Sunday, 1 April 2018

मसला ये नहीं कि कश्मीर, भागलपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, रानीगंज, रोसड़ा, नवादा में दंगे की आग बार बार क्यों लगती है?
मसला ये है कि पूरे देश में क्यों नहीं लगती?
असल में इस्लाम अपनी शक्ति का प्रदर्शन नहीं आजमाइश कर रहा है, वह हिंदुओं की प्रतिक्रिया का वेग परख रहा है!
नवादा में हर साल छोटा मोटा दंगा हो जाता है!
नवादा बाइपास सड़क की दक्षिणी छोर मुसलमानों की सघन आबादी की है!
बीस वर्ष में यहां की आबादी लगभग दुगनी हो जाती है।
हर दंगे की पहल यहां के शांतिदूतों द्वारा की जाती है, और जब आस पास के गांवों से लोग आकर इनकी कुटाई करते हैं तब इनके नेताओं को भाईचारा याद आने लगता है।
असल में ये छोटे हमले करके हिंदुओं की प्रतिक्रिया का स्तर मापते हैं, जहां हिंदू "डिफेंसिव" रहता है वहां ये कश्मीर या मुजफ्फरनगर का गंगनहर और प.बंगाल का मालदा और रानीगंज बना देते हैं!
जब पलासी का युद्ध हो रहा था, तब जितने लोग मैदान में लड़ रहे थे, उससे कई गुणा लोग लड़ाई का तमाशा देख रहे थे!
लोग हथियार नहीं उठा रहे थे, बल्कि तमाशा देख रहे थे, जबकि भारत के भाग्य का फैसला होनेवाला था।
लॉर्ड क्लाइव ने तब कहा था, "जब हम कुछ हजार लोग कलकत्ता की गलियों से गुजर रहे थे, जनता अपनी खिड़कियों से हमें देख रही थी, यदि उन्होंने हाथ में एक एक पत्थर भी उठा लिया होता तो हमारी मौत निश्चित थी!"
गजनी नाम के छोटे से गांव का लुटेरा मोहम्मद गजनवी, बंजर रेगिस्तान के लूटेरों को इकट्टा करते हुए सोमनाथ तक आ गया लेकिन भारत की विडम्बना देखिए, लोग राजाओं के भरोसे हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे, कि लड़ना तो राजाओं का काम है!
उन मूढ़ों को इतना भी नहीं सोचना था कि जब राजा हारेगा तब लुटेरे का कहर प्रजा पर ही बरपेगा, क्यों न राजा का साथ दिया जाए!
लेकिन हम Martial और Non-Martial में बंटे हुए रहे!
आज भी हिंदुओं की दुर्दशा इसी तरह है!
प्रशासन, सरकार और व्यवस्था के भरोसे बैठकर गाल बजाते हैं!
जबकि शांतिदूतों को लगातार ट्रेंड किया जा रहा है कि वे फतह के लिए तैयार रहें, जिहाद होगा और इंशाअल्लाह हिंदुस्तान मुसलमानों की जागीर हो जाएगा!
सेक्युलरिज्म से पीड़ित भांड़ आनेवाली चुनौतियों से आंख मूंदकर "छिनरपन" कर रहे हैं!
जर्मनी में सीरियाई भगोड़े को शरण देकर एंजेला मैर्केल ने नर्क बनाने का काम ऐसा कर दिया कि आनेवाली पुश्तें संघर्ष की आग में जलती रहेंगी!
पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी एक आदमखोर नस्ल "रोहिंग्या" को बसाने का वही कुकर्म कर रही है!
ममता बनर्जी के नाम से धोखा देनेवाले सेक्युलर भांड़ जानबूझकर उसका धर्म छिपा रहे हैं!
असल में ममता इस्लाम को केवल मानती ही नहीं बल्कि उसकी पार्टी इस्लाम के विस्तार की रणनीति पर काम भी करती है।
सनातन धर्म की रक्षा के लिए हथियार उठाने से कब मना करता है?
सरकार के भरोसे रेत में सिर गाड़ने वाले शुतुरमुर्ग बनना छोड़िए!
लड़ने को तैयार रहिए।
हथियार पहले चलाने की जरूरत नहीं है, लेकिन जब अस्तित्व खतरे में आए तो दुगनी गति से प्रहार कीजिए!
#Attack_Is_The_Best_Defence

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