ईसा मसीह की "पूजा" में, फल-फूल-नारियल-पान-सुपारी-दीपस्तंभ... यानी वह सब कुछ, जो हिन्दू देवी-देवताओं के पूजन में उपयोग किया जाता है... केवल दीवार का चित्र और टेबल पर रखा ग्रन्थ बदल गया है, बाकी सब कुछ वही है जो हजारों वर्ष से भारत के घर-घर में परंपरा है. . इस चित्र के दो अर्थ निकलते हैं... पहला है "धूर्तता" और दूसरा है "वैचारिक दरिद्रता"... -- धूर्तता इसलिए कि अनपढ़, आदिवासी-ग्रामीणों को इस "माहौल" से भरमाया जाता है, और उन्हें कन्वर्ट कर लिया जाता है...
. और वैचारिक दरिद्रता इसलिए, कि चर्च के पास "खुद का" ऐसा कुछ भी ठोस, आकर्षक व आध्यात्मिक नहीं है कि वह "अपनी संस्कृति, अपनी परंपरा" के बल पर किसी को लुभा सके... उन्हें सनातन धर्म से "उधार" लेकर ही काम चलाना पड़ता है.
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