केलाड़ी कर्नाटक के मलनाड क्षेत्र में
एक राज्य था। सन १६६४ में सोमशेखर
नायक केलाड़ी का राजा बना। वह एक
कुशल और धार्मिक राजा था। उसने अपने
राज्य में कई सुधार कार्य किये।
एक बार राजा रामेश्वर मेले में गया था।
वहां उसने एक बहुत ही सुंदर
लड़की चेनम्मा को देखा।
चेनम्मा की खूबसूरती ने राजा का ध्यान
आकर्षित किया और वह उससे प्यार
करने लगा। राजधानी लौटकर राजा ने
अपने मुख्यमंत्री को बुलाकर चेन्नमा के
बारे में बताया और उससे शादी करने
की इच्छा व्यक्त की। मुख्यमंत्री ने एक
सामान्य लड़की से शादी न करने
की सलाह दी पर राजा ने कहा कि वह
शादी करेगा तो सिर्फ चेनम्मा से
वर्ना नहीं। अंततः राजा और
चेनम्मा की शादी बड़ी धूमधाम और
शाही वैभव के साथ संपन्न हुई।
चेनम्मा राजघराने की गरिमा का सम्मान
करते हुए एक कुशल रानी की तरह
राजघराने का कार्य देखने लगी। वह
राज्य के विषयों में रूचि लेती और
महतवपूर्ण मामलों पर राजा को बहुमूल्य
सलाह भी देती। चेनम्मा राजमहल के
कर्मचारियों से अपने बच्चो की तरह
प्यार करती थीं।
लेकिन अच्छा समय सदा के लिए
नहीं रहता। चेनम्मा का पति एक
नर्तकी के चक्कर में पड़ गया। वह राज-
काज उपेक्षा कर नर्तकी के साथ
ही रहने लगा। इससे राज्य
की स्थिति ख़राब होने लगी। जब
कलेड़ी की कमजोरी पडोसी राज्य
बीजापुर के सुल्तान
को पता लगी तो उसने इसे कलेड़ी पर
आक्रमण करने का सुनहरा अवसर माना।
यह देखकर चेनम्मा ने शासन की बागडोर
अपने हाथ में ले ली। जिन हाथों में
चूड़ियाँ हुआ करती थीं अब उन हाथों में
तलवार थी। इस बीच बीजापुर के सुलतान
ने चेनम्मा के पति की हत्या करा दी।
चेनम्मा निसंतान थी। राज्य के वारिस के
रूप में उसने बसप्पा नायक को गोद ले
लिया। चेनम्मा के मंत्रिमंडल में
अति विश्वसनीय और कुशल मंत्री थे
और सेना में बहादुर सैनिक। उसके नेतृत्व
में कलेड़ी की सेना ने बीजापुर के सुल्तान
के गलत इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया।
युद्ध में चेनम्मा के हाथों बीजापुर परस्त
हुआ। सन १६७१ में
चेनम्मा को आधिकारिक तौर पर
कलेड़ी की रानी घोषित किया गया। इसके
बाद पच्चीस वर्षों तक चेनम्मा ने
कलेड़ी पर राज्य किया।
चेनम्मा के राज्यकाल में कलेड़ी में
शांति स्थापित हुई। इससे राज्य में
खुशहाली बढ़ी। उन्होंने कई प्रकार के
धार्मिक कार्य किये।
मंदिरों का जीर्णोद्धार कर विशेष
पूजा की व्यवस्था की। मठों को स्थापित
करने के लिए भूमि दी और अन्य
राज्यों के विद्वानों को कलेड़ी में बसने के
लिए आमंत्रित किया। इसके लिए उन्होंने
विद्वानों के लिए घरों की व्यवस्था की।
चेनम्मा बहुत ही धार्मिक
विचारों की रानी थी और
अपनी सभी विजयों का श्रेय भगवान्
को देती थीं। चेनम्मा के प्रभाव को बढ़ते
देखकर पडोसी राज्य मैसूर की सेना ने
