बाईबल की गपोड़ बातें , भाग-१
क्या आप जानते हैं ? महिला को प्रसव पीड़ा क्यों होता है ?
जानिये #बाईबल क्या कहता है .....
प्रमेश्वर यहोवा ने पेहला मनुष्य आदम मट्टी से बनाया और जब उसका साथी उसके जैसा नही बना पाया तो आदम को नशे में डाल कर उसकी पसली-मांस से स्त्री बनाया , जिसे
आदम ने हव्वा नाम दिया .... आदम को अदन देश के बाटिका (Heaven) की रखवाली में नियुक्त किया गया था ... वहाँ साँप ने हव्वा को बेहला लिया बाटिका के बीचों- बीच जिस पेड़ (भले या बुरे के ज्ञान का वृक्ष) के फल को खाने से प्रमेश्वर ने माना किया था वह फल तोड़ हव्वा ने खाया और आदम खिला दिया.. जिससे उनकी आँखें खुल गई तो वे एक दुसरें को नंगा देखे लज्जित हूऐ और पत्तों से लंगोट बनयें.... यहोवा के अवाज सुन लज्जा से पेड़ के पीछे छीप गये .... तब परमेश्वर यहोवा ने सर्प से कहा कि जो तू ने यह किया है इस कारण तू सारे ढोर और हर एक वन के पशु से अधिक स्रापित होगा। तू अपने पेट के बल चलेगा और अपने जीवन भर धूल खाया करेगा॥और मैं तुझ में और स्त्री में और तेरे वंश और उसके वंश में वैर डालूंगा॥वह तेरे सिर को कुचलेगा और तू उसकी एड़ी को काटेगा॥और उसने स्त्री को कहा कि मैं तेरी पीड़ा और गर्भ-धारण को बहुत बढ़ाऊंगा। तू पीड़ा से बालक जनेगी और तेरी इच्छा तेरे पति पर होगी और वह तुझ पर प्रभुता करेगा॥और उसने आदम से कहा कि तूने जो अपनी पत्नी का शब्द माना है और जिस पेड़ का फल मैंने तुझे खाने से वर्जा था तूने खाया है। इस कारण भूमि तेरे लिये स्रापित है। अपने जीवन भर तू उस्से पीड़ा के साथ खायेगा॥और वह कांटे और ऊंटकटारे तेरे लिये उगायेगी और तू खेत का सागपात खायेगा ...
(बाईबल , उत्पत्ति -२, १७, २१ और उत्पत्ति -३, १-१६ )
महार्षि दयानन्द सरस्वती जी अपने अमर ग्रन्थ "सत्यार्थ प्रकाश" के त्रयोदश समुल्लास में बाईबल की उक्त आयतों के समिक्षा में लिखतें हैं-
"जो ईसाइयों का ईश्वर सर्वज्ञ होता तो इस धूर्त सर्प अर्थात् शैतान को क्यों बनाता? और जो बनाया तो वही ईश्वर अपराध का भागी है क्योंकि जो वह उसको दुष्ट न बनाता तो वह दुष्टता क्यों करता? और वह पूर्व जन्म नहीं मानता तो विना अपराध उसको पापी क्यों बनाया? और सच पूछो तो वह सर्प नहीं था किन्तु मनुष्य था। क्योंकि जो मनुष्य न होता तो मनुष्य की भाषा क्योंकर बोल सकता? और जो आप झूठा और दूसरे को झूठ में चलावे उसको शैतान कहना चाहिये सो यहां शैतान सत्यवादी और इससे उसने उस स्त्री को नहीं बहकाया किन्तु सच कहा और ईश्वर ने आदम और हव्वा से झूठ कहा कि इसके खाने से तुम मर जाओगे। जब वह पेड़ ज्ञानदाता और अमर करने वाला था तो उसके फल खाने से क्यों वर्जा? और जो वर्जा तो वह ईश्वर झूठा और बहकाने वाला ठहरा। क्योंकि उस वृक्ष के फल मनुष्यों को ज्ञान और सुखकारक थे; अज्ञान और मृत्युकारक नहीं। जब ईश्वर ने फल खाने से वर्जा तो उस वृक्ष की उत्पत्ति किसलिये की थी? जो