Saturday 30 January 2016

सृष्टि के मूल में है और चेतना जीवन के क्रमिक विकास में कहीं पदार्थ से निकली है


दुनिया में बहुत से भ्रम हैं। उनमे एक बड़ा भ्रम यह है कि पदार्थवाद या भौतिकतावाद एक वैज्ञानिक सत्य है। जबकि वास्तविकता इससे मीलों दूर है। पदार्थवाद कहता है कि पदार्थ सृष्टि के मूल में है और चेतना जीवन के क्रमिक विकास में कहीं पदार्थ से निकली है। कब, कहाँ और कैसे यह वह न जानता है न बता सकता है। ऐसा कोई भी वैज्ञानिक तथ्य नहीं है जो यह साबित कर सके कि चेतना पदार्थ से निकली है।
चूंकि जीवन के क्रमिक विकास के सिद्धांत से इतना समझ आ गया कि जीवन का विकास इसी पृथ्वी पर हुआ है और किसी ईश्वर ने स्वर्ग से आदम और हव्वा नहीं भेजे हैं तो यह भी मान लिया गया कि चेतना भी इसी विकास में कहीं पैदा हुई होगी। हालांकि सबसे पहले क्रमिक विकास का सिद्धांत देने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिक अल्फ्रेड रसेल वालेस स्वयं इस बात से सहमत नहीं थे। वालेस का मानना था कि पदार्थ और चेतना अलग अलग है और क्रमिक विकास में चेतना पदार्थ से मिली है न कि उससे निकली है। वालेस के साथ डार्विन बाद में मिले और दोनों ने मिलकर द थ्योरी ऑफ़ ओरिजिन ऑफ़ स्पीशीज लिखी।
खैर पदार्थवाद को सबसे बड़ा झटका लगा क्वांटम विज्ञान की खोज से। क्वांटम विज्ञान ने बताया कि पदार्थ तब तक अस्तित्व में नहीं आता जब तक कि उसका अवलोकन न हो। अवलोकन से पहले वह एक तरंग के रूप में रहता है और अवलोकन पर वह पदार्थ का रूप लेता है। इस खोज ने विज्ञान जगत में खलबली मचा दी। क्योंकि अवलोकन के लिए चेतना ज़रूरी है, तो फिर चेतना पहले हुई, पदार्थ बाद में।क्वांटम विज्ञान की खोज के बाद कई वैज्ञानिकों ने यह मान लिया कि चेतना ही मूल में है और पदार्थ उससे निकला है। इसमें सबसे अहम नाम थे महान ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक और फिजिक्स के नोबल प्राइज विजेता एर्विन श्रोडिंगर। श्रोडिंगर ने चेतना को समझने के लिए भारतीय वेदांत का अध्ययन किया और वे उससे इतने प्रभावित हुए की आजीवन वेदांत के अनुयायी बने रहे।
मगर क्वांटम विज्ञान की एक समस्या यह थी कि वह आइंस्टीन के थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी से मेल न खाता था। दोनों अपनी जगह सही थे मगर एक दूसरे से बेमेल। इस पर वैज्ञानिकों में लंबी बहस हुई। आइंस्टीन एक अन्य क्वांटम वैज्ञानिक नील बोर से सालों बहस करते रहे और हर बार बोर ही विजेता रहे। इस मलाल को लेकर आइंस्टीन ने भी चेतना को समझने के लिए भारतीय अध्यात्म को समझना चाहा और गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर से लंबी चर्चाएं कीं। परन्तु नतीजा कुछ न निकला। क्वांटम विज्ञान और चेतना उनके लिए पहेली ही बने रहे।
उसके बाद लंबे समय तक वैज्ञानिक मतभेद में ही रहे। फिर आए ऑस्ट्रेलियाई फिलॉसफर और वैज्ञानिक डेविड चामर। डेविड ने अपनी पुस्तक The conscious mind में hard problem ऑफ़ consciousness का ज़िक्र किया। hard problem यानि मनुष्य का आंतरिक संसार और उसकी फ्री विल। डेविड ने कहा कि चेतना पदार्थ से निकल ही नहीं सकती क्योंकि इससे आप मनुष्य के आंतरिक संसार और फ्री विल को एक्सप्लेन नहीं कर सकते। पदार्थ से निकली चेतना से मनुष्य सिर्फ एक आम कंप्यूटर जैसा हो सकता है, बिना किसी अनुभव और फ्री विल के। पदार्थवादी वैज्ञानिक हार्ड प्रॉब्लम को टालते रहे क्योंकि न तो उनके पास कोई उत्तर था न आज है।
इसी दौरान चेतना को समझने के लिए एक नए किस्म के विज्ञान की शुरुआत हुई जिसे न्यू ऐज या नए युग का विज्ञान कहते हैं। इसका केंद्र अमेरिका की एरिज़ोना यूनिवर्सिटी रहा। इसके वैज्ञानिकों ने चेतना के मॉडल बना कर बताया कि किस तरह चेतना सृष्टि के मूल में है पदार्थ उससे निकला है। इसी बीच एक सबसे महत्वपूर्ण काम किया आज दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों में एक माने जाने वाले ब्रिटिश वैज्ञानिक रॉजर पेनरोस ने। रॉजर ने अपनी किताब द एम्परर्स न्यू माइंड में क्वांटम विज्ञान और थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी का मेल कराते हुए एक नई थ्योरी दी जिसे उन्होंने ऑब्जेक्टिव रिडक्शन का नाम दिया। इस थ्योरी में उन्होंने भी यही कहा कि चेतना ब्रह्माण्ड के मूल में है और एक्सप्लेन किया कि किस तरह उस चेतना की तरंग ऑब्जेक्टिव रिडक्शन पर पदार्थ को जन्म देती है। रॉजर के साथ जुड़े अमरीकी जीववैज्ञानिक स्टुअर्ट हमरोफ़्फ़्। दोनों ने मिलकर चेतना का मॉडल बनाया और सपष्ट किया कि किस तरह ब्रह्माण्ड के मूल से चेतना मानव मस्तिष्क में न्यूरोन के भीतर microbules में ऑब्जेक्टिव रिडक्शन से आती है। इस मॉडल को उन्होंने नाम दिया ऑर्केस्ट्रेटेड ऑब्जेक्टिव रिडक्शन मॉडल। ORCH- OR या और-ORCH। ORCH-OR आज चेतना का सबसे विस्तृत और व्यापक मॉडल है जो लगभग वही कहता है जो भारतीय या पूर्वी अध्यात्म कहता है। हालांकि वह अभी मॉडल ही है और सर्व मान्य नहीं है, मगर वह दुनिया के सबसे बड़े वैज्ञानिकों से आया है न कि किसी बाबा या महर्षि से।
Manmohan Nahar ji और Nikhilesh Mishranik ji मैं आपका और आपके मित्रों का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहूंगा। यह ज़रूरी नहीं है कि आप इसे माने मगर स्वयं अध्ययन कर इस नतीजे पर पहुंचे कि पदार्थवाद कितना सही है और कितना गलत।

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