Friday 29 January 2016



शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले
वतन पर मरने वालों का बांकि यही निशा होगा

आज जिस जमीन पर हम भारतीयों को इतना गुमान है
आज जिसे हम धरती का जन्नत बताकर गर्व महसूस करते हैं, शायद आपमें से कम हीं लोगों को ये पता होगा कि इसके पीछे उस आदमी की बाजु है जिसने टूटे हुए हाथों से भी दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए। आज हम आपको बताएंगे मेजर सोमनाथ शर्मा के बारे में जिन्होंने अपनी जान पर खेलकर कश्मीर को पाकिस्तान के हाथों में जाने से बचा लिया। 

मेजर सोमनाथ शर्मा का जन्म ब्रिटिश भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था। उनके पिता भी भारतीय सेना में मेजर के पद पर थे। 31 अक्टूबर 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा की टुकड़ी को कश्मीर के बड़गाम पर एयरलिफ्ट किया गया। यद्यपि उनके एक हाथ पर प्लास्टर था, लेकिन उन्होंने फिर भी अपनी कंपनी के साथ जाने की इजाजत मांगी। उन्हें परमिसन मिल भी गया। ये उनकी देशभक्ति ही थी जिसने उन्हें ऐसा हालत में भी युद्ध के मोर्चे पर जाने को प्रेरित किया।

3 नवंबर की उस हड्डियों तक को जमा देने वाली ठंढ में दुश्मन ने हमला किया। दुश्मन पूरे साजो-सामान के साथ आए थे। वो करीब 700 की संख्या में थे और उनके पास पूरी टैंक बटालियन मौजूद थी। मेजर सोमनाथ शर्मा की अगुवाई वाली टुकड़ी में सिर्फ 100 सैनिक थे। उनकी कंपनी के पास दुश्मनों के मुकाबले का कोई हथियार नहीं था। इस मुश्किल घड़ी में शर्मा ने अपनी टुकड़ी का मजबूती से नेतृत्व किया। उन्होंने अपनी कंपनी के जवानों को दुश्मन के सामने डटकर लड़ने को प्रेरित किया। इसके बदौलत अपने बचे-खुचे हथियारों के साथ भारतीय सैनिकों ने दुश्मनों पर हमला बोल दिया।

मेजर सोमनाथ शर्मा खुद एक-एक पोस्ट पर जाकर अपने सैनिकों की हौसला अफजाई करते रहे। उन्हें अच्छी तरह पता था कि अगर ये पोस्ट हथिया लिया गया तो कश्मीर हवाई अड्डे को बचाना मुश्किल हो जाएगा और एक बार हवाई अड्डा हाथ से चला गया तो कश्मीर को बचाना अत्यंत दुस्कर हो जाएगा। पोस्ट पर जाने से वो बुरी तरह घायल हो गए। इधर भारतीय सैनिकों की संख्या कम होने लगी। यद्यपि उन्होंने शत्रु सेना का बहादुरी से मुकाबला किया लेकिन दुश्मन के मजबूत हथियारों क सामने शहीद हो गए। तब मेजर सोमनाथ शर्मा ने खुद ही मैगजीन भर-भर कर अपने सिपाहियों को देने लगे। इसके अलावा वो लाईट मशीन गन भी चलाते रहे।

इसी दौरान शत्रु की तोप का एक गोला उन्हें लग गया और वो शहीद हो गए। मरने से पहले उन्हेंने अपने कमांड को कहा था कि शत्रु सिर्फ 50मीटर की दूरी पर है लेकिन मैं और मेरे सिपाही आखिरी दम तक लड़ेंगे। मरणोंपरांत उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। वो परमवीर चक्र पाने वाले पहले सैनिक थे।

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