उस पर हमला कर दिया। उन्होंने मैसूर
की सेना को दो बार परास्त किया।
अंततः मैसूर के राजा ने कलेड़ी से
संधि करनी पड़ी।
प्रत्येक दिन,
रानी चेनम्मा प्रार्थना और पूजा के बाद
भिक्षुओं और सन्यासियों को दान
देती थीं। एक बार चार सन्यासी रानी के
पास आये। इन चारों का व्यवहार
सन्यासियों जैसा नहीं था जिसे रानी ने
भांप लिया। रानी के पूछने पर इन
चारों का सरदार ने बताया की वह
छत्रपति शिवाजी का पुत्र रामराज है।
शिवाजी के पुत्र को इस हालत में देखकर
रानी दंग रह गयी। उन्हें विश्वास
नहीं हुआ कि पूरे महाराष्ट्र में हिन्दुओं
की रक्षा करने वाले शिवाजी के पुत्र
उनके राज्य में शरण चाहते हैं। राजाराम
ने औरंगजेब द्वारा उनके भाई
शम्भाजी कि हत्या और हिन्दुओं पर
उसके अत्याचार की बात सुनकर
रानी को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने
राजाराम और उसके साथियों को शरण
दी और कर्मचारियों को निर्देश
दिया कि उनकी देखभाल एक विशिस्ट
अतिथि की तरह हो। औरंगजेब ने
चेनम्मा द्वारा शिवाजी के पुत्र को शरण
देने का बहाना बनाकर कलेड़ी पर
आक्रमण कर दिया। लेकिन
चेनम्मा की बहादुर सेना ने औरंगजेब
की सेना के दाँत खट्टे कर दिए और
अंततः मुग़ल सेना को कलेड़ी के साथ
संधि करनी पड़ी।
ऐसी वीरांगना और धर्मपरायण
नारी थी कलेड़ी की रानी चेनम्मा।
इनका नाम सुनहरे अक्षरों में भारत के
इतिहास में लिखा है।
एक राज्य था। सन १६६४ में सोमशेखर
नायक केलाड़ी का राजा बना। वह एक
कुशल और धार्मिक राजा था। उसने अपने
राज्य में कई सुधार कार्य किये।
एक बार राजा रामेश्वर मेले में गया था।
वहां उसने एक बहुत ही सुंदर
लड़की चेनम्मा को देखा।
चेनम्मा की खूबसूरती ने राजा का ध्यान
आकर्षित किया और वह उससे प्यार
करने लगा। राजधानी लौटकर राजा ने
अपने मुख्यमंत्री को बुलाकर चेन्नमा के
बारे में बताया और उससे शादी करने
की इच्छा व्यक्त की। मुख्यमंत्री ने एक
सामान्य लड़की से शादी न करने
की सलाह दी पर राजा ने कहा कि वह
शादी करेगा तो सिर्फ चेनम्मा से
वर्ना नहीं। अंततः राजा और
चेनम्मा की शादी बड़ी धूमधाम और
शाही वैभव के साथ संपन्न हुई।
चेनम्मा राजघराने की गरिमा का सम्मान
करते हुए एक कुशल रानी की तरह
राजघराने का कार्य देखने लगी। वह
राज्य के विषयों में रूचि लेती और
महतवपूर्ण मामलों पर राजा को बहुमूल्य
सलाह भी देती। चेनम्मा राजमहल के
कर्मचारियों से अपने बच्चो की तरह
प्यार करती थीं।
लेकिन अच्छा समय सदा के लिए
नहीं रहता। चेनम्मा का पति एक
नर्तकी के चक्कर में पड़ गया। वह राज-
काज उपेक्षा कर नर्तकी के साथ
ही रहने लगा। इससे राज्य
की स्थिति ख़राब होने लगी। जब
कलेड़ी की कमजोरी पडोसी राज्य
बीजापुर के सुल्तान
को पता लगी तो उसने इसे कलेड़ी पर
आक्रमण करने का सुनहरा अवसर माना।
