Tuesday, 12 January 2016

पढ़ना मत! अपनी मूर्खता को पकड़े रखना- कश्‍मीरी पंडित के पूर्वजों ने मूर्खता की थी, उनकी अगली पीढ़ी गाजर-मूली की तरह काट दी गयी, भगा दी गयी! ‎

पढन मत अपन मरखत क पकड रखन
हिंदुओं में एक विचित्र बात है, वह अपने इतिहास से सबक लेने को तैयार ही नहीं है! और ऐसा नहीं कि यह आज की बात हो, यह हमारे पूर्वजों से चली आ रही मूढ़ता है, जिसका खामियाजा इस बेहद खूबसूरत देश को बार-बार भुगतना पड़ा है। अब कल मैंने 1946 के चुनावी परिणाम के आधार पर बताया था कि आज भारत में जो मुसलमान हैं, उनमें से 90 फीसदी के पूर्वजों ने पाकिस्‍तान निर्माण के पक्ष में मतदान किया था और उन्‍हीं के वंशज आज आतंकी याकूब मेनन के लिए सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पर उतरे हुए हैं। यह आधुनिक भारत का ऐतिहासिक तथ्‍य है। लेकिन कुछ मूढमति इसे मानने को भी राजी नहीं हैं! मेरा बस इतना आग्रह है कि कम से कम मुझे गलत साबित करने के लिए ही सही, लेकिन इतिहास की पुस्‍तक हाथ में तो पकड़ लो!
एक दूसरी प्रजाति के मूढमति हैं, जो कहते हैं कि इतिहास को पुस्‍तक में ही बंद रहने दो, बाहर निकालने पर नफरत फैल जाएगी। वो यह नहीं समझ पा रहे हैं कि एक बार इनसे इनके बाप का नाम छीन लिया गया तो ये 'हरामी' की श्रेणी में आ जाएंगे! अंग्रेजों व वामपंथियों ने यही किया। भारत से उसका मूल इतिहास छीन लिया, जिसके कारण ऐसे 'हरामी' सोच वाले लोग आज मौजूद हैं। वैसे भी अंग्रेज व वामपंथी ने तो तुम्‍हें विदेशी आर्यन्‍स कहा ही है, अर्थात हरामी। कम से कम सही इतिहास से तुम उन्‍हें तो झूठ साबित कर पाओगे या फिर हरामी रहने में ही सुख मिल रहा है? मित्रों से क्षमा मांगता हूं, लेकिन मुझे ऐसे दोगलों के लिए यह शब्‍द लिखना पड़ रहा है।

मुस्लिम बर्बरता को छुपाने के लिए इतिहास को गलत पढाया गया या फिर उसे दबाया गया तो क्‍या देश में हिंदू मुसलिम एकता आ गयी? सच्‍चाई तो यह है कि सबसे बड़ी खाई इसी दो समुदाय के बीच है, जिसके आधार पर देश का बंटवारा भी हुआ और आज एक आतंकी याकूब मेनन के लिए मुसलमानों के बडे समहू में हमदर्दी भी दिख रही है। यदि सच्‍चा इतिहास पढ़ाया जाएगा तो संभव है, दोनों समुदाय अतीत की आपसी वैमनस्‍यता को दूर करने के लिए वर्तमान में सहअस्तित्‍व के साथ प्रेमपूर्वक रहने पर विचार कर सकें। घाव की सर्जरी की जाती है, केवल पटटी बांध कर नहीं छोड़ा जाता।

एक तीसरी श्रेणी का मूर्ख कांग्रेसी हिंदू है, जिनका कहना है कि इस्‍लाम के आधार पर बने पाकिस्‍तान के दो टुकड़े हो गए। यदि आजादी के बाद भारत में 'भगवा' राज होता तो भारत के भी कई टुकड़े हो गए होते! अब ऐसे मूर्ख को यह कौन समझाए कि साम्राज्‍यवाद में टूटन छुपा है। इस्‍लाम एक साम्राज्‍यवादी विचारधारा है, इसलिए पूरा मध्‍य एशिया व अरब आज टूटन का शिकार है। ईसायत साम्राज्‍यचादी विचारधारा है, जिसके कारण यूरोप के छोटे छोटे देश कभी एक नहीं हो पाए। आज भी ब्रिटेन से कई हिस्‍से टूटने के कगार पर हैं। साम्‍यवाद भी साम्राज्‍यवादी विचारधारा है, रूस का टूटन और चीन व ताइवान का झगड़ा इसका उदाहरण है।
भगवा 'विश्‍व बंधुत्‍व' पर आधारित विचारधारा है। यही कारण है कि भारत ने कभी किसी देश पर आक्रमण नही किया। पहला भगवा राज सम्राट अशोक (बुद्ध भी भगवा ही पहनते थे) ने बौद्ध धर्म को राज धर्म के रूप में बनाकर स्‍थापित किया, लेकिन उसने तलवार नहीं 'धम्‍म' के जरिए दुनिया को जीता। भारत का स्‍वर्णकाल एक भगवा यानी हिंदू राजवंश गुप्‍तवंश का काल था- यह निर्माण का काल था, कहीं कोई विध्‍वंश समाज में नहीं आया। हर्ष, मिहिर भोज, 300 साल का विजय नगर साम्राज्‍य, छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप- इन सभी का शासन गौरवपूर्ण इतिहास का निर्माण करने वाला रहा है, समाज को बांटने वाला नहीं! सूर्य व अग्नि की आभा बिखेरता 'भगवा'- त्‍याग व समर्पण का प्रतीक है। सोनिया-राहुल के चप्‍पल चाटने से फुर्सत मिल जाए तो कम से कम विरोध के लिए ही सही, एक बार भगवा का अर्थ ही शब्‍दकोश में ढूंढ लो।