अपने लिए की तो क्या आप अज्ञानी और मृत्युधर्मवाला था? और दूसरों के लिये बनाया तो फल खाने में अपराध कुछ भी न हुआ। और आजकल कोई भी वृक्ष ज्ञानकारक और मृत्युनिवारक देखने में नहीं आता। क्या ईश्वर ने उसका बीज भी नष्ट कर दिया? ऐसी बातों से मनुष्य छली कपटी होता है तो ईश्वर वैसा क्यों नहीं हुआ? क्योंकि जो कोई दूसरे से छल कपट करेगा वह छली कपटी क्यों न होगा? और जो इन तीनों को शाप दिया वह विना अपराध से है। पुनः वह ईश्वर अन्यायकारी भी हुआ और यह शाप ईश्वर को होना चाहिये क्योंकि वह झूठ बोला और उनको बहकाया। यह ‘फिलासफ़ी’ देखो! क्या विना पीड़ा के गर्भधारण और बालक का जन्म हो सकता था? और विना श्रम के कोई अपनी जीविका कर सकता है? क्या प्रथम कांटे आदि के वृक्ष न थे? और जब शाक पात खाना सब मनुष्यों को ईश्वर के कहने से उचित हुआ तो जो उत्तर में मांस खाना बाइबल में लिखा वह झूठा क्यों नहीं? और जो वह सच्चा हो तो यह झूठा है। जब आदम का कुछ भी अपराध सिद्ध नहीं होता तो ईसाई लोग सब मनुष्यों को आदम के अपराध से सन्तान होने पर अपराधी क्यों कहते हैं? भला ऐसा पुस्तक और ऐसा ईश्वर कभी बुद्धिमानों के मानने योग्य हो सकता है?"
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क्या आप जानते हैं ? महिला को प्रसव पीड़ा क्यों होता है ?
जानिये #बाईबल क्या कहता है .....
प्रमेश्वर यहोवा ने पेहला मनुष्य आदम मट्टी से बनाया और जब उसका साथी उसके जैसा नही बना पाया तो आदम को नशे में डाल कर उसकी पसली-मांस से स्त्री बनाया , जिसे
आदम ने हव्वा नाम दिया .... आदम को अदन देश के बाटिका (Heaven) की रखवाली में नियुक्त किया गया था ... वहाँ साँप ने हव्वा को बेहला लिया बाटिका के बीचों- बीच जिस पेड़ (भले या बुरे के ज्ञान का वृक्ष) के फल को खाने से प्रमेश्वर ने माना किया था वह फल तोड़ हव्वा ने खाया और आदम खिला दिया.. जिससे उनकी आँखें खुल गई तो वे एक दुसरें को नंगा देखे लज्जित हूऐ और पत्तों से लंगोट बनयें.... यहोवा के अवाज सुन लज्जा से पेड़ के पीछे छीप गये .... तब परमेश्वर यहोवा ने सर्प से कहा कि जो तू ने यह किया है इस कारण तू सारे ढोर और हर एक वन के पशु से अधिक स्रापित होगा। तू अपने पेट के बल चलेगा और अपने जीवन भर धूल खाया करेगा॥और मैं तुझ में और स्त्री में और तेरे वंश और उसके वंश में वैर डालूंगा॥वह तेरे सिर को कुचलेगा और तू उसकी एड़ी को काटेगा॥और उसने स्त्री को कहा कि मैं तेरी पीड़ा और गर्भ-धारण को बहुत बढ़ाऊंगा। तू पीड़ा से बालक जनेगी और तेरी इच्छा तेरे पति पर होगी और वह तुझ पर प्रभुता करेगा॥और उसने आदम से कहा कि तूने जो अपनी पत्नी का शब्द माना है और जिस पेड़ का फल मैंने तुझे खाने से वर्जा था तूने खाया है। इस कारण भूमि तेरे लिये स्रापित है। अपने जीवन भर तू उस्से पीड़ा के साथ खायेगा॥और वह कांटे और ऊंटकटारे तेरे लिये उगायेगी और तू खेत का सागपात खायेगा ...
