Saturday, 30 January 2016

"एएसआई के तत्कालीन महानिदेशक प्रो. बीबी लाल की अगुवाई में १९७६-७७ में अयोध्या में जो खुदाई हुई थी उसमें मंदिर के अवशेष मिले थे। उस खुदाई के लिए बनी टीम में मैं भी शामिल था। लेकिन मार्क्सवादी इतिहासकारों ने झूठ बोला। लोगों को ही नहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट को भी गुमराह किया।
अयोध्या का मसला बहुत पहले हल हो जाता लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने मुस्लिम बुद्धिजीवियों का ब्रेनवाश किया और उनसे झूठ बोला। डॉ इरफान हबीब उस वक्त भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के चेयरमैन थे। उनकी अगुवाई में जो बैठकें होती थीं उसमें रोमिला थापर, बिपिन चंद्रा और एस गोपाल जैसे (वामपंथी) इतिहासकारों ने तर्क दिया कि उन्नीसवीं सदी के पहले अयोध्या में तोड़फोड़ होने का कोई ऐतिहासिक जिक्र नहीं है। सूरज बेन, अख्तर अली, आरएस शर्मा और डीएन झा जैसे वामपंथी इतिहासकारों ने इसका समर्थन किया।
ये वो लोग थे जिनमें से कई लोगों ने मुस्लिम चरमपंथियों के साथ मिलकर खुलेआम बाबरी एक्शन कमेटी का समर्थन किया।
खुदाई के दौरान हमें विवादित स्थल पर चौदह स्तंभ मिले थे। सभी स्तंभों पर जो नक्काशी हुई थी वह ग्यारहवीं और बारहवीं सदी में मंदिरों के स्तंभों पर होनेवाली नक्काशी जैसी थी। यह भी स्पष्ट हो गया था कि मस्जिद एक मंदिर के मलबे पर खड़ी है। उन दिनों मैंने अंग्रेजी के कई अखबारों में अपना लेख भेजा था लेकिन किसी ने उसे प्रकाशित नहीं किया। सिर्फ एक अखबार ने प्रकाशित किया, वह भी लेटर टू एडीटर कॉलम में।"
(भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग "एएसआई" रीजनल डायरेक्टर रहे केके मुहम्मद ने मलयालम में लिखी आत्मकथा "मैं एक भारतीय" में ये तथ्य लिखे हैं।)

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