Sunday, 24 January 2016


स्टालिन की मौत के बाद नए नेता का चुनाव चल रहा था..!
कम्युनिस्ट पार्टी पोलित ब्यूरो के सभी सदस्य मौजूद थे..!
पार्टी के सबसे वरिष्ठ नेता भाषण दे रहे थे और स्टालिन के उठाये बहुत सारे कदम की आलोचना कर रहे थे, ये नहीं होना था, ये ऐसे नहीं होना था वगेरह वगेरह..!
तभी भीड़ से एक सदस्य की आवाज़ आई - "अगर गलत लगा तो तब इसका विरोध क्यों नहीं किया था.?"
नेता ने अपना भाषण रोक दिया और पूछा-
"किसने बोला.?"
सभी चुप चाप बैठे रहे..!
नेता ने अपना सवाल तीन बार दुहराया फिर भी कोई जवाब नहीं आया..!
नेता ने कहा
"बस यही वजह थी अंतर ये था कि मेरी जगह वो और तुम्हारी जगह मैं था"
हमारे देश में आज असहिष्णुता और बोलने की आज़ादी पर जितनी भी बात हो रही हो पर सनद रहे कि
कांग्रेस शासनकाल में वैसी ही आवाज़ उठी जो हाईकमान के कान को पसंद आई.!
वरना मीडिया सेंसर और इमरजेंसी जैसी घटनाएं नेहरू द्वारा सभी विरोधियों को निपटाए जाने के बाद की घटना है.!
आज कम-से-कम जनता बोल तो रही है वरना ऐसा भी दौर देश ने देखा है जब जयप्रकाश नारायण की रैली का telecast रोकने के लिए बॉबी चलाई गयी थी और
84 में इंदिरा की एक जान का क़र्ज़ चुकाने के लिए टाइटलर और सज्जन खुद तलवार ले उतर गए थे..!
कांग्रेस विरोध के बाद लोग अपनी जान की भीख मांगते थे, अवार्ड लौटाना तो दूर की बात है.!
मोदी हैं तो आज हंसराज और मनीष के साथ मनमोहन भी बोलने को आज़ाद हुए हैं वरना 2004 से 14 इस पीढ़ी ने देखी है दोस्त..!
Shashwat Mishra

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