एक चौथी श्रेणी महामूर्ख हिंदुओं का है, जो आज भी 'हिंदू' शब्‍द को विदेशी का देन मानते हुए कुतर्क पर कुतर्क किए जा रहा है। हिंदू एक भौगोलिक अवधारणा है, जिसे धर्म के रूप में दुनिया के पटल पर स्‍थापित करने का श्रेय स्‍वामी विवेकानंद को जाता है। सनातनियों व हिंदुस्‍तानियों के लिए यह शब्‍द आज सर्वाधिक प्रचलित है, इसलिए यह नाम स्‍वीकार्य होना चाहिए। लेकिन मूर्खता देखिए कि याकूब जैसी मानसिकता के असान्‍न खतरे के बीच हिंदू नाम को लेकर मूर्खता करने वाले भी मौजूद हैं।

'इन्‍दु' के रूप में हिंदू का सर्वप्रथम उल्‍लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में मिलता है, तब इसलाम इस धरती पर आया भी नहीं था। चीन के ठीक विपरीत पश्चिम के फारस से भी यह शब्‍द आया और उस वक्‍त भी इस्‍लाम का उदय नहीं हुआ था। फारस के लोग उस वक्‍त जरथ्रुस्‍ट्रवादी थे व अग्नि की पूजा करते थे। 'हिंदू' शब्‍द पर आज भी विवाद करने वाले मूर्खों को दिनकर जी की 'संस्‍कृति के चार अध्‍याय' पढनी चाहिए। वैसे भी मैं इस पर विवाद को मूर्खता के अलावा कुछ नहीं मानता।

आज मूल आवश्‍यता अपने इतिहास का सही-सही ज्ञान हासिल करने की है ताकि भारत के हर समुदाय के मन से वैमनस्‍यता सदा के लिए विदा हो जाए। देश को बांटने का विचार देने वाले तीन कटटर मुसलमानों के पूर्वज हिंदू और वह भी ब्राहमण थे। पाकिस्‍तान के वैचारिक जनक मोहम्‍मद इकबाल के पूर्वज सारश्‍वत ब्राहमण थे, जिन्‍ना के पूर्वज भी हिंदू थे और कश्‍मीर को नर्क बनाने वाले शेख अब्‍दुल्‍ला के पूर्वज भी हिंदू ब्राहमण थे। यदि इनके साथ साथ इनके आसपास के लोगों को वास्‍तविक इतिहास का ज्ञान होता तो क्‍या भारत बंटता? लेकिन इन तीनों ने इस्‍लाम में साम्राज्‍यवाद के निहित स्‍वार्थ को देखते हुए अपने इतिहास को लोगों से छुपाया। इनके आसपास के लोगों की अज्ञानता के कारण इन्‍हें अपने मूल जड़ की न कभी याद आयी और न ही जरूरत ही महसूस हुई।

19 वीं शताब्‍दी में कश्‍मीर के डोगरा राजा रणवीर सिंह के पास कश्‍मीर घाटी के सारे मुसलमान पहुंचे थे कि हमें अपने मूल हिंदू धर्म में वापस ले लीजिए। राजा ने स्‍वामी दयानंद सरस्‍वती से इस बारे में पूछा और उन्‍होंने 'रणविजय प्रकाश' नाम पुस्‍तक की रचना कर यज्ञ के जरिए उन सभी को वापस मूल धर्म में लौटाने का सुगम मार्ग बताया। ज्‍यों ही इसकी जानकारी वहां के ब्राहमणों को मिली उन्‍होंने विद्रोह कर दिया और कहा कि यदि ये लोग मुसलमान से हिंदू बने तो हम झेलम नदी में कूद कर आत्‍महत्‍या कर लेंगे। राजा ने विचार त्‍याग दिया। उन मूर्ख ब्राहमणों ने तो आत्‍महत्‍या नहीं किया, लेकिन उनकी अगली पीढी को गाजर मूली की तरह काट दिया गया, घाटी से भगा दिया गया, जिसे आप हम कश्‍मीरी पंडित के रूप में जानते हैं। यदि सही इतिहास का ज्ञान होता, तो संभव है कि आज घाटी में आतंकवादी संगठन आईएसआईएस के झंडे नहीं लहरा रहे होते।

आज मुसलमान भले धर्मांतरित होकर हिंदू न बनें, जरूरत भी नहीं, लेकिन मूल इतिहास जानकर सहअस्तित्‍व को स्‍वीकार तो कर सकेंगे? हिंदुओं को भी छुआछूत से बाहर आकर उन्‍हें अपना मानने का विचार तो आएगा? अन्‍यथा उसके इसी छुआछूत के कारण कश्‍मीर से लेकर बंगाल तक मुसलमान बनते चले गए। पूरे पूर्वी बंगाल को मुसलमान बनाने वाला काला पहाड़ भी पहले हिंदू ही था और हिंदु ब्राहमणों के विद्वेश के कारण ही तलवार के जोर पर सभी को मुसलमान बनाता चला गया।

इसलिए मूर्खता प्रदर्शित करने वालों से मेरा आग्रह है कि इसे तुम अपनी अगली पीढी के लिए बचाए रखो, क्‍योंकि तुम्‍हारे डीएनए में ही समस्‍या से पलायन का डिफेक्‍ट आ चुका है, जिसके कारण उजूल-फिजूल तर्क देकर तुम अपने डर पर काबू पाने की कोशिश करते रहते हो। तुम्‍हारे बच्‍चे भी यही करेंगे और कश्‍मीरी पंडितों जैसा हश्र पाएंगे। पढना मत, बस अपनी मूर्खता को कसकर पकड़े रखना।
Author: Sandeep Deo  

No comments:

Post a Comment