंतु मनुष्य  विचार करता है... उसके मन में प्रश्न होते है, जिसके वह उत्तर खोजना चाहता है। मनुष्य को जीवन जीने का उद्देश्य चाहिए। इसलिए मनुष्य के जीवन में शिक्षा महत्वपूर्ण है।
अपने आपको जानना जरूरी है
 बाहर की शिक्षा भी जरूरी है क्योंकि इसके बिना काम नहीं चलता है परंतु मनुष्य तब वास्तविक रूप से मनुष्य बनता है जब वह अपने आप को जानता हो। उन्होंने कहा कि मनुष्य जितना दुनिया से परिचित होता है उतना उसे स्वयं से भी परिचित होना जरूरी है। उपनिषदो में कहा कि दोनों क्रियाएं साथ-साथ चलनी चाहिए। अपना जीवन कैसे समृद्ध करना है और प्रकृति को कैसे ठीक रखना है, यह जानना जरूरी है।  यदि दुनिया में शाश्वत जीवन प्राप्त करना है तो विद्या का अवलंबन करना होगा।  एक तरफ जाने वाला अंधकार में फंसता है और केवल अंदर जाने वाला तो घारे अंधकार में फंस जाता है। इसलिए दोनों को जानकर एवं उपयोग कर अपने जीवन को सार्थक बनाना होगा।
कमाई बांटने वाला चाहिए
 लोक कल्याण विश्व कल्याण  के लिए आज कमाई बांटने वालों की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आजकल पालक बच्चों को इंजीनियर, डॉक्टर बनने की प्रेरणा देता है जिससे पैसा मिलेगा। परंतु पैसे वालों की लिस्ट बहुत लंबी है  कौन याद रखता है? परंतु  आजादी की लड़ाई लडऩे के लिए महाराणा प्रताप को अपनी सारी दौलत देने वाले भामाशाह को सभी याद रखते है। दुनिया में राजा महाराजा बहुत हुए परंतु उन्हें कौन याद रखता है? परंतु पितृवचन के कारण राजपाट छोड़कर 14 वर्षो का वनवास भुगतने वाले रामचंद्र को 8 हजार साल बाद भी याद रखा जाता है। हम मनुष्य है और सृष्टि से हमारा रिश्ता है। हमें कमाकर वापिस करना चाहिए। भरपूर कमाई करें लेकिन अपनी कमाई को न्यूनतम आवश्यकतानुसार अपने पास रखकर बाकी कमाई लोक कल्याण विश्व कल्याण के लिए दें। ऐसे मनुष्यों को खड़ा करना हमारी परंपरा का आदर्श है।
डॉ. मोहन भागवत

No comments:

Post a Comment