Friday, 2 February 2018

वित्तीय वर्ष 2013-14 यानि कि यूपीए के दस वर्ष के कार्यकाल की समाप्ति के समय (31मार्च 2014) तक देश में EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) में दर्ज कर्मचारियों की संख्या 11 करोड़ 78 लाख थी।
दिसम्बर 2017 में सरकार द्वारा लोकसभा के समक्ष प्रस्तुत दस्तावेजों के अनुसार...
31 मार्च 2015 तक यह संख्या 15 करोड़ 84 लाख,
31 मार्च 2016 तक यह संख्या 17 करोड़ 14 लाख,
31 मार्च 2017 तक यह संख्या 19 करोड़ 33 लाख तक पहुंच चुकी थी।
अर्थात मोदी सरकार के पहले 3 वर्षों के कार्यकाल में EPFO (कर्मचारी भविष्य निधि संगठन) में दर्ज हुए कर्मचारियों की संख्या में 7 करोड़ 55 लाख की वृद्धि हुई है। ध्यान यह भी रहे कि मोदी सरकार आने के पश्चात EPF खाते को आधार कार्ड से लिंक करने की अनिवार्यता इन आंकड़ों की प्रमाणिकता को सन्देह से परे कर चुकी है।
इसके बावजूद यदि उपरोक्त संख्या के आधे को ही सच मान लिया जाए तो भी इन तीन वर्षों में प्रतिवर्ष औसतन एक करोड़ 25 लाख नई नौकरियां लोगों को मिलीं हैं।
क्या यह आंकड़ा राहुल गांधी और कांग्रेसी फौज तथा सपा बसपा आरजेडी सरीखे उसके पिछलग्गू दलों के इस आरोप कि "मोदी सरकार के शासन में बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ी है।" की धज्जियां नहीं उड़ा रहा।
लेकिन इसके बावजूद मोदी विरोधी यह टोली आज भी अपने उपरोक्त आरोप की तोता-रटंत में व्यस्त है।
यह देख सुनकर मोदी विरोधी इस टोली के लिए 1972 में रिलीज हुई मनोजकुमार की सुपरहिट फिल्म # बेईमान के सुपरहिट गीत की यह शुरुआती पंक्तियां सर्वाधिक उपयुक्त सिद्ध होती है...
ना इज़्ज़त की चिंता ना फिकर कोई अपमान की,
जय बोलो बेईमान की, जय बोलो..

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