एक फ़िल्म आयी है "राज़ी"
एक कश्मीरी हिन्दू लड़की व उसके परिवार के बलिदान को झुठला कर उसे एक मुस्लिम चरित्र में ढाल दिया गया .....
फ़िल्म में दिखाया गया है कि एक कश्मीरी मुस्लिम व्यापारी (रजत कपूर)सेना के कहने पर भारत के लिए जासूसी करने के लिए अपनी बेटी सहमत खान(आलिया भट्ट) की शादी पाकिस्तान के एक आर्मी ऑफिसर से करवा देता है , उसकी लड़की सहमत खान काफी मुश्किलों का सामना करते हुए पाकिस्तान से काफी अहम सूचनाएं भारत भेजती है ।
फ़िल्म अच्छी बनी है , अमूमन देशभक्ति की फिल्में लोगों को पसन्द आती हैं क्योंकि ये एक भवनात्मक मसला होता है ।
लेकिन अगर इस विषय पर भी " राजनीति" की जाए तो यह ठीक नही है । देशद्रोही कश्मीरी मुसलमानों को देशभक्त दिखाने की कुटिल चाल है ये ।
वास्तव में यह कहानी एक" कश्मीरी पंडित " परिवार की है बाकी सब कुछ वही है ।
राज़ी फ़िल्म " कॉलिंग सहमत" नॉवेल पर आधारित है जिसे नौसेना के एक पूर्व अधिकारी सरदार हरिंदर सिक्का ने लिखा है ।
यह एक सच्ची घटना पर आधारित 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय की कहानी पर बनी नॉवेल है , जिसमे भारत के लिए जासूसी करने वाली कश्मीरी पण्डित महिला का नाम सहमत रखा गया व उसके परिवार के नाम बदल दिए गए । यह कहानी उस महिला के बेटे जो कि भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी हैं व भारतीय इंटेलिजेंस से जुटाई गयी सत्य घटनाओं की जानकारी पर आधारित है ।
मुझे बड़ा क्रोध आ रहा है कि क्यों एक कश्मीरी हिन्दू लड़की व उसके परिवार के बलिदान को झुठला कर उसे एक मुस्लिम चरित्र में ढाल दिया गया , क्यों कश्मीरी देशद्रोही दोगले मुसलमानों को अपनी जान माल बाल बच्चे कुर्बान करने वाला देशभक्त दिखाने का कुत्सित षड्यंत्र किया गया ?
क्या बॉलीवुड का पूरी तरह से इस्लामीकरण हो चुका है ?
अब हिंदुओं के बलिदान का श्रेय मक्कार मुसलमानों को दिया जाएगा ।
क्या सेंसर बोर्ड का भी इस्लामीकरण हो चुका है जो उसे सच्चाई नज़र नही आती ?
या फिर भारत सरकार का भी इस्लामीकरण हो चुका है जिसके अंडर में सेंसर बोर्ड आता है ।
फ़िल्म में दिखाया गया है कि एक कश्मीरी मुस्लिम व्यापारी (रजत कपूर)सेना के कहने पर भारत के लिए जासूसी करने के लिए अपनी बेटी सहमत खान(आलिया भट्ट) की शादी पाकिस्तान के एक आर्मी ऑफिसर से करवा देता है , उसकी लड़की सहमत खान काफी मुश्किलों का सामना करते हुए पाकिस्तान से काफी अहम सूचनाएं भारत भेजती है ।
फ़िल्म अच्छी बनी है , अमूमन देशभक्ति की फिल्में लोगों को पसन्द आती हैं क्योंकि ये एक भवनात्मक मसला होता है ।
लेकिन अगर इस विषय पर भी " राजनीति" की जाए तो यह ठीक नही है । देशद्रोही कश्मीरी मुसलमानों को देशभक्त दिखाने की कुटिल चाल है ये ।
वास्तव में यह कहानी एक" कश्मीरी पंडित " परिवार की है बाकी सब कुछ वही है ।
राज़ी फ़िल्म " कॉलिंग सहमत" नॉवेल पर आधारित है जिसे नौसेना के एक पूर्व अधिकारी सरदार हरिंदर सिक्का ने लिखा है ।
यह एक सच्ची घटना पर आधारित 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के समय की कहानी पर बनी नॉवेल है , जिसमे भारत के लिए जासूसी करने वाली कश्मीरी पण्डित महिला का नाम सहमत रखा गया व उसके परिवार के नाम बदल दिए गए । यह कहानी उस महिला के बेटे जो कि भारतीय सेना के पूर्व अधिकारी हैं व भारतीय इंटेलिजेंस से जुटाई गयी सत्य घटनाओं की जानकारी पर आधारित है ।
मुझे बड़ा क्रोध आ रहा है कि क्यों एक कश्मीरी हिन्दू लड़की व उसके परिवार के बलिदान को झुठला कर उसे एक मुस्लिम चरित्र में ढाल दिया गया , क्यों कश्मीरी देशद्रोही दोगले मुसलमानों को अपनी जान माल बाल बच्चे कुर्बान करने वाला देशभक्त दिखाने का कुत्सित षड्यंत्र किया गया ?
क्या बॉलीवुड का पूरी तरह से इस्लामीकरण हो चुका है ?
अब हिंदुओं के बलिदान का श्रेय मक्कार मुसलमानों को दिया जाएगा ।
क्या सेंसर बोर्ड का भी इस्लामीकरण हो चुका है जो उसे सच्चाई नज़र नही आती ?
या फिर भारत सरकार का भी इस्लामीकरण हो चुका है जिसके अंडर में सेंसर बोर्ड आता है ।
सरकार जवाब दे ??? और अगर सरकार कहती है कि इसकी उसकी कोई जिम्मेदारी नही है तो फिर वो है किसलिए ?
चूंकि देश मे सब कुछ सरकार का है , सब कुछ सरकार ने अपने हाथों में ले रखा है तो फिर हर बात के लिए सरकार से ही पूछा जाएगा और उसे जवाब देना होगा ।
.....अनुराग वाजपेयी
चूंकि देश मे सब कुछ सरकार का है , सब कुछ सरकार ने अपने हाथों में ले रखा है तो फिर हर बात के लिए सरकार से ही पूछा जाएगा और उसे जवाब देना होगा ।
.....अनुराग वाजपेयी
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