Sunday, 24 January 2016

वो सात मिथक जो झुठलाते हैं नेताजी की मौत के दावे

1945 के बाद भी सामने आए थे नेताजी के बयान

सबसे बड़ा सवाल ये ही है कि क्या 26 दिसंबर 1945 के बाद नेताजी जीवित थे। अगर पीएमओ के दस्तावेज (File no 870/11/P/16/92 POL (PMO), exhibit no. 245 before JMCI) पर यकीन करें तो 1 जनवरी 1946 को अपने भाषण में नेताजी ने अपने देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा था कि "उन्हें यकीन है कि दो साल में देश आजाद हो जाएगा"। नेताजी के अनुसार "अहिंसा से कभी हमें आजादी नहीं मिल सकती लेकिन मैं महात्मा गांधी के प्रति काफी सम्मान रखता हूं।" इसके बाद अगले माह फरवरी में भी उनका एक संदेश प्रसारित हुआ, "मैं सुभाष चन्द्र बोल रहा हूं, जय हिंद। यह तीसरी बार है जब जापान के आत्मसमर्पण के बाद मैं अपने भाइयों और बहनों को संबोधित कर रहा हूं।
रूस में थी नेताजी की उपस्थिति

ब्रिटिश खुफिया ब्यूरो द्वारा 8 मार्च 1946 को जारी की गई रिपोर्ट (File no 273/INA in the National Archives) में इस तथ्य का जिक्र किया गया था कि घिलजई मलंग के अनुसार बोस 1946 के दिसंबर में मास्को में थे। इसके अलावा अफगान प्रोविंस ऑफ खोस्त के गर्वनर ने काबुल में रूस के राजदूत को जानकारी दी थी कि मास्को में जो बहुत सारे कांग्रेस रिफ्यूजी हैं उनमें से एक सुभाष चन्द्र बोस भी हैं। इसके अलावा हाल ही में बोस पर शोध करने वली एक संस्‍था द्वारा जारी किए गए पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्‍त्री के फोटो में कथित रूप से बोस भी खड़े दिखाई दे रहे हैं। इसके अलावा भी समय समय पर कई बार बोस के मास्को में होने के दावे किए जाते रहे हैं।

1945 के बाद भारत में थे नेताजी

पूर्व विधायक प्रोफेसर अतुल सेन द्वारा जवाहरलाल नेहरू को 28 अगस्त 1962 को लिखे पत्र में उन्होंने लिखा था, मैं इन चंद पंक्तियों की पूरी जिम्मेदारी लेते हुए कहता हूं कि नेताजी की मौत नहीं हुई है। यह मेरा विश्वास नहीं बल्कि पुख्ता जानकारी है कि सुभाष चन्द्र देश में ही कहीं अध्यात्मिक गतिविधियों में लिप्त हैं। मुझे लगता है उन्हें अभी मित्र देशों के दुश्मन नंबर एक के रूप में जाना जाता है। इसलिए नेताजी के प्रोटोकोल को पूरी तरह गुप्त रखा जा रहा है। हालांकि इसके जवाब में नेहरू द्वारा उन्हें लिखे पत्र में इस संबंध में किसी जानकारी से इंकार किया गया है।
सीआईए के डाक्यूमेंट में भी जिंदा थे नेताजी

20 फरवरी 1946 को सुभाष (या सुभाष) चंद्र बोस की संभावित वापसी के विषय में एक कहानी से संबंधित 1345 घंटों का साक्षात्कार किया गया था। जिसमें बताया गया था कि 1938-39 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक अध्यक्ष जिनकी कथित मृत्यु युद्ध में एक विमान दुर्घटना में हो गई थी, के बारे में संभावना है कि नेहरू सरकार के सामने एक विद्रोही समूह के रूप में मौजूद हैं। सीआईए के दस्तावेजों के अनुसार तत्काली नेहरू सरकार और उनके बाद की कई सरकारों ने नेताजी के परिजनों की जासूसी भी करवाई थी। उन्हें शक था कि नेताजी कभी भी इनसे संपर्क कर सकते हैं।
मुखर्जी कमीशन ने किया था बोस की मौत से इंकार

इससे पूर्व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा बोस के संबंध में जारी की गई फाइलों में भी बोस के विमान हादसे के बाद जीवित होने की बात कही गइ है। फाइल नंबर 167y/22, सीरियल नंबर -3 और तारीख 29 अप्रैल, 1949 के अनुसार नेताजी की मौत विमान हादसे में नहीं हुई थी। यह रिपोर्ट नेताजी की कथित मौत के दो साल बाद खुफिया विभाग द्वारा भेजी गई थी जिस पर सरकारी मुहर भी है। नेताजी की मौत की जांच करने वाले मुखर्जी कमीशन ने तो विमान हादसे की बात से ही इंकार किया था। ताइवान सरकार से बात करने के बाद कमीशन ने अपनी जांच में पाया था कि उस दिन वहां कोई हादसा नहीं हुआ और न ही नेताजी की मौत हुई। हालांकि कमीशन की रिपोर्ट को तत्कालीन मनमोहन सरकार ने नहीं माना था।
गुमनामी बाबा को नेताजी मानते थे लोग

फैजाबाद में गुमनाम सी जिंदगी जीने वाले गुमनामी बाबा उर्फ भगवानजी के बारे में प्रचलित है कि वही नेताजी थे। जो आजादी के बाद रूस से आने के बाद यहां आकर बस गए थे। गुमनामी बाबा की मौत 16 सितंबर 1985 को हुई थी। स्‍थानीय लोगों के अनुसार गुमानामी बाबा 1970 के आसपास वहां पहुंचे थे। फर्राटेदार अंग्रेजी और जर्मन बोलने वाले गुमनामी बाबा की मौत के बाद उनके सामान में नेताजी के संबंध में दुनियाभर में छपी हर खबर की कटिंग मिली थी। बताया जाता है जो गुमनामी बाबा किसी से नहीं मिलते थे उनसे मिलने वहां आज़ाद हिन्द फौज की गुप्तचर शाखा के प्रमुख पवित्र मोहन रॉय, लीला रॉय और समर गुहा जैसे लोग अक्सर आते रहते थे।
नेहरू ने खत में बोस को बताया युद्ध अपराधी

नेताजी के जीवित रहने के संबंध में एक बड़ा सबूत वो खत भी माना जाता है जो देश की आजादी के कुछ दिन बाद ही पंडित जवाहर लाल नेहरू ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री को लिखा था। हाल ही में केन्द्र सरकार द्वारा सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों में ‌ब्रिटिश पीएम क्लीमेंट एटली को लिखा एक खत जवाहर लाल नेहरू का भी है, जिसमें उन्होंने बोस को युद्ध अपराधी बताया था। 27 दिसंबर 1945 को लिखे खत में नेहरू ने लिखा है मुझे अपने भरोसेमंद सूत्रों से पता चला है कि सुभाष चन्द्र बोस जो आपके वार क्रिमिनल हैं उन्हें स्टालिन ने रूस की सीमा में प्रवेश की अनुमति दे दी है। यह रूस का आपके साथ धोखा है। हालांकि इस चिट्ठी की प्रमाणितकता पर संदेह है क्योंकि इसमें व्याकरण की कई त्रुटियां हैं और नेहरू के हस्ताक्षर भी नहीं हैं। हालांकि कांग्रेस ने इस चिट्ठी को फर्जी बताया है।
















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