यह देखकर चेनम्मा ने शासन की बागडोर
अपने हाथ में ले ली। जिन हाथों में
चूड़ियाँ हुआ करती थीं अब उन हाथों में
तलवार थी। इस बीच बीजापुर के सुलतान
ने चेनम्मा के पति की हत्या करा दी।
चेनम्मा निसंतान थी। राज्य के वारिस के
रूप में उसने बसप्पा नायक को गोद ले
लिया। चेनम्मा के मंत्रिमंडल में
अति विश्वसनीय और कुशल मंत्री थे
और सेना में बहादुर सैनिक। उसके नेतृत्व
में कलेड़ी की सेना ने बीजापुर के सुल्तान
के गलत इरादों को नेस्तनाबूद कर दिया।
युद्ध में चेनम्मा के हाथों बीजापुर परस्त
हुआ। सन १६७१ में
चेनम्मा को आधिकारिक तौर पर
कलेड़ी की रानी घोषित किया गया। इसके
बाद पच्चीस वर्षों तक चेनम्मा ने
कलेड़ी पर राज्य किया।
चेनम्मा के राज्यकाल में कलेड़ी में
शांति स्थापित हुई। इससे राज्य में
खुशहाली बढ़ी। उन्होंने कई प्रकार के
धार्मिक कार्य किये।
मंदिरों का जीर्णोद्धार कर विशेष
पूजा की व्यवस्था की। मठों को स्थापित
करने के लिए भूमि दी और अन्य
राज्यों के विद्वानों को कलेड़ी में बसने के
लिए आमंत्रित किया। इसके लिए उन्होंने
विद्वानों के लिए घरों की व्यवस्था की।
चेनम्मा बहुत ही धार्मिक
विचारों की रानी थी और
अपनी सभी विजयों का श्रेय भगवान्
को देती थीं। चेनम्मा के प्रभाव को बढ़ते
देखकर पडोसी राज्य मैसूर की सेना ने
उस पर हमला कर दिया। उन्होंने मैसूर
की सेना को दो बार परास्त किया।
अंततः मैसूर के राजा ने कलेड़ी से
संधि करनी पड़ी।
प्रत्येक दिन,
रानी चेनम्मा प्रार्थना और पूजा के बाद
भिक्षुओं और सन्यासियों को दान
देती थीं। एक बार चार सन्यासी रानी के
पास आये। इन चारों का व्यवहार
सन्यासियों जैसा नहीं था जिसे रानी ने
भांप लिया। रानी के पूछने पर इन
चारों का सरदार ने बताया की वह
छत्रपति शिवाजी का पुत्र रामराज है।
शिवाजी के पुत्र को इस हालत में देखकर
रानी दंग रह गयी। उन्हें विश्वास
नहीं हुआ कि पूरे महाराष्ट्र में हिन्दुओं
की रक्षा करने वाले शिवाजी के पुत्र
उनके राज्य में शरण चाहते हैं। राजाराम
ने औरंगजेब द्वारा उनके भाई
शम्भाजी कि हत्या और हिन्दुओं पर
उसके अत्याचार की बात सुनकर
रानी को बहुत दुःख हुआ। उन्होंने
राजाराम और उसके साथियों को शरण
दी और कर्मचारियों को निर्देश
दिया कि उनकी देखभाल एक विशिस्ट
अतिथि की तरह हो। औरंगजेब ने
चेनम्मा द्वारा शिवाजी के पुत्र को शरण
देने का बहाना बनाकर कलेड़ी पर
आक्रमण कर दिया। लेकिन
चेनम्मा की बहादुर सेना ने औरंगजेब
की सेना के दाँत खट्टे कर दिए और
अंततः मुग़ल सेना को कलेड़ी के साथ
संधि करनी पड़ी।
ऐसी वीरांगना और धर्मपरायण
नारी थी कलेड़ी की रानी चेनम्मा।
इनका नाम सुनहरे अक्षरों में भारत के
इतिहास में लिखा है।
हनुमानभक्त दुर्गेश राजपुत
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