Saturday, 14 April 2018


डॉ अम्बेडकर को इस्लाम स्वीकार करने के अनेक प्रलोभन दिए गए... स्वयं उस काल में विश्व का सबसे धनी व्यक्ति हैदराबाद का निज़ाम इस्लाम स्वीकार करने के लिए बड़ी धनराशि का प्रलोभन देने आया...
मगर जातिवाद का कटु विष पीने का अनुभव कर चुके डॉ अम्बेडकर ने, न ईसाई मत को स्वीकार किया और न इस्लाम मत को स्वीकार किया, क्योंकि वह जानते थे कि इस्लाम मत स्वीकार करने से दलितों का किसी भी प्रकार से हित नहीं हो सकता... अंततः बाबासाहब ने बौद्ध पंथ स्वीकार किया. अपनी पुस्तक भारत और पाकिस्तान के विभाजन में उन्होंने इस्लाम मत पर अपने विचार खुल कर प्रकट किये है ,इसीलिए उन्होंने 1947 में पाकिस्तान और बांग्लादेश में रहने वाले सभी हिन्दू दलितों को भारत आने का निमंत्रण दिया था....
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दुर्भाग्य से आज बाबासाहब की शिक्षाओं को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है... अम्बेडकर जयन्ती पर उन्हें श्रद्धांजलि, एवं सभी असली-नकली "दलित चिंतकों" के लिए सदबुद्धि की प्रार्थना...

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