(बाईबल , उत्पत्ति -२, १७, २१ और उत्पत्ति -३, १-१६ )
महार्षि दयानन्द सरस्वती जी अपने अमर ग्रन्थ "सत्यार्थ प्रकाश" के त्रयोदश समुल्लास में बाईबल की उक्त आयतों के समिक्षा में लिखतें हैं-
"जो ईसाइयों का ईश्वर सर्वज्ञ होता तो इस धूर्त सर्प अर्थात् शैतान को क्यों बनाता? और जो बनाया तो वही ईश्वर अपराध का भागी है क्योंकि जो वह उसको दुष्ट न बनाता तो वह दुष्टता क्यों करता? और वह पूर्व जन्म नहीं मानता तो विना अपराध उसको पापी क्यों बनाया? और सच पूछो तो वह सर्प नहीं था किन्तु मनुष्य था। क्योंकि जो मनुष्य न होता तो मनुष्य की भाषा क्योंकर बोल सकता? और जो आप झूठा और दूसरे को झूठ में चलावे उसको शैतान कहना चाहिये सो यहां शैतान सत्यवादी और इससे उसने उस स्त्री को नहीं बहकाया किन्तु सच कहा और ईश्वर ने आदम और हव्वा से झूठ कहा कि इसके खाने से तुम मर जाओगे। जब वह पेड़ ज्ञानदाता और अमर करने वाला था तो उसके फल खाने से क्यों वर्जा? और जो वर्जा तो वह ईश्वर झूठा और बहकाने वाला ठहरा। क्योंकि उस वृक्ष के फल मनुष्यों को ज्ञान और सुखकारक थे; अज्ञान और मृत्युकारक नहीं। जब ईश्वर ने फल खाने से वर्जा तो उस वृक्ष की उत्पत्ति किसलिये की थी? जो अपने लिए की तो क्या आप अज्ञानी और मृत्युधर्मवाला था? और दूसरों के लिये बनाया तो फल खाने में अपराध कुछ भी न हुआ। और आजकल कोई भी वृक्ष ज्ञानकारक और मृत्युनिवारक देखने में नहीं आता। क्या ईश्वर ने उसका बीज भी नष्ट कर दिया? ऐसी बातों से मनुष्य छली कपटी होता है तो ईश्वर वैसा क्यों नहीं हुआ? क्योंकि जो कोई दूसरे से छल कपट करेगा वह छली कपटी क्यों न होगा? और जो इन तीनों को शाप दिया वह विना अपराध से है। पुनः वह ईश्वर अन्यायकारी भी हुआ और यह शाप ईश्वर को होना चाहिये क्योंकि वह झूठ बोला और उनको बहकाया। यह ‘फिलासफ़ी’ देखो! क्या विना पीड़ा के गर्भधारण और बालक का जन्म हो सकता था? और विना श्रम के कोई अपनी जीविका कर सकता है? क्या प्रथम कांटे आदि के वृक्ष न थे? और जब शाक पात खाना सब मनुष्यों को ईश्वर के कहने से उचित हुआ तो जो उत्तर में मांस खाना बाइबल में लिखा वह झूठा क्यों नहीं? और जो वह सच्चा हो तो यह झूठा है। जब आदम का कुछ भी अपराध सिद्ध नहीं होता तो ईसाई लोग सब मनुष्यों को आदम के अपराध से सन्तान होने पर अपराधी क्यों कहते हैं? भला ऐसा पुस्तक और ऐसा ईश्वर कभी बुद्धिमानों के मानने योग्य हो सकता है?"
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