Thursday, 12 April 2018


क्या गाँधी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में ब्राह्मणों का नरसंहार नेहरू की सुनियोजित चाल थी?
रामेश्वर मिश्र पंकज। एक विचित्र स्थिति पैदा हो गई है, हम सभी जानते हैं कि ऋषियों और ब्राह्मणों के कुल में ही राक्षस भी हुए हैं परंतु आधुनिक शिक्षा के असर से इस तथ्य को वर्तमान से जोड़ना पूरी तरह भूल गया है जबकि यह सनातन सत्य है और निरंतर ऐसी प्रक्रिया चलती रहती हैं, ऐसी चीजें घटित होती रहती है।15 अगस्त 1947 को यही हुआ। ब्राम्हण कुल में उत्पन्न श्री जवाहरलाल नेहरू ने बीसवीं शताब्दी के सर्वाधिक राक्षसी, क्रूर और पैशाचिक तंत्र सोवियत कम्युनिस्ट तंत्र से साठगांठ कर बहुत ही चतुराई से अंग्रेजों से नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बदले में सत्ता मांग ली और उनकी अनेक शर्तें मान ली तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के द्वारा किसी भी समय मार भगाये जाने से भयभीत अंग्रेजों ने मार भगाये जाने की तुलना में स्वयं एक दानदाता बनने की चतुराई दिखाते हुए सत्ता का हस्तांतरण श्री नेहरू की अध्यक्षता वाली कांग्रेस को कर दिया।

श्री नेहरु ने सोवियत नेताओं की सलाह से जैसा वहां हुआ था, मुख्य समाज को कमजोर कर अपनी पार्टी के एक गिरोह को भयंकर ताकतवर बनाना, उस नीति की नक़ल करना चाहा और यह योजना बनाकर काम शुरू किया कि हिंदू धर्म को धीरे-धीरे समाप्त करना है! हिंदू धर्म की बुद्धि और अध्यात्म को योजना पूर्वक उपहास का पात्र बनाकर क्रमशः कमजोर करते जाना है। इसके लिए उन्होंने इतिहास का अध्ययन किया और मौलाना आज़ाद आदि से सलाह ली तथा तय किया कि ब्राह्मणों को शक्तिहीन बनाना है।इसमें काल प्रवाह ने उनका साथ दिया और जन्म ब्राह्मण कुल में होने से ब्राह्मणों के उन्मूलन में वे उसी प्रकार सफल हुए, जैसे मक्का में सनातन धर्म के केंद्र काबा के एक पुजारी परिवार का एक बेटा वहां शिव मंदिर को नष्ट करने में सफल हुआ महत्वपूर्ण बात यह है कि डॉ राजेन्द्रप्रसाद नेहरु की नीति जान रहे थे इसीलिए समानांतर धारा को मज़बूत करने के लिए उन्होंने ब्राह्मणों के पाँव राष्ट्रपति भवन में धोये जिसका नेहरु ने प्रचंड विरोध किया परन्तु जाति को धर्म और सत्य से अधिक महत्त्व देने वाले कतिपय कांग्रेसी ब्राह्मणों ने नेहरु का साथ दिया और डॉ राजेन्द्रप्रसाद अकेले पड गए।

नेहरु ब्राह्मणों को कमजोर करने, अप्रतिष्ठित करने और वेद शास्त्र आदि को महत्वहीन बनाने तथा शिक्षा को मौलना आज़ाद की सलाह से चलाने के मार्ग पर चलते रहे और साथ ही ब्राह्मणों को जहां संभव हो प्रत्यक्ष आघात से नष्ट करना भी तय किया। परिणाम यह हुआ कि महात्मा गांधी की रक्षा का दायित्व उन्होंने नहीं निभाया और खुफिया सूचना होने पर भी उनका वध होने दिया तथा इस अवसर का लाभ उठाकर महाराष्ट्र के ब्रह्मणों का दमन और संहार सुनियोजित रूप से शुरू कर दिया।

प्रत्येक गांव से ब्राम्हण भाग-भाग कर यहां-वहां छिप गए। अधिकांश लोग महाराष्ट्र से बाहर चले गए अथवा किसी अन्य दूर के गांव में छुप गए और बहुत समय तक उन्होंने अपना परंपरागत कार्य छोड़ दिया। कई अन्य व्यवसायों में चले गए और 6 महीने के भीतर कांग्रेस ने महाराष्ट्र में कई हजार ब्राम्हण घायल कर दिया तथा कईयों को विस्थापित होने को विवश कर दिया और कुछ को मार ही डाला परंतु उस समय पंडित मौलिचंद्र शर्मा और पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र जैसे वरिष्ठ कांग्रेसियों के नेतृत्व में योजना पूर्वक इस भयंकर अन्याय को समाप्त करने का प्रयास चला और कोई भी विधिक आधार प्रस्तुत न कर पाने के कारण अंत में कांग्रेस शासन न्यायालय में अपने को विफल प्रमाणित रूप से मान कर बेइज्जती से भयभीत हो कर उस प्रतिबंध आदेश को तथा मारकाट की उस योजना को वापस लेने को विवश हुआ ।

इसी प्रकार जवाहरलाल नेहरु ने अपने ही कश्मीरी बंधु-बांधवों कश्मीरी पंडितों को क्रमश: कश्मीर से भगाने की पाप पूर्ण योजना से वहां पहले तो शेख अब्दुल्ला को बढ़ाया ,धारा 370 जैसे गलत काम किये और कश्मीर का प्रश्न संयुक्त राष्ट्र महासभा में जाने दिया। उनका मनोरथ सफल हुआ, साकार हुआ और कुछ वर्षों बाद कश्मीरी पंडित कश्मीर से भगा दिए गए और जम्मू, दिल्ली तथा अन्यत्र रहने को विवश हो गए।

सीधे युद्ध से अथवा सैन्य बल से यह पाप संभव नहीं था इसलिए इसमें बहुत सारे छलपूर्ण कौशल का सहारा लिया गया और बात आगे बढ़ने पर यह नीति मुख्य योजनाकारों के भी हाथ से निकल गई।

साभार: रामेश्वर मिश्र पंकज के फेसबुक वॉल से

यह लेखक के निजी विचार हैं। IndiaSpeaksDaily इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति उत्तरदायी नहीं है।

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